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UP Jails : यूपी की जेलों में अपराध होने पर बंद हो जाती है 'तीसरी आंख'

यूपी की जेलों में कैदियों (UP Jails) की निगरानी सीसीटीवी से की जाती है. सुरक्षा के बड़े-बड़े दावे भी किए जाते हैं, लेकिन कुछ घटनाओं ने सवाल खड़े कर दिए हैं. यूपी की जेलें बीते कुछ वर्षों में खूब चर्चा में रही हैं.

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Published : Feb 17, 2023, 2:38 PM IST

पूर्व डीजीपी अरविंद कुमार जैन

लखनऊ : उत्तर प्रदेश में योगी सरकार बनने के बाद से ही ये दावा किया जाने लगा था कि राज्य की जेलें सबसे सुरक्षित हैं. बिना अधिकारियों की जानकारी के एक परिंदा भी पर नहीं मार सकता है. चौबीस घंटे सीसीटीवी कैमरों से नजर रखी जाती है और माफियाओं के तो यूपी की जेल में घुटने कांपने लगे है, लेकिन ये दावे उस वक्त धराशाई हो गए जब बागपत जेल में बजरंगी की हत्या, चित्रकूट जेल में शूटआउट, रायबरेली में अपराधी अय्याशी करते और चित्रकूट जेल को अब्बास अंसारी का आरामगाह बनाने जैसे मामले सामने आए. ऐसे में अब सवाल उठता है कि ऐसे कैसे जेल विभाग के पास मौजूद उपकरण माफियाओं की अंधेरगर्दी के आगे बेदम हो जाते हैं. आइए जानते हैं कि यूपी की जेलें बीते कुछ वर्षों में कब-कब चर्चा में रही हैं.

चित्रकूट जेल में बंद रहे अब्बास अंसारी बीते एक महीने से अपनी पत्नी से ऐशो आराम से मुलाकात कर रहा था, लेकिन उसे आलाधिकारी देख नहीं सके, जबकि चित्रकूट हाई सिक्योरिटी जेल है और वहां लगे सीसीटीवी कैमरों पर जेल अधीक्षक के साथ ही लखनऊ में मौजूद कारागार मुख्यालय से नजर रखी जाती है. जेल विभाग का तर्क है कि इन दिनों कुछ तकनीकी खामियां आ गई थीं, जिस वजह से कारागार मुख्यालय में बने कंट्रोल रूम में मौजूद जेलकर्मी चित्रकूट जेल में चल रहे 'खेल' को देख नहीं पाए. जेल विभाग के पीआरओ संतोष वर्मा से ईटीवी भारत ने बातचीत की तो उन्होंने बताया कि 'राज्य की सभी जेलों में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं. जिसकी मॉनिटरिंग जेल अधीक्षक तो करता ही है, साथ ही लखनऊ में मौजूद जेल मुख्यालय के कंट्रोल रूम में भी चौबीस घंटे नजर रखी जाती है. यही नहीं जिस जेल में खूंखार अपराधी और माफिया बंद हैं उनकी मॉनिटरिंग तो खुद डीजी जेल आनंद कुमार करते हैं. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर इन सब के बाद भी जेलें अब तक सुरक्षित क्यों नहीं हो सकी हैं.'


वरिष्ठ पत्रकार राघवेंद्र त्रिपाठी बताते हैं कि 'यूपी के जेलों को कभी माफिया अपने अय्याशी का अड्डा मानते थे. उन्हें कभी भी जेल जाने से डर नहीं लगा, क्योंकि वे जानते थे कि वहां उनके लिए ऐशो आराम की हर चीज मौजूद रहेगी, लेकिन योगी सरकार बनने के बाद ये जरूर है कि जेल सुधार में काम हुआ है. सीसीटीवी कैमरों से जेल लैस हुई हैं, जेल कर्मियों के पास बॉडी वॉर्न कैमरे हैं, भ्रष्टाचार को खत्म करने की कोशिश की गई है, हालांकि फिर भी ये सब नाकाफी साबित ही हो रहे हैं. चित्रकूट जेल में जिस तरह वॉर्डर से लेकर जेल अधीक्षक सभी एक माफिया के हाथों बिक चुके थे इससे साबित होता है कि जेल में भ्रष्टाचार की जड़ें अब भी फैली हुई हैं. यही नहीं चूक बड़े स्तर पर भी हुई है, जब मॉनिटरिंग जेल मुख्यालय से होती थी तो आखिर इतने दिनों कैसे आंखें बंद रहीं.'


