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सपा-बसपा का बड़े दलों से दूरी का निर्णय भाजपा को पहुंचा सकता है चुनावी लाभ - उत्तर प्रदेश चुनाव खबर

उत्तर प्रदेश विधानभा चुनाव 2022 को लेकर सभी पार्टियों में मंथन का दौर चल रहा है. दूसरी तरफ सियासी गलियारों में अब ये चर्चा है कि बसपा भी छोटे दलों के साथ गठबंधन कर चुनावी मैदान में उतरना चाह रही है. वहीं इस बात को लेकर राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ऐसे में भाजपा को फायदा हो सकता है.

उत्तर प्रदेश विधानभा चुनाव 2022
उत्तर प्रदेश विधानभा चुनाव 2022
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Published : Jun 30, 2021, 3:19 AM IST

लखनऊ : यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में भारतीय जनता पार्टी को विपक्ष की आपसी लड़ाई से फायदा होता दिख रहा है. बसपा अध्यक्ष मायावती ने भले ही असदुद्दीन ओवैसी समेत अन्य बड़े दलों के साथ गठबंधन करने से मना कर दिया हो, लेकिन अंदरूनी सच्चाई यह है कि उनकी रणनीति केवल ओवैसी से दूरी बनाने की है. भाजपा विरोधी शेष छोटे दल बसपा के साथ जाने की फिराक में हैं. जानकारों का मानना है कि छोटे दलों के साथ बसपा की करीब-करीब वार्तालाप हो चुकी है. सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, महान दल जैसे राजनीतिक दल बसपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं. इससे यूपी विधानसभा चुनाव की लड़ाई त्रिकोणीय होगी और यही समीकरण भाजपा को लाभ दिलाएगा.

अगले चुनाव को लेकर पकने लगी खिचड़ी

दरअसल, यूपी में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर तरह तरह की खिचड़ी पकने लगी है. अब सियासी गलियारे में बसपा को लेकर चर्चा है कि पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की पार्टी छोटे दलों से गठबंधन की फिराक में है. पार्टी उन छोटे दलों को साधना चाह रही है जिनकी भाजपा से दूरी बढ़ती जा रही है. इसमें सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी सबसे ऊपर है. ओम प्रकाश राजभर की पार्टी 2017 के चुनाव में भाजपा के साथ थी. भाजपा सत्ता में आई तो ओपी राजभर भी योगी सरकार में मंत्री बनाये गए. कुछ ही दिनों बाद भाजपा से उनकी अनबन शुरू हो गयी. तनाव इतना बढ़ा कि भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं को भी हस्तक्षेप करना पड़ा. बावजूद इसके राजभर को योगी सरकार से बाहर जाना पड़ा. पार्टी सूत्रों के मुताबिक बसपा छोटे दलों से गठबंधन करने की तैयारी में है.

यूपी विधानभा चुनाव 2022 की तैयारियों में जुटे दल

छोटे दलों का गठबंधन होगा महत्त्वपूर्ण
राजनीतिक विश्लेषक सियाराम पांडेय का कहना है कि उत्तर प्रदेश की सियासत में जातीय समीकरण का बहुत बड़ा महत्व है. समाजवादी पार्टी पिछड़ी जातियों में जितना महत्व यादवों को देती है उतना महत्व अन्य किसी पिछड़ी जाति को नहीं देती है. यही वजह है अन्य पिछड़ी जातियां समाजवादी पार्टी से दूरी बनाकर रहना चाहती हैं. 2017 के उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में इसका असर स्पष्ट तौर पर देखने को मिला था. भाजपा भी अपने स्तर पर पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों को साधने का प्रयास करती रही है. उसकी विकास योजनाओं से लेकर संगठनात्मक गतिविधियों में भी इसे बदस्तूर देखा जा सकता है. ऐसे में पिछड़ी जातियां समाजवादी पार्टी के बजाए भारतीय जनता पार्टी के साथ जाना ज्यादा बेहतर समझेंगी.

जिन दलों की भाजपा से नाराजगी है, वह बहुजन समाज पार्टी के साथ खुद को ज्यादा सुविधाजनक महसूस कर रहे हैं. यही वजह है बसपा और छोटे दलों के बीच गठबंधन की खिचड़ी पकने लगी है. सपा और कांग्रेस जैसे बड़े दलों से दूरी बनाने का अगर मायावती एलान कर चुकी हैं, तो समाजवाद खेमे में भी इस बार बसपा और कांग्रेस दोनों से ही दूरी बनाकर चलने पर मंथन हो रहा है. अगर सपा की यह रणनीति परवान चढ़ती है तो जाहिर तौर पर राजनीतिक लाभ भाजपा को ही होगा.

भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता हीरो बाजपेयी ने कहा कि हमारी पार्टी सर्व समाज के बीच काम कर रही है. हमारी सरकार सबका साथ सबका विकास के मंत्र के साथ देश और प्रदेश का विकास कर रही है. हम इसको लेकर कतई चिंतित नहीं हैं कि कौन दल किसके साथ गठबंधन कर रहे हैं. यूपी में योगी सरकार बहुत अच्छा काम कर रही है. प्रदेश की जनता भाजपा के साथ है. आगामी विधानसभा चुनाव में भी हम 300 से ज्यादा सीटें जीतने जा रहे हैं.

