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पंडित जवाहर लाल नेहरू की जयंती पर ईटीवी भारत के दफ्तर में सजी कवियों की महफिल - पंडित जवाहर लाल नेहरू की जयंती

पंडित जवाहर लाल नेहरू की जयंती पर ईटीवी भारत के लखनऊ स्थित दफ्तर पर कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया. इस महफिल में देश के जाने-माने कवियों ने शिरकत की.

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Published : Nov 16, 2019, 1:22 AM IST

लखनऊ: देश के पहले प्रधानमंत्री स्वर्गीय पंडित जवाहर लाल नेहरू की जयंती पर ईटीवी भारत के लखनऊ स्थित दफ्तर में देश के जाने-माने कवियों की महफिल सजी. इस मौके पर कवियों और शायरों ने एक से बढ़कर एक रचनाओं का काव्य पाठ किया.

कवि सम्मेलन का आयोजन.

कवियों ने महफिल में लगाए चार चांद
श्रृंगार, व्यंग्य और वीर रस की कविताओं से सराबोर कवियों और शायरों के इस संगम ने श्रोताओं का दिल जीत लिया. प्रसिद्ध व्यंग्य कवि पंकज प्रसून, युवा शायर क्षितिज कुमार, श्रृंगार रस की प्रसिद्ध कवयित्री शिखा श्रीवास्तव और ओज के शसक्त कवि अभय सिंह 'निर्भीक' ने अपनी कविताओं और शेरो-शायरी से महफिल में चार चांद लगा दिए.

कवि क्षितिज कुमार ने किया महफिल का आगाज
कवि क्षितिज कुमार ने अपने शेर से महफिल का आगाज किया. 'बड़े अदब से शराफत के साथ मिलते हैं, यहां के लोग नजाकत के साथ मिलते हैं. रहे कहीं भी जमाने में लखनऊ वाले, सभी से प्यार मोहब्बत के साथ मिलते हैं. 'किसी मुश्किल की तरह हल नहीं होना मुझको, जो बरस जाए वह बादल नहीं होना मुझको, सबको दौड़ाता फिरूं हाथ में पत्थर लेकर, इश्क में इतना भी पागल नहीं होना मुझको, जो भी चाहे वह बसा ले यहां आकर बस्ती, इतना आसान भी जंगल नहीं होना मुझको, अगर बनाना है तो मांग का सिंदूर बना, बस तेरी आंख का काजल नहीं होना मुझको'.

कुछ यूं था क्षितिज कुमार का दूसरा शेर
दूसरा शेर पढ़ा कि 'उनकी राहों में भला पलके बिछाएं कब तक, आने वाले हैं मगर देखिए आएं कब तक, अब मेरे ख्वाब हकीकत में बदल दे या रब, उनकी तस्वीर से काम चलाएं कब तक'. इसके बाद पढ़ा कि 'जो चाहता हूं वह मंजर बनाकर रखता हूं, मैं कागजों पर समंदर बनाके रखता हूं, वह धड़कनों की तरह लौट भी तो सकता है, मैं दिल में उसके लिए घर बनाके रखता हूं'.

शिखा श्रीवास्तव ने कही नारी सम्मान की बात
कवयित्री शिखा श्रीवास्तव ने नारियों का पक्ष रखते हुए पढ़ा कि 'मैं नारी चाहत का एक समंदर रखती हूं, संग हौसलों के मैं चाहत के पर रखती हूं, घर से लेकर दफ्तर तक की जिम्मेदारी है, कदमों में धरती आंखों में अंबर रखती हूं. 'मैं नारी हूं नारी का सम्मान समेटे हूं, मातु शारदे ने जो दिया वह वरदान समेटे हूं, मुझमें गीतों-गजलों का इक झरना बहता है, लेकिन दिल में जन गण मन का गान समेटे हूं.

सीता हो तो राम के संग बनवास जरूरी है
उन्होंने आगे पढ़ा कि 'हर एक सपना सच होगा यह आस जरूरी है, सीता हो तो राम के संग बनवास जरूरी है, चाहे जितनी दूरी हो पर रिश्तों की खातिर, तुम मेरे हो मन में यह विश्वास जरूरी है'. 'हम नहीं इश्क का मियार गिराने वाले, कुछ कहें कुछ भी कहें हमको जमाने वाले, खत्म होता है तो हो जाए सांसों का सफर, उठकर अब हम नहीं दर से तेरे जाने वाले, हम तो जी लेंगे इसी हाल में हैरानी में, खुश रहे तू ए मेरे दिल को दुखाने वाले'.