दरअसल, यूपी में योगी सरकार बनने के बाद से जेल सुधार के लिए सरकार और अधिकारियों ने कई कोशिश की हैं. बावजूद इसके जेल में भ्रष्टाचार और अपराधिक घटनाओं की खबरें आम होती रही हैं. इसकी शुरूआत साल 2018 को बागपत की जेल से हुई जब वहां मुख्तार अंसारी के शूटर माफिया मुन्ना बजरंगी की हत्या कर दी गई, जेल के अंदर पिस्टल कैसे आई कौन लेकर आया वहां लगे सीसीटीवी कैमरों में कैद नहीं हो पाया. यही नहीं रायबरेली जेल में कैदियों को शराब सिगरेट मुहैया कराई जाती थी. 2018 में रायबरेली जेल का वीडियो वायरल हुआ था. वीडियो में लखनऊ विश्वविद्यालय छात्र नेता विनोद त्रिपाठी की हत्या के मामले में बंद अंशु दीक्षित शराब पीते और मोबाइल यूज करते हुए दिख रहा था. साल 2021 को इसी अंशु दीक्षित ने चित्रकूट जेल में भी तांडव मचाया था. जेल में मुख्तार अंसारी के दो गुर्गों मुकीम काला और मेराज की गोलियों से भूनकर हत्या कर दी गई. हैरानी की बात थी कि उस चित्रकूट जेल के एक भी सीसीटीवी कैमरे काम नहीं कर रहे थे. इन तीनों ही बड़ी वारदातों में जेलकर्मियों की भूमिका पर हर बार सवाल उठे थे. बागपत और चित्रकूट जेल की दोनों ही वारदातों में तो एक ही वॉर्डर जगमोहन की उपस्थिति ने पूरी व्यवस्था पर सवाल उठा दिए.



पूर्व डीजीपी अरविंद कुमार जैन बताते हैं कि 'यूपी की जेलों के सुधार के लिए काम हो रहा है ये सच है, लेकिन ये भी सच है कि जेल से समय समय पर ऐसी सूचनाएं आती हैं जो सोचने को मजबूर कर देती हैं. पूर्व डीजीपी कहते हैं कि जेल से भ्रष्टाचार को दूर करने का एक ही उपाय है कि जो जेल आरक्षी नए भर्ती हो रहे हैं उन्हें जल्द तैनाती देकर वहां पहले से तैनात आरक्षी और वॉर्डर को सुदूर जेलों में तैनात किया जाए. यही नहीं जिनकी शिकायतें अधिक हों उन्हें तो प्रशासनिक आधार पर स्थानांतरित कर दूर की जेलों में भेजें. जैन कहते हैं कि जेल कर्मियों की रिक्तियां समय पर भरी नहीं जाती है. इसमें पुराने कर्मी अपना आधिपत्य स्थापित कर लेते हैं.'

यह भी पढ़ें : Pradhan Mantri Awas Yojana : यूपी में पांच साल में 50 हजार गरीबों को आवंटित हुए आवास, 15 लाख अभी भी कतार में

पूर्व डीजीपी अरविंद कुमार जैन

लखनऊ : उत्तर प्रदेश में योगी सरकार बनने के बाद से ही ये दावा किया जाने लगा था कि राज्य की जेलें सबसे सुरक्षित हैं. बिना अधिकारियों की जानकारी के एक परिंदा भी पर नहीं मार सकता है. चौबीस घंटे सीसीटीवी कैमरों से नजर रखी जाती है और माफियाओं के तो यूपी की जेल में घुटने कांपने लगे है, लेकिन ये दावे उस वक्त धराशाई हो गए जब बागपत जेल में बजरंगी की हत्या, चित्रकूट जेल में शूटआउट, रायबरेली में अपराधी अय्याशी करते और चित्रकूट जेल को अब्बास अंसारी का आरामगाह बनाने जैसे मामले सामने आए. ऐसे में अब सवाल उठता है कि ऐसे कैसे जेल विभाग के पास मौजूद उपकरण माफियाओं की अंधेरगर्दी के आगे बेदम हो जाते हैं. आइए जानते हैं कि यूपी की जेलें बीते कुछ वर्षों में कब-कब चर्चा में रही हैं.

चित्रकूट जेल में बंद रहे अब्बास अंसारी बीते एक महीने से अपनी पत्नी से ऐशो आराम से मुलाकात कर रहा था, लेकिन उसे आलाधिकारी देख नहीं सके, जबकि चित्रकूट हाई सिक्योरिटी जेल है और वहां लगे सीसीटीवी कैमरों पर जेल अधीक्षक के साथ ही लखनऊ में मौजूद कारागार मुख्यालय से नजर रखी जाती है. जेल विभाग का तर्क है कि इन दिनों कुछ तकनीकी खामियां आ गई थीं, जिस वजह से कारागार मुख्यालय में बने कंट्रोल रूम में मौजूद जेलकर्मी चित्रकूट जेल में चल रहे 'खेल' को देख नहीं पाए. जेल विभाग के पीआरओ संतोष वर्मा से ईटीवी भारत ने बातचीत की तो उन्होंने बताया कि 'राज्य की सभी जेलों में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं. जिसकी मॉनिटरिंग जेल अधीक्षक तो करता ही है, साथ ही लखनऊ में मौजूद जेल मुख्यालय के कंट्रोल रूम में भी चौबीस घंटे नजर रखी जाती है. यही नहीं जिस जेल में खूंखार अपराधी और माफिया बंद हैं उनकी मॉनिटरिंग तो खुद डीजी जेल आनंद कुमार करते हैं. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर इन सब के बाद भी जेलें अब तक सुरक्षित क्यों नहीं हो सकी हैं.'


