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UP की जेलें कैदियों के निशाने पर, अनदेखी से पनप रहा गुस्सा

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Published : Jun 7, 2021, 5:22 AM IST

उत्तर प्रदेश की जौनपुर जेल में कैदियों के बवाल ने कारगार सुरक्षा व्यवस्था पर एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं. वहीं, रिटायर्ड पुलिस महानिदेशक एके जैन ने बताया कि जेलों के निगरानी तंत्र के लचर होने के कारण बवाल होते हैं. जानिए कब-कब किन जेलों में बवाल हुए...

जेलें कैदियों के निशाने पर.
जेलें कैदियों के निशाने पर.

लखनऊ: उत्तर प्रदेश की जौनपुर जेल में कैदियों के बवाल ने कारगार सुरक्षा व्यवस्था पर एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं. करीब डेढ़ घंटे तक जेल पर कैदियों का कब्जा रहा और कारगार सुरक्षाकर्मी इधर-उधर दौड़ते रहे. जिले भर की फोर्स के जुटने के बाद भी कैदी तांडव करते रहे. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यूपी की जेलों में अनदेखी से कैदियों में जबरदस्त ग़ुस्सा पनप रहा है. जेलों की स्थिति विस्फोटक है. क्षमता से ज्यादा भरे कैदी कभी भी सुरक्षाकर्मियों पर हावी होकर किसी बड़ी वारदात को अंजाम दे सकते हैं. खुफिया एजेंसियों की मानें तो प्रदेश की कई जेलें कैदियों के निशाने पर हैं. पूर्वांचल समेत कई संवेदनशील जेलों की सुरक्षा बढ़ा दी गई है. यूपी की जेलों में हुए गैंगवार और संघर्ष को लेकर पेश है रिपोर्ट...

चित्रकूट जेल में गैंगवार के बाद भी चौकन्ना नहीं जेल प्रशासन

बीते 14 मई 2021 को चित्रकूट जेल गैंगवार में दो कैदियों की हत्या और एनकांटर में वारदात को अंजाम देने वाले अपराधी की मौत की जांच अभी पूरी भी नहीं हुई और जौनपुर जेल में इतनी बड़ी घटना से जेल प्रशासन सकते में आ गया है. सवाल खड़े हो रहे हैं कि हाल ही में हुई चित्रकूट की घटना के बाद भी सुरक्षा व्यवस्था इतनी चाक-चौबंद क्यों नहीं की गई? जिसका फायदा उठाकर कैदियों ने जौनपुर जेल पर कब्जा कर लिया.

पढ़ें: बांदा की हाई सिक्योरिटी जेल से कैदी लापता, सुरक्षा पर सवाल


सुरक्षा में लापरवाही से बागपत जेल में हुआ उपद्रव

बागपत जेल में जुलाई 2018 में माफिया मुन्ना बजरंगी की हत्या जेलकर्मियों की मिलीभगत से हुई. 14 मई को चित्रकूट जेल गैंगवार में कई जेलकर्मियों की भूमिका संदिग्ध मिली. पिछले साल 2 अप्रैल को इटावा जेल में कैदियों के विद्रोह के बीच कानपुर के कुख्यात अपराधी और डी-2 गैंग के सदस्य राशिद उर्फ मोनू पहाड़ी की हत्या कर दी गई थी.

इलाहाबाद में कैदियों ने बंधक बनाकर पीटा था

2016 में इलाहाबाद की नैनी जेल में कैदियों ने पूरे जेल स्टॉफ को बंधक बनाकर पीटा था. इससे पहले 2013 में बस्ती जेल के कैदियों ने विद्रोह कर दिया. जेल प्रशासन की सूचना पर बाहर से फोर्स समय से नहीं पहुंच पाई तो जेल अधिकारियों को फायरिंग करनी पड़ी. इसमें एक कैदी की मौत हो गई.

बस्ती जेल में उपद्रव, अधीक्षक की गोली से मरा था एक कैदी

बस्ती जेल में 2011 में कैदियों ने कब्जा जमा लिया और रसोई घर में जाकर गैस सिलिंडरों में आग लगा दी थी. इन पर काबू पाने के लिए जेल अधीक्षक केशरवानी ने गोली चलाई थी, जिसमें एक कैदी मारा गया था.

