लखनऊ : पिछले दिनों माफिया मुख्तार अंसारी के पुत्र विधायक अब्बास अंसारी, जो चित्रकूट जेल में बंद थे, को नियम विरुद्ध तरीके से उनकी पत्नी से मुलाकात कराने के मामले में जेल अधीक्षक, जेलर व वार्डर को गिरफ्तार कर लिया गया. इस मामले में अब तक आठ लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है. पिछले महीने दस फरवरी को जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक ने संयुक्त रूप से जेल में छापेमारी कर मामले का खुलासा किया था. प्रकरण की जांच एसटीएफ और एसआईटी कर रही है. बिना पर्ची के मुलाकात कराने के लिए महंगे तोहफे, नकदी और अन्य उपहार भी लिए जाते थे, हालांकि यह पहला मामला नहीं जब इस तरह के भ्रष्टाचार का खुलासा हुआ हो. इससे पहले भी कई बार जेल में माफिया को सुविधा दिए जाने के मामले सामने आते रहे हैं, हालांकि शायद यह पहला मामला है, जब इतने बड़े स्तर पर कार्रवाई कर एक संदेश देने की कोशिश की जा रही है.
इससे पहले जेल में हुई सनसनीखेज घटनाओं की चर्चा करें तो 2021 में चित्रकूट जेल में ही सीतापुर जिले के कुख्यात बदमाश रहे अंशू दीक्षित ने उपद्रव किया था. उसने जेल के भीतर पिस्टल से मुख्तार अंसारी गैंग के शूटर मेराज और मुकीम काला को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया था. इसी तरह 2019 में गाजीपुर जेल में कुछ बदमाशों का मोबाइल प्रयोग करते हुए वीडियो सामने आया. इसी वीडियो में दिखाई दे रहा था कि जेल में सेल के भीतर ही मीट पकाया जा रहा है. इसी वर्ष उन्नाव जेल से एक अपराधी का असलहा लहराते हुए वीडियो सामने आया. 2019 में ही प्रयागराज की नैनी जेल में कुछ बदमाशों का मीट की पार्टी करते हुए वीडियो सामने आया. इस मामले में जेलर को निलंबित भी किया गया. 2018 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश स्थित बागपत जेल में माफिया सरगना मुन्ना बजरंगी की हत्या कर दी गई. इसी वर्ष रायबरेली जेल से वीडियो वायरल हुआ, जिसमें एक बदमाश शराब के साथ मोबाइल पर बात करते दिखाई दे रहा था. इस मामले में जेलर को निलंबित किया गया था. इसी तरह 2015 में एक आजीवन कारावास की सजा पाए कुख्यात माफिया को गोरखपुर के सरकारी अस्पताल में आराम की जिंदगी गुजारते देखा गया, जबकि वह देहरादून जेल में बंद था.
दरअसल, जब भी ईमानदारी से जेलों की पड़ताल हुई है, भ्रष्टाचार और नियमों की अनदेखी सामने आई है. यह भी सही है कि कम ही मामलों में चित्रकूट के ताजा मामले जैसी कार्रवाई हुई है. इससे पहले अधिकांश प्रकरणों में निलंबन जैसी कार्रवाई ही होती रही है. यदि पहले से सरकारों ने कड़ी कार्रवाई कर संदेश देने का काम किया होता तो शायद आज स्थिति बेहतर होगी. जानकार बताते हैं कि जेलों में एक अलग तरह की सत्ता चलती है. मिलाई से लगाकर जेल में हर सुविधा के लिए अलग-अलग 'शुल्क' निर्धारित है. यही कारण है कि माफिया पैसे खर्च कर सुविधाएं पाने में सफल हो जाते हैं. कहा जाता है कि माफिया भ्रष्टाचार में लिप्त न होने वाले अधिकारियों को धमकाते भी रहते हैं. दो दशक पूर्व राजधानी लखनऊ में बेईमानी न करने वाले दो जेलरों को अलग-अलग घटनाओं में मौत के घाट उतार दिया गया था. इस तरह की घटनाएं भी मनोबल तोड़ती हैं. यदि सरकारी स्तर पर नियमित रूप से चित्रकूट की घटना की तरह जेलों का औचक मुआयना होता रहे तो अपराधियों और जेल कर्मियों दोनों में ही भय व्याप्त होगा और वह अवैध गतिविधियों से बचेंगे.
इस संबंध में सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी आदित्य प्रकाश गंगवार कहते हैं 'जेल कर्मियों को उनके गृह जनपद में तैनाती नहीं देनी चाहिए. साथ ही नियमित रूप से इनका स्थानांतरण भी होते रहना चाहिए, ताकि अपराधियों से इनकी साठ-गांठ न होने पाए. यही नहीं जेल अधिकारियों और कर्मचारियों को जरूरी सुविधाओं और सुरक्षा पर भी ध्यान देना चाहिए. जब इन्हें धमकियों और भ्रष्टाचार के पैसे में किसी एक को चुनने का अवसर मिलता है तो सुरक्षा की स्थिति को देखते हुए यह मजबूर हो जाते हैं.' आदित्य प्रकाश गंगवार कहते हैं 'जेल कर्मियों की ही भांति बड़े और पेशेवर अपराधियों का भी जेलों से समय-समय पर स्थानांतरण किया जाता रहना चाहिए. इन्हें अपने क्षेत्र से दूर की जेलों में ही रखा जाना चाहिए. ऐसा होने पर इन्हें स्थानीय मदद कम मिल पाएगी, जिससे वह सुविधाओं का लाभ भी कम ले सकेंगे.'