लखनऊ: भले ही अभी यूपी विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election - 2022) को समय है, लेकिन अभी से ही दलगत नेता अपनी तैयारियों में जुट गए हैं, ताकि किसी तरह से चुनावी वैतरणी को पार किया जा सके. वहीं, अगर बात पूर्वांचल (Purvanchal) क्षेत्र की करें तो फिर यहां हार-जीत के मध्य एक सबसे अहम फैक्टर काम करता है और वो है जाति समीकरण (caste equation).
पूर्वांचल की कुल 156 सीटों में से 61 सीटें ऐसी हैं, जहां किसी प्रत्याशी के भाग्य का फैसला उसके द्वारा किए गए काम या फिर उसकी योग्यता पर नहीं, बल्कि उस विधानसभा क्षेत्र में उसकी जाति के लोगों की संख्या पर निर्भर करता है. यहां तक कि क्षेत्र के बड़े नेता भी चुनावी वैतरणी पार करने को यहां जाति-धर्म का सहारा लेते हैं.
भले ही अभी विधानसभा चुनाव को सालभर का समय हो, लेकिन अभी से ही पूर्वांचल जातीयता और धर्म के दलदल में धंसने लगा है. यहां सियासी पार्टियां हो या फिर प्रत्याशी, सभी धर्म और जाति के नाव पर चढ़कर ही चुनावी वैतरणी पार करना चाहते हैं. इतना ही नहीं यहां पार्टियां भी जाति और धर्म के आधार पर ही सीटों पर प्रत्याशियों के नामों की घोषणा करती हैं.
प्रत्याशियों का नाम फाइनल करने से पहले पार्टी इस बात से अवगत होना चाहते हैं कि संबंधित सीट पर जातिगत फैक्टर क्या है, इसके बाद जीत-हार के अंतर के आधार पर टिकट फाइनल होते हैं. दरअसल, यूपी की सत्ता के गलियारों का रास्ता पूर्वी उत्तर प्रदेश से होकर ही गुजरता है.
वहीं, ठेठ पूर्वांचल में 156 सीटें हैं. इनमें से 61 सीटों पर जीत-हार का फैसला यहां की जाति समीकरण पर निर्भर करता है. यही कारण है कि पूर्वांचल में सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला अधिक प्रभावी होता है. अगर जातिगत आंकड़ों की बात करें तो सबसे अधिक संख्या दलितों की है. इसके बाद पिछड़ी जातियां और फिर ब्राह्मण-राजपूत आते हैं. इधर, अगर धर्म के आधार पर बात की जाए तो कई सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक की भूमिका में है.
चलिए सियासी पार्टियों के जाति और धर्म के अनुसार तैयार जातिगत आंकड़ों पर नजर डालते हैं. हरिजन, मुस्लिम और यादव मतदाताओं की संख्या यहां सबसे अधिक है. इसके बाद पटेल और राजभर कुछ सीटों पर निर्णायक की भूमिका में हैं.
( उक्त आंकड़ें स्थानीय नेताओं से बातचीत करने पर मिले हैं, ऐसे में इसकी सटीकता का ईटीवी भारत पुष्टि नहीं करता है.)
इसके इतर, क्षेत्र में जाति के आधार पर ही किसी नेता को सियासी पार्टियां दायित्व सौंपती हैं. इतना ही नहीं विधानसभा चुनाव से पहले बढ़ी सियासी पार्टियों की सक्रियता और इलाकेवार जमीनी सर्वेक्षण के बाद ही पार्टियां अपने योद्धाओं को मैदान में उतार रही हैं. लेकिन इन सब के बीच सबसे अहम नेताओं की जाति ही है.
वहीं, सूत्रों की मानें तो सूबे में अपने खोते जनाधार को किसी तरह से हासिल करने को कांग्रेस ने मुस्लिम और ब्राह्मणों पर दांव खेलने का मन बनाया है तो भाजपा इलाके व क्षेत्रवार कार्ड खेलना चाहती है. लेकिन पूर्वांचल में सपा मुस्लिम और यादव कार्ड को ही बतौर हथियार इस्तेमाल करना चाहती है. हालांकि, बसपा सुप्रीमो मायावती की खामोशी आगे उनके लिए परेशानी का सबब बन सकता है.
पूर्वांचल की सीटों का गणित
पूर्वांचल में कुल 26 जिले हैं और यहां विधानसभा की 156 सीटें हैं. अगर 2017 के विधानसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो भाजपा ने 106 सीटों पर जीत दर्ज की थी तो वहीं, सपा को 18, बसपा को 12, अपना दल को 8, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को 4, कांग्रेस को 4 और निषाद पार्टी को एक सीट पर जीत मिली थी, जबकि तीन निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी जीत दर्ज की थी.
इसके इतर अगर बात 2019 के लोकसभा चुनाव की करें तो यहां 26 जिलों में कुल 29 लोकसभा सीटें हैं और 2019 के लोकसभा चुनाव में यहां भाजपा को 22 सीटों पर जीत मिली थी तो सपा और बसपा गठबंधन को 6 सीटें मिली थी, जबकि कांग्रेस के खाते में एक सीट आई थी.