पढ़ें: फिलहाल टला योगी मंत्रिमंडल विस्तार, उचित समय पर भरे जाएंगे खाली पद

मेरठ जेल हिंसा में कई हुए थे घायल

मेरठ की जेल में बंदियों और बंदी रक्षकों के बीच हुए विवाद ने 18 अप्रैल 2012 को खूनी संघर्ष का रूप ले लिया था. बंदियों ने जेलकर्मियों पर मारपीट का आरोप लगाकर उन पर हमला किया. एक बैरक और जेल की रसोई में आग लगा दी थी. तीन घंटे चली हिंसा में कई लोग घायल हुए थे.

नैनी सेंट्रल जेल में कैदी की मौत के बाद हुआ था हंगामा

इलाहाबाद की नैनी सेंट्रल जेल में 9 मार्च 2012 को एक सजायाफ्ता कैदी बंसीलाल का शव बाथरूम में फंदे से लटका मिलने के बाद हंगामा मच गया था. उसके कपड़ों पर भी खून लगा था. पोस्टमार्टम में हत्या की पुष्टि हुई थी.

यूपी की जेलों में क्षमता से दो गुना अधिक बंदी निरुद्ध

प्रदेश के केंद्रीय कारागार, जिला कारागार, उप कारागार, आदर्श कारागार, किशोर सदन व नारी बंदी निकेतन समेत विभिन्न श्रेणी के 72 जिलों में 60 हजार 685 बंदियों को निरुद्ध करने की क्षमता है, जबकि, 1,02,809 बंदी जेलों में बंद किए गए हैं, जो क्षमता से करीब दो गुना हैं. इनमें से मात्र 26086 बंदियों को सजा मिली है. 73003 विचाराधीन बंदी जेल में निरुद्ध हैं. जनवरी 2021 तक प्रदेश की कारागारों में 454 विदेशी बंदी भी बंद है. इसमें 131 को सजा मिली है, जबकि 323 विचाराधीन बंदी हैं.

पर्याप्त सुरक्षा बल भी नहीं

उत्तर प्रदेश की जेलों में बंद करीब एक लाख बंदियों की सुरक्षा व अन्य व्यवस्था के लिए 11098 पद स्वीकृत हैं, जबकि 5223 ही जेल कर्मचारी विभिन्न पदों पर कार्यरत हैं. 5875 पद अभी भी खाली पड़े हैं. इनमें एक लाख बंदियों पर सिर्फ 2652 जेल बॉर्डर हैं, जबकि स्वीकृत पद 7329 हैं. इसी प्रकार 70 पद के सापेक्ष 48 जेल अधीक्षक, 94 के सापेक्ष 90 जेलर और 474 पद के सापेक्ष 206 जेलकर्मी कार्यरत हैं. इस वक्त कई जेल अस्पताल बिना डॉक्टरों के चल रहे हैं. यही वजह है कि प्रदेश की जेलों में हर साल करीब 500 कैदी बीमारी के चलते दम तोड़ देते हैं.


'इस अराजकता की वजह जेलों के निगरानी तंत्र का लचर होना है. कहते हैं कि रसूख वाले कैदी आते ही जेल प्रशासन पर दबाव बनाते हैं कि व्यवस्था उनके अनुरूप हो. विरोध करने पर वे उपद्रव करते हैं. जेलों के भीतर कैदियों के साथ भोजन में भी भेदभाव होता है. रसूखदार कैदियों को ही अच्छा भोजन नसीब होता है. कैदियों की क्षमता के अनुरूप ही भोजन का बजट होता है. अब उतने पैसे में दोगुने से ज्‍यादा कैदियों के लिए खाना बनाना एक चुनौती ही है'.

-एके जैन, रिटायर्ड पुलिस महानिदेशक

ध्यान देने की जरूरत, अन्यथा होगा बड़ा हादसा

रिटायर्ड पुलिस महानिदेशक बताते हैं कि दूसरे राज्‍यों की हालत भी कमोबेश ऐसी ही है. जाहिर है कि इस दशा के लिए जेलकर्मियों का कैदियों के साथ बुरा सुलूक भी एक कारण है. यह एक ऐसा पहलू है जिस पर फौरन ध्यान देने की जरूरत है, खासकर कैदियों के मानवाधिकार पर. अन्यथा इन जेलों की खस्ता हालत कभी भी किसी बड़े हादसे का सबब बन सकती है.