लखनऊ: देश के पहले प्रधानमंत्री स्वर्गीय पंडित जवाहर लाल नेहरू की जयंती पर ईटीवी भारत के लखनऊ स्थित दफ्तर में देश के जाने-माने कवियों की महफिल सजी. इस मौके पर कवियों और शायरों ने एक से बढ़कर एक रचनाओं का काव्य पाठ किया.

कवि सम्मेलन का आयोजन.

कवियों ने महफिल में लगाए चार चांद
श्रृंगार, व्यंग्य और वीर रस की कविताओं से सराबोर कवियों और शायरों के इस संगम ने श्रोताओं का दिल जीत लिया. प्रसिद्ध व्यंग्य कवि पंकज प्रसून, युवा शायर क्षितिज कुमार, श्रृंगार रस की प्रसिद्ध कवयित्री शिखा श्रीवास्तव और ओज के शसक्त कवि अभय सिंह 'निर्भीक' ने अपनी कविताओं और शेरो-शायरी से महफिल में चार चांद लगा दिए.

कवि क्षितिज कुमार ने किया महफिल का आगाज
कवि क्षितिज कुमार ने अपने शेर से महफिल का आगाज किया. 'बड़े अदब से शराफत के साथ मिलते हैं, यहां के लोग नजाकत के साथ मिलते हैं. रहे कहीं भी जमाने में लखनऊ वाले, सभी से प्यार मोहब्बत के साथ मिलते हैं. 'किसी मुश्किल की तरह हल नहीं होना मुझको, जो बरस जाए वह बादल नहीं होना मुझको, सबको दौड़ाता फिरूं हाथ में पत्थर लेकर, इश्क में इतना भी पागल नहीं होना मुझको, जो भी चाहे वह बसा ले यहां आकर बस्ती, इतना आसान भी जंगल नहीं होना मुझको, अगर बनाना है तो मांग का सिंदूर बना, बस तेरी आंख का काजल नहीं होना मुझको'.

कुछ यूं था क्षितिज कुमार का दूसरा शेर
दूसरा शेर पढ़ा कि 'उनकी राहों में भला पलके बिछाएं कब तक, आने वाले हैं मगर देखिए आएं कब तक, अब मेरे ख्वाब हकीकत में बदल दे या रब, उनकी तस्वीर से काम चलाएं कब तक'. इसके बाद पढ़ा कि 'जो चाहता हूं वह मंजर बनाकर रखता हूं, मैं कागजों पर समंदर बनाके रखता हूं, वह धड़कनों की तरह लौट भी तो सकता है, मैं दिल में उसके लिए घर बनाके रखता हूं'.

शिखा श्रीवास्तव ने कही नारी सम्मान की बात
कवयित्री शिखा श्रीवास्तव ने नारियों का पक्ष रखते हुए पढ़ा कि 'मैं नारी चाहत का एक समंदर रखती हूं, संग हौसलों के मैं चाहत के पर रखती हूं, घर से लेकर दफ्तर तक की जिम्मेदारी है, कदमों में धरती आंखों में अंबर रखती हूं. 'मैं नारी हूं नारी का सम्मान समेटे हूं, मातु शारदे ने जो दिया वह वरदान समेटे हूं, मुझमें गीतों-गजलों का इक झरना बहता है, लेकिन दिल में जन गण मन का गान समेटे हूं.

सीता हो तो राम के संग बनवास जरूरी है
उन्होंने आगे पढ़ा कि 'हर एक सपना सच होगा यह आस जरूरी है, सीता हो तो राम के संग बनवास जरूरी है, चाहे जितनी दूरी हो पर रिश्तों की खातिर, तुम मेरे हो मन में यह विश्वास जरूरी है'. 'हम नहीं इश्क का मियार गिराने वाले, कुछ कहें कुछ भी कहें हमको जमाने वाले, खत्म होता है तो हो जाए सांसों का सफर, उठकर अब हम नहीं दर से तेरे जाने वाले, हम तो जी लेंगे इसी हाल में हैरानी में, खुश रहे तू ए मेरे दिल को दुखाने वाले'.

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for kavi sammelan 


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