वरिष्ठ पत्रकार राघवेंद्र त्रिपाठी बताते हैं कि 'यूपी के जेलों को कभी माफिया अपने अय्याशी का अड्डा मानते थे. उन्हें कभी भी जेल जाने से डर नहीं लगा, क्योंकि वे जानते थे कि वहां उनके लिए ऐशो आराम की हर चीज मौजूद रहेगी, लेकिन योगी सरकार बनने के बाद ये जरूर है कि जेल सुधार में काम हुआ है. सीसीटीवी कैमरों से जेल लैस हुई हैं, जेल कर्मियों के पास बॉडी वॉर्न कैमरे हैं, भ्रष्टाचार को खत्म करने की कोशिश की गई है, हालांकि फिर भी ये सब नाकाफी साबित ही हो रहे हैं. चित्रकूट जेल में जिस तरह वॉर्डर से लेकर जेल अधीक्षक सभी एक माफिया के हाथों बिक चुके थे इससे साबित होता है कि जेल में भ्रष्टाचार की जड़ें अब भी फैली हुई हैं. यही नहीं चूक बड़े स्तर पर भी हुई है, जब मॉनिटरिंग जेल मुख्यालय से होती थी तो आखिर इतने दिनों कैसे आंखें बंद रहीं.'


दरअसल, यूपी में योगी सरकार बनने के बाद से जेल सुधार के लिए सरकार और अधिकारियों ने कई कोशिश की हैं. बावजूद इसके जेल में भ्रष्टाचार और अपराधिक घटनाओं की खबरें आम होती रही हैं. इसकी शुरूआत साल 2018 को बागपत की जेल से हुई जब वहां मुख्तार अंसारी के शूटर माफिया मुन्ना बजरंगी की हत्या कर दी गई, जेल के अंदर पिस्टल कैसे आई कौन लेकर आया वहां लगे सीसीटीवी कैमरों में कैद नहीं हो पाया. यही नहीं रायबरेली जेल में कैदियों को शराब सिगरेट मुहैया कराई जाती थी. 2018 में रायबरेली जेल का वीडियो वायरल हुआ था. वीडियो में लखनऊ विश्वविद्यालय छात्र नेता विनोद त्रिपाठी की हत्या के मामले में बंद अंशु दीक्षित शराब पीते और मोबाइल यूज करते हुए दिख रहा था. साल 2021 को इसी अंशु दीक्षित ने चित्रकूट जेल में भी तांडव मचाया था. जेल में मुख्तार अंसारी के दो गुर्गों मुकीम काला और मेराज की गोलियों से भूनकर हत्या कर दी गई. हैरानी की बात थी कि उस चित्रकूट जेल के एक भी सीसीटीवी कैमरे काम नहीं कर रहे थे. इन तीनों ही बड़ी वारदातों में जेलकर्मियों की भूमिका पर हर बार सवाल उठे थे. बागपत और चित्रकूट जेल की दोनों ही वारदातों में तो एक ही वॉर्डर जगमोहन की उपस्थिति ने पूरी व्यवस्था पर सवाल उठा दिए.



पूर्व डीजीपी अरविंद कुमार जैन बताते हैं कि 'यूपी की जेलों के सुधार के लिए काम हो रहा है ये सच है, लेकिन ये भी सच है कि जेल से समय समय पर ऐसी सूचनाएं आती हैं जो सोचने को मजबूर कर देती हैं. पूर्व डीजीपी कहते हैं कि जेल से भ्रष्टाचार को दूर करने का एक ही उपाय है कि जो जेल आरक्षी नए भर्ती हो रहे हैं उन्हें जल्द तैनाती देकर वहां पहले से तैनात आरक्षी और वॉर्डर को सुदूर जेलों में तैनात किया जाए. यही नहीं जिनकी शिकायतें अधिक हों उन्हें तो प्रशासनिक आधार पर स्थानांतरित कर दूर की जेलों में भेजें. जैन कहते हैं कि जेल कर्मियों की रिक्तियां समय पर भरी नहीं जाती है. इसमें पुराने कर्मी अपना आधिपत्य स्थापित कर लेते हैं.'

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