संवेदनशील जेलों की बढ़ाई गई सुरक्षा

महानिदेशक जेल आनंद कुमार का कहना है कि यूपी की जेलों में सुरक्षा की पर्याप्त व्यवस्था की गई है. पूर्वांचल समेत कुछ संवेदनशील जेलों की सुरक्षा और बढ़ाई गई है. जौनपुर मामले की जांच की जा रही है. अब स्थिति काबू में है.

लखनऊ: उत्तर प्रदेश की जौनपुर जेल में कैदियों के बवाल ने कारगार सुरक्षा व्यवस्था पर एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं. करीब डेढ़ घंटे तक जेल पर कैदियों का कब्जा रहा और कारगार सुरक्षाकर्मी इधर-उधर दौड़ते रहे. जिले भर की फोर्स के जुटने के बाद भी कैदी तांडव करते रहे. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यूपी की जेलों में अनदेखी से कैदियों में जबरदस्त ग़ुस्सा पनप रहा है. जेलों की स्थिति विस्फोटक है. क्षमता से ज्यादा भरे कैदी कभी भी सुरक्षाकर्मियों पर हावी होकर किसी बड़ी वारदात को अंजाम दे सकते हैं. खुफिया एजेंसियों की मानें तो प्रदेश की कई जेलें कैदियों के निशाने पर हैं. पूर्वांचल समेत कई संवेदनशील जेलों की सुरक्षा बढ़ा दी गई है. यूपी की जेलों में हुए गैंगवार और संघर्ष को लेकर पेश है रिपोर्ट...

चित्रकूट जेल में गैंगवार के बाद भी चौकन्ना नहीं जेल प्रशासन

बीते 14 मई 2021 को चित्रकूट जेल गैंगवार में दो कैदियों की हत्या और एनकांटर में वारदात को अंजाम देने वाले अपराधी की मौत की जांच अभी पूरी भी नहीं हुई और जौनपुर जेल में इतनी बड़ी घटना से जेल प्रशासन सकते में आ गया है. सवाल खड़े हो रहे हैं कि हाल ही में हुई चित्रकूट की घटना के बाद भी सुरक्षा व्यवस्था इतनी चाक-चौबंद क्यों नहीं की गई? जिसका फायदा उठाकर कैदियों ने जौनपुर जेल पर कब्जा कर लिया.

पढ़ें: बांदा की हाई सिक्योरिटी जेल से कैदी लापता, सुरक्षा पर सवाल


सुरक्षा में लापरवाही से बागपत जेल में हुआ उपद्रव

बागपत जेल में जुलाई 2018 में माफिया मुन्ना बजरंगी की हत्या जेलकर्मियों की मिलीभगत से हुई. 14 मई को चित्रकूट जेल गैंगवार में कई जेलकर्मियों की भूमिका संदिग्ध मिली. पिछले साल 2 अप्रैल को इटावा जेल में कैदियों के विद्रोह के बीच कानपुर के कुख्यात अपराधी और डी-2 गैंग के सदस्य राशिद उर्फ मोनू पहाड़ी की हत्या कर दी गई थी.

इलाहाबाद में कैदियों ने बंधक बनाकर पीटा था

2016 में इलाहाबाद की नैनी जेल में कैदियों ने पूरे जेल स्टॉफ को बंधक बनाकर पीटा था. इससे पहले 2013 में बस्ती जेल के कैदियों ने विद्रोह कर दिया. जेल प्रशासन की सूचना पर बाहर से फोर्स समय से नहीं पहुंच पाई तो जेल अधिकारियों को फायरिंग करनी पड़ी. इसमें एक कैदी की मौत हो गई.

बस्ती जेल में उपद्रव, अधीक्षक की गोली से मरा था एक कैदी

बस्ती जेल में 2011 में कैदियों ने कब्जा जमा लिया और रसोई घर में जाकर गैस सिलिंडरों में आग लगा दी थी. इन पर काबू पाने के लिए जेल अधीक्षक केशरवानी ने गोली चलाई थी, जिसमें एक कैदी मारा गया था.

पढ़ें: फिलहाल टला योगी मंत्रिमंडल विस्तार, उचित समय पर भरे जाएंगे खाली पद

मेरठ जेल हिंसा में कई हुए थे घायल

मेरठ की जेल में बंदियों और बंदी रक्षकों के बीच हुए विवाद ने 18 अप्रैल 2012 को खूनी संघर्ष का रूप ले लिया था. बंदियों ने जेलकर्मियों पर मारपीट का आरोप लगाकर उन पर हमला किया. एक बैरक और जेल की रसोई में आग लगा दी थी. तीन घंटे चली हिंसा में कई लोग घायल हुए थे.

