लखनऊः खेत से किचन तक पहुंचने में सब्जी के दाम कई गुना तक बढ़ जाते हैं. आखिर इसकी मुख्य वजह क्या होती है चलिए जानते हैं इस बारे में.
दरअसल, किसान खेत से तोड़कर सब्जी बेचने के लिए जब मंडी पहुंचता है तो वहां उससे मंडी शुल्क, आढ़ती शुल्क आदि लिया जाता है. इसके बाद थोक व्यापारियों की चेन आ जाती है. थोक व्यापारियों के बाद फुटकर व्यापारियों से होते हुए सब्जी किचन तक पहुंचती है. चलिए समझते हैं इसकी गणित.
खेत से चली सब्जी का किचन तक पहुंचने का खर्च
- मंडी शुल्क-1.5%
- आढ़ती शुल्क-2.5%
- थोक व्यापारी-5 % (अनुमानित)
- स्टोरेज-करीब 5%
- ट्रांसपोर्टेशन व पैकेजिंग-5 %
- फुटकर व्यापारी-10%-20% (अनुमानित)
(नोटः कुछ सब्जिया कोल्ड स्टोर में स्टोरेज की जाती है जिसका भार भी उपभोक्ता को उठाना पड़ता है. इसके अलावा थोक और फुटकर व्यापारियों का मुनाफा अनुमानित है, यह अधिक भी हो सकता है)
कई अन्य वजहें भी जिम्मेदार
आढ़ती, थोक और फुटकर व्यापारी खराब हो जाने वाली सब्जी का नुकसान भी ताजी सब्जी की कीमत में जोड़ लेते हैं, इस वजह से भी सब्जी की कीमत काफी बढ़ जाती है. इसके अलावा पेट्रोल डीजल के दामों में इजाफा, हड़ताल और मौसम भी सब्जियों की कीमतें बढ़ाने में अहम भूमिका अदा करते हैं. इन सबके अलावा हाई डिमांड भी सब्जी की कीमतों को तेजी बढ़ा देती है. खासकर शादियों के मौसम में सब्जी की कीमतें हाई डिमांड के कारण तेजी से बढ़ जाती हैं. एक अनुमान के मुताबिक खेत से चली सब्जी का किचन तक का सफर करीब दो गुने से तीन गुने तक महंगा हो जाता है. कई बार यह इससे भी अधिक हो जाता है. मान लीजिए कोई सब्जी खेत से 10 रुपए किलो चली तो वह सारे खर्च मिलाकर किचन तक पहुंचने में 25-30 रुपए प्रति किलो तक महंगी हो जाती है.
सब्जियो के आज के फुटकर भाव प्रति किलो (रुपए में)
टमाटर- 60
मटर- 80
नींबू- 100
बैंगन- 25
गाजर- 50
सेम- 30
शिमला मिर्च- 50
धनिया- 40
बंद गोभी 15
भिंडी- 50
अदरक-160
लौकी- 20
प्याज-60
खीरा- 30
कद्दू- 20
फूल गोभी-12
आलू नया- 30
आलू पुराना-25
पालक-30
करेला-40
तोराई- 50
लहसुन- 300
परवल-50
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