लखनऊ : सिनेमा जगत में बहुत कुछ बदलाव हुआ है. पहले के समय में लोग रंगमंच से जुड़ा करते थे और तब फिल्मों में उन्हें काफी संघर्ष के बाद अभिनय के लिए मौका मिलता था. आज का दौर नया है. इंटरनेट ने बहुत कुछ बदलाव लाया है आज के युवाओं के पास बहुत सारे प्लेटफार्म है जहां पर वह अपना टैलेंट प्रस्तुत करते हैं और उन्हें इंडस्ट्री में काम करने का सुनहरा मौका मिलता है. आज भी अभिनय की बारीकियां हर एक कलाकार रंगमंच से ही सीखता है. रंगमंच से जुड़े हुए कलाकार को भले ही ऊंचाइयों तक पहुंचने में थोड़ा समय लगेगा, लेकिन जब वह ऊंचाई पर पहुंचेगा तो एक मझा हुआ कलाकार बन कर उभरेगा.
यह बातें रंगमंच से जुड़े हुए और फिल्मी जगत में जाने-माने एक्टर अनिल रस्तोगी ने विश्व रंगमंच दिवस के दिन ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान कहीं. एक्टर अनिल रस्तोगी लखनऊ के निवासी हैं. साल 1962 में वह सीडीआरआई में वैज्ञानिक बने थे. उन्होंने बताया कि आज भी थियेटर से जुड़े कलाकार रंगमंच पर अपनी कला प्रस्तुत करते हैं. उनकी अदाकारी में मनावता की सच्ची अभिव्यक्ति होती है. इसे समाज का दर्पण भी कहा जाता हैं. थियेटर के ऊपर एक जिम्मेदारी है कि लोगों को आपस में प्रेम व एकता के लिए प्रेरित करें. हमने वर्ष 1961-62 में सीखना शुरू किया. उस समय रंगमंच बहुप्रचलित नहीं था. समय के साथ धीरे-धीरे रंगमंच से लोगों ने जोड़ना शुरू किया हमारे साथ के जो कलाकार थे सभी रंगमंच से जुड़े और अभिनय की बारीकियां सीखीं. आज मैं जो कुछ भी फिल्म जगत में काम कर रहा हूं. वह रंगमंच की ही देन है. समाज में एकता व प्रेम फैलाने का रंगमंच एक सशक्त जरिया है. कलाकार अपनी कला से लोगों के मन में प्रेम जागृत करता है. रंगमंच से जुड़े कलाकारों का सोर्स ऑफ इनकम नहीं है. यूपी के कुछ जिलों को छोड़ दें तो बाकी जिलों में कलाकारों को पर्याप्त पैसे नहीं मिल पाते हैं.
संदीप ने बताया कि उस समय साल 2000 में 12वीं की परीक्षा दी थी. इसके बाद समझ में नहीं आ रहा था कि आगे क्या करना है. फिर एक व्यक्ति ने मुझे सुझाव दिया कि मुझे थिएटर ज्वाइन करना चाहिए. कला के क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहिए. वर्ष 2000 में ही मैंने थिएटर ज्वाइन किया. इस तरह से मैंने थिएटर की दुनिया में कदम रखा था. उस समय थिएटर की पहली अध्यापिका रमा अरुण त्रिवेदी थीं. उन्होंने बड़े ही सहज भाव से मुझे कला का ज्ञान दिया. इसके बाद कला की बारीकियों को समझा जाना स्क्रिप्ट में दिए गए मरे हुए पात्र को अपनी कला से उसमें जान डाली. थियेटर आपको भावुकता, मानवता और एक अच्छा इंसान बनाता है. पर्सनालिटी को डेवलेप करता है. सहज और रियल बनाता है. थिएटर आपको मंच देता है. आपको निडर और सच्चा बनाता है. आपको मंच फेस करना सिखाता है.
स्वयं करें चिंतन और स्वयं का करें आकलन : एक्टर महेश चंद्र देवा ने कहा कि वर्ष 2001 में रंगमंच करना शुरू किया. उस समय लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रहे थे. उस समय नया-नया रंगमंच शुरू किया था तो बहुत सी चीजों को लेकर मन में जिज्ञासाएं थीं. हर चीज सीखने की ललक थी और धीरे-धीरे करके बहुत सारी संस्थाओं से मिले बहुत सारे कलाकारों से भेंट हुई और रंगमंच के द्वारा सीखी हुई प्रतिभा हमेशा मेरे साथ रहे जो बारी किया हमने रंगमंच से सीखा है. आज के समय के कलाकार बहुत कुछ सोशल मीडिया से सीख रहे हैं. इसीलिए बहुत ही कम समय में कलाकार फेमस तो होते हैं, लेकिन टिक नहीं पाते हैं. एक-दो प्रोजेक्ट के बाद उन्हें काम नहीं मिलता हैं.
महेश चंद्र देवा ने कहा कि रंगमंच से जुड़ा हुआ कलाकार जब अभिनय करता है और पात्र में घुसता है तो उस कहानी में जान डाल देता है. रंगमंच हमारे लिए इसलिए भी जरूरी है कि आपका मनोबल भी बढ़ाता है साथ ही आपकी पर्सनालिटी भी डेवलेप करता है. आज के सोशल मीडिया के कलाकारों का हाल 'अधजल गगरी छलकत जाएं' जैसा है. किसी भी काम को जब आप आधी जानकारी के साथ करते हैं तो वह अधूरा ही रह जाता है. आधी जानकारी लिया हुआ इंसान ज्यादा समय तक इंडस्ट्री में नहीं चल पाता है. इसलिए बहुत ज्यादा जरूरी है कि जब आप कला के क्षेत्र में आगे बढ़े तो रंगमंच से जरूर जुड़े पात्र में डालना सीखे अपने अंदर की कला को और निखारे. आज के युवा कलाकार जो फिल्म जगत में काम करना चाहते हैं उनको जरूरत है चिंतन करने की, स्वयं का आकलन करने की, कहां क्या कमी हो रही है, उसे पूरा करने की. इस इंडस्ट्री में काम पाना तो आज के समय में थोड़ा आसान हो गया है, लेकिन एक बार ऊंचाई पर जाकर वहीं पर टिके रहना, बेहद मुश्किल है. इसके लिए जरूरी है कि आपको कला की बारीकियों के बारे में जानकारी हो.