लखनऊ: यूं तो कोरोना वायरस के इलाज के लिए तमाम तरह की दवाइयां प्रयोग की जा रही हैं और वैक्सीन बन रही हैं, लेकिन इससे परे जब किसी भी व्यक्ति में कोरोना संक्रमण की पुष्टि होती है तो उसके आसपास के लोग और स्वयं मरीज में भी एक डर का माहौल पैदा हो जाता है. इसकी वजह से न केवल मरीज बल्कि उसके परिवार के साथ भी लोगों का व्यवहार बदल जाता है. विशेषज्ञ कहते हैं कि संक्रमित मरीज के प्रति सहानुभूति और सकारात्मकता उसे ठीक होने में अधिक मदद करती है और साथ ही उनके परिवार का भी संबल बनती है.
सहानुभूति बेहद जरूरी
कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के लिए सहानुभूति और उनके साथ सकारात्मक व्यवहार बेहद जरूरी होता है, क्योंकि यह उन्हें बीमारी से निपटने का संबल भी देता है. कोरोना के शुरुआती दौर में किसी भी व्यक्ति के संक्रमित होने के बारे में पता चलते ही लोग उससे किनारा करने लगे थे. 18 मार्च को लखीमपुर खीरी जिले के मैगलगंज निवासी उमाशंकर में कोरोना संक्रमण की पुष्टि हुई थी. उन्होंने बताया कि जब उनके जानने वालों को पता चला कि यह संक्रमण उन्हें हो गया है तो वह फोन पर भी बात नहीं करना चाह रहे थे. उस दौरान उनके परिवार को अकेले ही रहना पड़ा.
'डॉक्टरों का लगातार मिलता रहा सहयोग'
उमाशंकर बताते हैं, 'आस-पड़ोस के लोग भी मेरे घर आने से और परिवार वालों से बात करने से भी डर रहे थे. उस वक्त मुझे बहुत निराशा हुई थी. संक्रमण की पुष्टि के बाद मैं केजीएमयू के कोरोना वार्ड में भर्ती रहा. यहां पर लगातार डॉक्टरों का सहयोग मिलता रहा, बातचीत होती रही और वरिष्ठ डॉक्टर लगातार फोन पर हमें सांत्वना देते रहे कि यदि कोई परेशानी होती है तो मैं उनसे संपर्क कर सकता हूं. अस्पताल के कर्मचारियों के सकारात्मक व्यवहार की वजह से मैं जल्दी तो ठीक हो गया, लेकिन कहीं न कहीं यह निराशा जरूर रही कि लोगों में डर की वजह से मेरे परिवार को अकेले इन सब का सामना करना पड़ा.
समय के साथ लोगों में आया बदलाव
समय के साथ-साथ लोगों में भी डर का माहौल कम हुआ और लोगों ने अपने आस-पड़ोस में आ रहे संक्रमित व्यक्तियों का साथ देना भी शुरू किया. इस बारे में अलीगंज निवासी रवि प्रताप सिंह कहते हैं, 'मुझे जुलाई में कोरोना वायरस के संक्रमण की पुष्टि हुई थी. मैं बहुत डर गया था कि अब लोग मुझसे दूर भागेंगे. इसी वजह से जब मुझे अस्पताल ले जाने के लिए एंबुलेंस आई तो मैं सब से नजरें छुपा कर चुपचाप एंबुलेंस में बैठ गया, लेकिन मेरे जाने वालों और पड़ोसियों का व्यवहार मेरे परिवार के प्रति बहुत अच्छा रहा. जितने दिन तक मैं अस्पताल में रहा, उतने दिनों तक सभी ने मेरे परिवार का ख्याल रखा और जरूरत पड़ने पर साथ खड़े रहे.'
'ऐसा लगा ही नहीं कि सरकारी अस्पताल में हूं'
रवि बताते हैं, 'इसके अलावा मैं राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के कोविड-19 अस्पताल में भर्ती हुआ था. यहां पर भी हेल्थ केयर वर्कर्स और डॉक्टरों का व्यवहार देख कर मुझे यकीन नहीं हुआ कि मैं किसी सरकारी अस्पताल में हूं. यहां पर समय-समय पर नर्स और अन्य हेल्थ केयर वर्कर्स आकर हाल चाल लेते थे, समय पर खाना मिलता था और सीनियर डॉक्टर्स दिन में कई बार फोन कर हमारी काउंसलिंग करते थे. उनकी पॉजिटिव अप्रोच की वजह से 10 दिन मैंने अस्पताल में कैसे बिता दिए, मुझे पता भी नहीं चले. आज भी जब मैं उन दिनों को याद करता हूं तो मेरे दिल में डर के बजाए बेहतरीन यादें संजोई रहती हैं.'
'एडीजी महोदय ने हमें बहुत संबल दिया'
लखनऊ के जीआरपी में कार्यरत पुलिसकर्मी कमलेश मौर्य कहते हैं, 'हमें अन्य साथियों के साथ कोरोना संक्रमण की पुष्टि हुई थी और हम राम सागर मिश्रा कोविड-19 अस्पताल में भर्ती हुए थे. हम 10 दिन तक अस्पताल में भर्ती रहे थे. उस दौरान हमारे रेलवे के एडीजी महोदय ने हमें बहुत संबल दिया. वह हर दो-तीन दिन पर हमें फोन करते थे और प्रोत्साहित करते थे कि हम जल्दी ठीक हो जाएंगे और वापस घर चले जाएंगे. हमें इस बात की खुशी है कि हम उनके अंडर में रहकर काम कर रहे हैं.'