इसे भी पढ़ें- मुख्तार अंसारी के एंबुलेंस ड्राइवर को यूपी STF ने दबोचा, गैंग से जुड़े कई राज उगले

यूपी में 2017 के विधानसभा चुनाव में दलों की स्थिति

पिछले चुनाव में भाजपा प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज हुई. भाजपा को 312 सीटें मिली थीं. सहयोगी दल सुलहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को चार, अपना दल (एस) को 9 सीटें मिलीं थीं. समाजवादी पार्टी को 47, बहुजन समाज पार्टी को 18 और कांग्रेस को 7 सीटें मिली थीं.

लखनऊ : यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में भारतीय जनता पार्टी को विपक्ष की आपसी लड़ाई से फायदा होता दिख रहा है. बसपा अध्यक्ष मायावती ने भले ही असदुद्दीन ओवैसी समेत अन्य बड़े दलों के साथ गठबंधन करने से मना कर दिया हो, लेकिन अंदरूनी सच्चाई यह है कि उनकी रणनीति केवल ओवैसी से दूरी बनाने की है. भाजपा विरोधी शेष छोटे दल बसपा के साथ जाने की फिराक में हैं. जानकारों का मानना है कि छोटे दलों के साथ बसपा की करीब-करीब वार्तालाप हो चुकी है. सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, महान दल जैसे राजनीतिक दल बसपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं. इससे यूपी विधानसभा चुनाव की लड़ाई त्रिकोणीय होगी और यही समीकरण भाजपा को लाभ दिलाएगा.

अगले चुनाव को लेकर पकने लगी खिचड़ी

दरअसल, यूपी में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर तरह तरह की खिचड़ी पकने लगी है. अब सियासी गलियारे में बसपा को लेकर चर्चा है कि पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की पार्टी छोटे दलों से गठबंधन की फिराक में है. पार्टी उन छोटे दलों को साधना चाह रही है जिनकी भाजपा से दूरी बढ़ती जा रही है. इसमें सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी सबसे ऊपर है. ओम प्रकाश राजभर की पार्टी 2017 के चुनाव में भाजपा के साथ थी. भाजपा सत्ता में आई तो ओपी राजभर भी योगी सरकार में मंत्री बनाये गए. कुछ ही दिनों बाद भाजपा से उनकी अनबन शुरू हो गयी. तनाव इतना बढ़ा कि भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं को भी हस्तक्षेप करना पड़ा. बावजूद इसके राजभर को योगी सरकार से बाहर जाना पड़ा. पार्टी सूत्रों के मुताबिक बसपा छोटे दलों से गठबंधन करने की तैयारी में है.

यूपी विधानभा चुनाव 2022 की तैयारियों में जुटे दल

छोटे दलों का गठबंधन होगा महत्त्वपूर्ण
राजनीतिक विश्लेषक सियाराम पांडेय का कहना है कि उत्तर प्रदेश की सियासत में जातीय समीकरण का बहुत बड़ा महत्व है. समाजवादी पार्टी पिछड़ी जातियों में जितना महत्व यादवों को देती है उतना महत्व अन्य किसी पिछड़ी जाति को नहीं देती है. यही वजह है अन्य पिछड़ी जातियां समाजवादी पार्टी से दूरी बनाकर रहना चाहती हैं. 2017 के उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में इसका असर स्पष्ट तौर पर देखने को मिला था. भाजपा भी अपने स्तर पर पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों को साधने का प्रयास करती रही है. उसकी विकास योजनाओं से लेकर संगठनात्मक गतिविधियों में भी इसे बदस्तूर देखा जा सकता है. ऐसे में पिछड़ी जातियां समाजवादी पार्टी के बजाए भारतीय जनता पार्टी के साथ जाना ज्यादा बेहतर समझेंगी.

जिन दलों की भाजपा से नाराजगी है, वह बहुजन समाज पार्टी के साथ खुद को ज्यादा सुविधाजनक महसूस कर रहे हैं. यही वजह है बसपा और छोटे दलों के बीच गठबंधन की खिचड़ी पकने लगी है. सपा और कांग्रेस जैसे बड़े दलों से दूरी बनाने का अगर मायावती एलान कर चुकी हैं, तो समाजवाद खेमे में भी इस बार बसपा और कांग्रेस दोनों से ही दूरी बनाकर चलने पर मंथन हो रहा है. अगर सपा की यह रणनीति परवान चढ़ती है तो जाहिर तौर पर राजनीतिक लाभ भाजपा को ही होगा.

भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता हीरो बाजपेयी ने कहा कि हमारी पार्टी सर्व समाज के बीच काम कर रही है. हमारी सरकार सबका साथ सबका विकास के मंत्र के साथ देश और प्रदेश का विकास कर रही है. हम इसको लेकर कतई चिंतित नहीं हैं कि कौन दल किसके साथ गठबंधन कर रहे हैं. यूपी में योगी सरकार बहुत अच्छा काम कर रही है. प्रदेश की जनता भाजपा के साथ है. आगामी विधानसभा चुनाव में भी हम 300 से ज्यादा सीटें जीतने जा रहे हैं.

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यूपी में 2017 के विधानसभा चुनाव में दलों की स्थिति

पिछले चुनाव में भाजपा प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज हुई. भाजपा को 312 सीटें मिली थीं. सहयोगी दल सुलहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को चार, अपना दल (एस) को 9 सीटें मिलीं थीं. समाजवादी पार्टी को 47, बहुजन समाज पार्टी को 18 और कांग्रेस को 7 सीटें मिली थीं.

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