हैदराबाद: उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) को बामुश्किल कुछ माह शेष बचे हैं. सभी सियासी पार्टियां जनता जनार्दन के मान मनौवल में लगी हैं. वादों और दावों के बीच जातिगत वोटों को दुरुस्त करने को नित्य नए पैंतरे आजमाएं जा रहे हैं. कोई विकास को केंद्र कर हर रोज शिलान्यास कर रहा है तो कोई खामियों को गिनवा सुनहरे सपने बांट रहा है. खैर चुनाव सिर पर है, सो ये चीजें आम हैं, लेकिन आज हम बात करेंगे सूबे की उस हरियाणवी बंगालन महिला मुख्यमंत्री की, जो अपने सख्त निर्णयों के लिए विख्यात हुईं. हालांकि, उन्हें यूपी का पैराशूट सीएम कहा गया.
आज सूबे के बिसरे सियासी किस्सों की कड़ी में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाली सुचेता कृपलानी की बात करेंगे, जो आगे चलकर उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं. लेकिन यूपी की मुख्यमंत्री बनने से पहले सुचेता कृपलानी (Sucheta Kriplani) ने अपने पति जेबी कृपलानी के साथ मिलकर किसान मजदूर प्रजा पार्टी की नींव रखी, जिसका आगे चलकर कांग्रेस में विलय हो गया.
साल 1963 से 1967 तक सुचेता उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं. इतना ही नहीं कृपलानी जवाहरलाल नेहरू की सरकार में राज्यमंत्री भी रहीं. वहीं उनकी सियासी सक्रियता और प्रभावी ओजस्वी वाणी के कायल तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें साल 1958 में कांग्रेस का महासचिव नियुक्त किया और वे 1960 तक इस पद पर बनी रहीं.
तत्कालीन पंजाब राज्य के अंबाला (हरियाणा) में एक ब्राह्मण बंगाली परिवार में जन्मी सुचेता कृपलानी भले ही पृथक राज्य से आईं, लेकिन उन्होंने अपने सख्त निर्णयों से सूबे में विकास और खासकर सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक उत्थान की दिशा में कई महत्वपूर्ण फैसले लिए. यहां तक कि कांग्रेस के विभाजन में भी इनकी अहम भूमिका थी. वहीं, कृपलानी न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री थीं.
लाहौर और दिल्ली से शिक्षा अर्जित करने के बाद उन्होंने दिल्ली से अपनी सियासी पारी का आगाज किया. लेकिन बाद में उन्हें यूपी भेज दिया गया. यहां उन्होंने न सिर्फ विधानसभा चुनाव जीता, बल्कि मुख्यमंत्री भी बनीं. हिन्दुस्तान की सियासत में अपने आदर्श विचारों व नीतियों के लिए विख्यात सुप्रसिद्ध गांधीवादी नेता जीवटराम भगवानदास कृपलानी उनके पति थे.
साल 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान एक साल के लिए सुचेता कृपलानी को जेल भी जाना पड़ा. सुचेता उन महिलाओं में से थीं, जिन्होंने महात्मा गांधी के करीब रहकर देश की आजादी की नींव रखी. सुचेता भले ही दिल की कोमल थीं, लेकिन प्रशासनिक निर्णयों के समय दिमाग की सुनती थीं. उनके मुख्यमंत्रित्व काल में यूपी के कर्मचारियों ने लगातार 62 दिनों तक हड़ताल जारी रखा, लेकिन वे कर्मचारी नेताओं से सुलह को तभी तैयार हुईं, जब उनके रुख में नरमी आई.
सुचेता ने की महिला कांग्रेस की स्थापना
साल 1940 में सुचेता कृपलानी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की महिला शाखा, 'अखिल भारतीय महिला कांग्रेस' की स्थापना की. 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के चलते एक साल के लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा. 1946 में वे संविधान सभा की सदस्य चुनी गईं और 1949 में उन्हें संयुक्त राष्ट्र महासभा में देश का प्रतिनिधि करने का मौका मिला.
नेहरू की सरकार में बनीं राज्यमंत्री
भारत को आजादी मिलने के बाद जेबी कृपलानी ने जवाहर लाल नेहरू से अलग होकर खुद की सियासी पार्टी 'किसान मजदूर प्रजा पार्टी' बनाई. वहीं, 1952 में सुचेता ने किसान मजदूर पार्टी के टिकट पर नई दिल्ली से सांसदी का चुनाव जीता, लेकिन सियासी मतभेद के कारण वे फिर से कांग्रेस में लौट आईं. 1957 में कांग्रेस के टिकट पर दोबारा दिल्ली से चुनाव जीतकर संसद पहुंची. जवाहरलाल नेहरू की सरकार में राज्यमंत्री बनीं.
बस्ती की मेंढवाल से बनीं विधायक
लेकिन अचानक प्रधानमंत्री नेहरू ने उन्हें दिल्ली से लखनऊ भेज दिया. यहां वह बस्ती की मेंढवाल विधानसभा सीट से विधायक चुनी गईं. 1963-1967 तक वे सूबे की मुख्यमंत्री रहीं. बाद में 1967 में गोंडा से जीतकर सुचेता फिर से संसद पहुंचीं और साल 1971 में उन्होंने सियासत से संन्यास ले लिया.
यूपी में सुचेता का सियासी अवतरण
वहीं, 1962 में यूपी में कांग्रेस के दो धड़े हो गए थे. एक कमलापति त्रिपाठी के साथ था और दूसरा चंद्रभानु गुप्ता के साथ. कहा यह भी जाता है कि गुप्ता ने ही सुचेता को मुख्यमंत्री बनने के लिए उकसाया था, क्योंकि गुप्ता खुद चुनाव हार गये थे. वह कमलापति को मुख्यमंत्री नहीं बनने देना चाहते थे.
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