'कोरोना मरीजों के साथ करें अच्छा व्यवहार'
किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के सीएमएस डॉक्टर एसएन शंखवार कहते हैं, 'आमतौर पर जब हम बीमार होते हैं तो हमें लगता है कि हमसे मिलने वाला हमारे साथ सहानुभूति रखे और बेहतर व्यवहार करे. इसी तरह हमें भी कोविड-19 से संक्रमित मरीजों के साथ बेहतर व्यवहार करना चाहिए क्योंकि हमारी पॉजिटिव एनर्जी मरीज के अंदर भी सकारात्मकता लेकर आती है. कई स्टडीज यह भी कहती हैं कि जब मरीज के अंदर पॉजिटिव एनर्जी रहती है तो शरीर में साइटोकिनिन और इसी तरह के अन्य हार्मोन रिलीज होते हैं जो उसे जल्दी ठीक होने में मदद करते हैं.'
समय से इलाज मिलना जरूरी
डॉक्टर शंखवार कहते हैं, 'कोविड-19 के संक्रमण के दौरान हम यह देख रहे हैं कि जैसे ही किसी में संक्रमण की पुष्टि होती है तो लोगों का नजरिया और व्यवहार उनके प्रति बदल जाता है. ऐसा बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए. वायरल बीमारियों की तरह कोविड-19 भी फ्लू जैसी ही एक बीमारी है. बस इसकी इनफेक्टिविटी ज्यादा होती है. इस वजह से यह दूसरों में ज्यादा तेजी से फैल जाती है. उन्होंने बताया कि यह देखा गया है कि 80% मरीज जल्दी ठीक हो जाते हैं और एक बार इनकी जांच निगेटिव आने के बाद यह संक्रमण नहीं फैलाते हैं. ऐसे लोग जिनमें कुछ कोमोरबिड परेशानियां होती हैं जैसे कि ओबेसिटी, डायबिटीज या फिर वह कैंसर की दवाइयां या एस्ट्रॉयड दवाइयां ले रहे होते हैं, उनमें दिक्कत आती है, लेकिन यदि उन्हें समय से इलाज मिल जाए तो वह भी ठीक हो जाते हैं.'
'मरीजों के प्रति मन में न हो दुर्भावना'
डॉ. शंखवार ने बताया कि एक मरीज के साथ सौहार्दपूर्ण और अच्छा व्यवहार कर उनका समुचित सहयोग करना चाहिए. उनके प्रति किसी भी प्रकार की दुर्भावना नहीं होनी चाहिए. केजीएमयू के कोरोनावायरस वार्ड में मानसिक रोग विभाग के एक डॉक्टर की तैनाती की जाती है, जो व्यक्ति के किसी भी तरह की परेशानी होने पर उनकी काउंसलिंग करते हैं और उनकी समस्या का निराकरण करने की कोशिश करते हैं. इससे मरीजों में सकारात्मकता आती है और जल्दी ठीक होने का आत्मविश्वास भी पैदा होता है.
'डर को खत्म करना जरूरी'
किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के मानसिक चिकित्सा रोग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर भूपेंद्र सिंह कहते हैं, 'कोविड-19 वार्ड में पिछले हफ्ते मैंने ड्यूटी की है. वहां पर तरह-तरह के मरीजों से हमारा मिलना जुलना हुआ. इस आधार पर मैं कुछ बातें जरूर कहना चाहता हूं. पहली बात कि जो मरीज वहां पर आते हैं, उन्हें एम्पेथिक और सिंपैथिक केयर की अधिक जरूरत होती है. मरीज के अंदर बैठे डर को खत्म करने की बेहद जरूरत होती है. दूसरी बात, हमें मरीज के साथ पारिवारिक माहौल बनाए रखने की बेहद जरूरत होती है. इससे उन्हें यह महसूस होता है कि उनका पूरा ध्यान रखा जा रहा है. तीसरी बात उनके अंदर सकारात्मक ऊर्जा लाने की बेहद जरूरत होती है कि वह जल्दी ठीक हो जाएंगे और अपने परिवार के पास जल्दी पहुंच सकते हैं.'
मददगार साबित हो रही 'सहानुभूति'
कुल मिलाकर पॉजिटिव एनर्जी और 'सहानुभूति' की सिरप कोविड-19 से संक्रमित व्यक्तियों के लिए दवाई से ज्यादा मददगार साबित हो सकती हैं क्योंकि इससे मरीज खुद में आत्मविश्वास जगा सकता है कि वह बेहतर हो सकता है और ठीक होकर वापस अपने घर जा सकता है. इसलिए यदि आपके आसपास भी किसी व्यक्ति में संक्रमण की पुष्टि हो तो मरीज और उनके परिवार के साथ सामान्य रहकर उनमें ठीक होने का जज्बा बढ़ाने की कोशिश जरूर कीजिए.