लखनऊ: राजधानी समेत प्रदेश भर के विश्वविद्यालयों में छात्र संघ बहाली की मांग उठ रही है. इलाहाबाद विश्वविद्यालय में 200 से ज्यादा दिन हो चुके हैं. छात्र आंदोलन कर रहे हैं. मेरठ विश्वविद्यालय से भी खबरें लगातार सामने आ रही हैं. लखनऊ विश्वविद्यालय में पिछले 10 दिन से छात्र संवाद के माध्यम से माहौल तैयार किया जा रहा है.
सत्ता को भी दे सकते हैं चुनौती
लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व छात्रा और वर्तमान में समाजवादी पार्टी का चेहरा बन कर उभरी पूजा शुक्ला कहती हैं कि छात्रों के लिए अपनी आवाज को रखने का सबसे सशक्त माध्यम छात्र संघ है. सत्ता में बैठे लोग यह जानते हैं कि उन्हें अगर कोई चुनौती दे सकता है तो वह सिर्फ और सिर्फ युवा है. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का विरोध युवाओं ने ही किया था. ऐसे में उनकी आवाज को हमेशा के लिए खत्म किया जा रहा है.
प्रधानी चुनाव में ज्यादा अराजकता, उसे क्यों नहीं करते बंद
युवाओं ने सवाल खड़ा किया कि सांसद, विधायक और उससे ज्यादा प्रधानी के चुनाव में अराजकता देखने को मिलती है. हत्याएं तक होती हैं. बावजूद, यह चुनाव कराए जाते हैं. ऐसे में अराजकता का नाम लेकर छात्र संघ चुनावों को खत्म किया जाना न्याय संगत नहीं है. अगर प्रशासन को लगता है कि इसमें कुछ कमी है तो उसके सुधार के लिए काम करें.
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शिक्षा का हो रहा निजीकरण, छात्र बेबस
सपा में मऊ सदर सीट के लिए दावेदारी करने वाले एलयू के छात्र नेता अंकित सिंह बाबू कहते हैं कि राज्य विश्वविद्यालयों में भी शिक्षा का निजीकरण हो रहा है. हालत यह है कि नियमित पाठ्यक्रमों को बंद करके सेल्फ फाइनेंस पर जोर दिया जा रहा है। जेएनयू में छात्र संघ है तो प्रशासन मनमानी फीस नहीं लेता. लखनऊ विश्वविद्यालय और दूसरे राज्य विश्वविद्यालयों में पहले छात्र संघ खत्म किया गया अब एडमिनिस्ट्रेशन मनमाने ढंग से अधिकता फैला रहा है. छात्र नेता माधुर्य सिंह मधुर कहते हैं कि छात्रों को उनका हक दिलाने के लिए छात्र संघ की बहाली बेहद जरूरी है.