लखनऊ: कोरोना की दूसरी लहर के दौरान कोविड के अलावा जिस चीज से सबसे ज्यादा लोग परेशान थे वह था ब्लैक फंगस. कोरोना के बाद ब्लैक फंगस की वजह से कई लोगों की मौत हो चुकी है. अब ब्लैक फंगस का इलाज आयुर्वेद के जरिए भी मुमकिन है. 'जलनेती' प्रक्रिया के जरिए घर पर ही बीमारी का सफाया किया जा सकता है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने भी इस बात पर पहली बार मुहर लगा दी है. लिहाजा, अब 'ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल' में इसे शामिल करने का प्रयास होगा. बता दें कि राजकीय आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज के डॉ. संजीव रस्तोगी ने 'जलनेती' प्रक्रिया से घातक बीमारी का सफाया करने में सफलता हासिल की है.
ऐसे किया इलाज
डॉ. संजीव रस्तोगी के मुताबिक 65 वर्षीय व्यक्ति 12 वर्ष से डायबिटीज से पीड़ित था. उसकी नाक और आंख के पास सूजन आ गई. उसने मेडिकल कॉलेज में दिखाया, एमआरआई जांच और बैक्टीरियल जांच कराई. इसमें ब्लैक फंगस की पुष्टि हुई. मगर बेड फुल होने पर इलाज के लिए 5 दिन बाद बुलाया गया. ऐसे में मरीज आयुर्वेद कॉलेज पहुंचा. यहां उसे गुनगुने पानी में नमक डालकर जलनेती प्रक्रिया कराई गई. 4 दिन में संक्रमण खत्म हो गया और मरीज की सूजन ठीक भी हो गई. 5 दिन बाद मरीज केजीएमयू पहुंचा यहां डॉक्टरों ने उसकी इंडोस्कोपी और अन्य जांचें कराईं. जिसके बाद मरीज में ब्लैक फंगस नहीं पाया गया.
ये है जलनेती इलाज की प्रक्रिया
डॉ. संजीव के मुताबिक जलनेती करने के लिए व्यक्ति को कागासन (उकड़ू बैठना) की मुद्रा में बैठना होता है. इसके बाद साफ पानी को गुनगुना कर उसमें नमक डालते हैं, जिसमें 100 एमएल पानी में आधा चम्मच नमक की मात्रा होती है. गुनगुने पानी को टोंटी वाले लोटे में डाला जाता है. इसके बाद कागासन मुद्रा में एक नाक से पानी डालते हैं फिर उसे दूसरी नाक से निकालते हैं. 50-50 एमएल पानी डालकर यह प्रक्रिया की जाती है. इसे मरीज को दिन में 2 टाइम 4 दिन तक करना पड़ा. जिसके बाद संक्रमण की चपेट में आए नेजल पैसेज क्लियर हो गए और संक्रमण ठीक हो गया.
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डॉ. संजीव रस्तोगी के मुताबिक आयुर्वेद, नेचुरोपैथ और योग के क्षेत्र में पहली बार ब्लैक फंगस के इलाज में जलनेती प्रक्रिया पर इंटरनेशनल मान्यता मिली है. यहां से भेजी गई मरीज की केस स्टडी को एक्सपर्ट की कमेटी ने परखा. इसके बाद एल्सेविएर से प्रकाशित होने वाले इंटरनेशनल मेडिकल जर्नल जे-ऐम में प्रकाशन की मंजूरी दी गई. 10 अगस्त को मिली मंजूरी के बाद अब जलनेती को ब्लैक फंगस के ट्रीटमेन्ट प्रोटोकॉल में शामिल करने के लिए केंद्रीय आयुष मंत्रालय को पत्र लिखा जाएगा.