लखनऊ : उत्तर प्रदेश में कभी एक 'उद्योग' की चर्चा हमेशा चर्चा में रहती है, पर उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार आने के बाद पिछले छह साल से यह "उद्योग" ठप सा हो गया है. हम बात कर रहे हैं, तबादला उद्योग की. यदि पिछले छह साल की बात छोड़ दें, तो प्रदेश में चाहें किसी भी दल की सरकार रही हो, तबादलों को लेकर खूब चर्चा होती थी और भ्रष्टाचार के आरोप भी लगते थे. कई बार भ्रष्टाचार के मामले सामने भी आए हैं. आईएएस अधिकारियों के तबादले बहुत जल्दी-जल्दी होते थे. बिरला ही कोई जिलाधिकारी होगा, जो दो-तीन साल किसी जिले में पूरा कर पाता होगा. हालांकि प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार आने के बाद इस गोरखधंधे पर न सिर्फ रोक लगी, बल्कि तबादलों में पारदर्शिता भी आई है.
गौरतलब है कि प्रदेश की भाजपा सरकार ने तबादलों में होने वाले भ्रष्टाचार और अनियमितता को रोकने के लिए पहले दिन से ही काम किया था, जिसका नतीजा है कि प्रदेश में पिछले छह साल में तबादलों को लेकर विवाद या भ्रष्टाचार का कोई मामला सुनाई नहीं दिया. शिक्षकों के तबादलों को लेकर भी साल भर मारामारी रहती थी. अन्य विभागों में भी साल भर तबादलों की गहमागहमी बनी रहती थी. योगी सरकार ने तबादलों को लेकर एक स्पष्ट नीति बनाई है. सरकार ने अगले साल के लिए भी अभी से तैयारी की है.
इस संबंध में राजनीतिक विश्लेषक डॉ. दिलीप अग्निहोत्री कहते हैं छह वर्ष पहले जब योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री पद का दायित्व संभाला था, तब उत्तर प्रदेश में तबादला उद्योग की नीति भी प्रचलित हुआ करती थी. योगी को यह नीति विरासत में मिली थी, किंतु उन्होंने पहला काम यह किया कि इस नीति को खत्म किया. कुछ-कुछ माह पर अधिकारियों के जो तबादले हुआ करते थे. योगी आदित्यनाथ ने उन्हें भी बदल दिया है. योगी का मानना है कि सुशासन की स्थापना के लिए ऐसा करना जरूरी है. क्योंकि जब चार-छह माह में अधिकारी बदल जाएं, तो शासन में स्थायित्व आ ही नहीं सकता.
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