नैनी सेंट्रल जेल में कैदी की मौत के बाद हुआ था हंगामा

इलाहाबाद की नैनी सेंट्रल जेल में 9 मार्च 2012 को एक सजायाफ्ता कैदी बंसीलाल का शव बाथरूम में फंदे से लटका मिलने के बाद हंगामा मच गया था. उसके कपड़ों पर भी खून लगा था. पोस्टमार्टम में हत्या की पुष्टि हुई थी.

यूपी की जेलों में क्षमता से दो गुना अधिक बंदी निरुद्ध

प्रदेश के केंद्रीय कारागार, जिला कारागार, उप कारागार, आदर्श कारागार, किशोर सदन व नारी बंदी निकेतन समेत विभिन्न श्रेणी के 72 जिलों में 60 हजार 685 बंदियों को निरुद्ध करने की क्षमता है, जबकि, 1,02,809 बंदी जेलों में बंद किए गए हैं, जो क्षमता से करीब दो गुना हैं. इनमें से मात्र 26086 बंदियों को सजा मिली है. 73003 विचाराधीन बंदी जेल में निरुद्ध हैं. जनवरी 2021 तक प्रदेश की कारागारों में 454 विदेशी बंदी भी बंद है. इसमें 131 को सजा मिली है, जबकि 323 विचाराधीन बंदी हैं.

पर्याप्त सुरक्षा बल भी नहीं

उत्तर प्रदेश की जेलों में बंद करीब एक लाख बंदियों की सुरक्षा व अन्य व्यवस्था के लिए 11098 पद स्वीकृत हैं, जबकि 5223 ही जेल कर्मचारी विभिन्न पदों पर कार्यरत हैं. 5875 पद अभी भी खाली पड़े हैं. इनमें एक लाख बंदियों पर सिर्फ 2652 जेल बॉर्डर हैं, जबकि स्वीकृत पद 7329 हैं. इसी प्रकार 70 पद के सापेक्ष 48 जेल अधीक्षक, 94 के सापेक्ष 90 जेलर और 474 पद के सापेक्ष 206 जेलकर्मी कार्यरत हैं. इस वक्त कई जेल अस्पताल बिना डॉक्टरों के चल रहे हैं. यही वजह है कि प्रदेश की जेलों में हर साल करीब 500 कैदी बीमारी के चलते दम तोड़ देते हैं.


'इस अराजकता की वजह जेलों के निगरानी तंत्र का लचर होना है. कहते हैं कि रसूख वाले कैदी आते ही जेल प्रशासन पर दबाव बनाते हैं कि व्यवस्था उनके अनुरूप हो. विरोध करने पर वे उपद्रव करते हैं. जेलों के भीतर कैदियों के साथ भोजन में भी भेदभाव होता है. रसूखदार कैदियों को ही अच्छा भोजन नसीब होता है. कैदियों की क्षमता के अनुरूप ही भोजन का बजट होता है. अब उतने पैसे में दोगुने से ज्‍यादा कैदियों के लिए खाना बनाना एक चुनौती ही है'.

-एके जैन, रिटायर्ड पुलिस महानिदेशक

ध्यान देने की जरूरत, अन्यथा होगा बड़ा हादसा

रिटायर्ड पुलिस महानिदेशक बताते हैं कि दूसरे राज्‍यों की हालत भी कमोबेश ऐसी ही है. जाहिर है कि इस दशा के लिए जेलकर्मियों का कैदियों के साथ बुरा सुलूक भी एक कारण है. यह एक ऐसा पहलू है जिस पर फौरन ध्यान देने की जरूरत है, खासकर कैदियों के मानवाधिकार पर. अन्यथा इन जेलों की खस्ता हालत कभी भी किसी बड़े हादसे का सबब बन सकती है.

संवेदनशील जेलों की बढ़ाई गई सुरक्षा

महानिदेशक जेल आनंद कुमार का कहना है कि यूपी की जेलों में सुरक्षा की पर्याप्त व्यवस्था की गई है. पूर्वांचल समेत कुछ संवेदनशील जेलों की सुरक्षा और बढ़ाई गई है. जौनपुर मामले की जांच की जा रही है. अब स्थिति काबू में है.

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