लखनऊ: साइबर क्राइम की घटनाएं यूपी पुलिस के लिए सरदर्द बनी हुई हैं. आंकड़ों की बात करें तो साइबर क्राइम यूपी ही नहीं पूरे देश में 400 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से बढ़ रहा है. वहीं इंटरनेट की मदद से बड़े पैमाने पर ठगी, धोखाधड़ी की घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है. ऐसे में अपराधियों पर लगाम लगाने के लिए मजबूत व्यवस्था होनी अनिवार्य है.
इसी क्रम में यूपी में आईजी साइबर क्राइम के नए पद का सृजन किया गया है और इस पर आईएएस अधिकारी अशोक कुमार की नियुक्ति की गई, लेकिन मात्र नियुक्ति कर देने भर से यूपी के साइबर क्राइम पर लगाम नहीं लग सकेगी. साइबर क्राइम पर लगाम लगाने के लिए बड़े पैमाने पर काम करने की आवश्यकता है.
साइबर क्राइम पर लगाम लगाने के लिए आईजी की नियुक्ति
- साइबर क्राइम पर लगाम लगाना सरकार के लिए बड़ी चुनौती बनती जा रही है.
- यूपी में साइबर क्राइम की घटनाओं को रोकने के लिए जो तंत्र बनाया गया है वह काफी कमजोर है.
- एक्सपर्ट कर्मचारियों की कमी और संसाधनों के अभाव के चलते कई बार अपराधियों की पड़ताल तो हो जाती है, लेकिन उन पर कार्रवाई नहीं हो पाती है.
- साइबर थानों की बात करें तो राजधानी लखनऊ, नोएडा सहित पूरे प्रदेश में दो ही साइबर थाने मौजूद हैं.
- यह साइबर थाने सिर्फ 25,00,000 से अधिक की ठगी पर कार्रवाई करते हैं.
- साइबर क्राइम की घटनाओं पर अभी तक एसटीएफ कार्रवाई करता था.
- यूपी में अब आईजी साइबर क्राइम की नियुक्ति की गई है.
इस वजह से नहीं हो पाती है कार्रवाई, देना होगा ध्यान
सामान्यता साइबर क्राइम की घटनाओं को अंजाम देने वाले लोग अपने क्षेत्र से 500 किलोमीटर दूर के क्षेत्र में तैनात किसी व्यक्ति को अपना शिकार बनाते हैं. ऐसे में भले ही जिलों में स्थित साइबर क्राइम के लिए काम करने वाले सेंटर इस बात का पता लगा लेते हैं कि घटना को अंजाम देने वाले शख्स कहां के हैं लेकिन जब पता चलता है कि वह 500 किलोमीटर दूर बैठे हुए हैं तो फिर चुनौती आती है उनके खिलाफ कार्रवाई करने की. जिसके लिए 500 किलोमीटर दूर जाने सहित परमिशन, खर्च की चुनौती आती है. इसके लिए अभी तक कोई स्पष्ट प्रबंध नहीं किए गए हैं.
पूरे देश में साइबर क्राइम की घटनाओं को अंजाम देते हुए मोटी कमाई करने के लिए राजस्थान, झारखंड, बिहार से तमाम गुट सक्रिय हैं जो अपने क्षेत्र को छोड़कर पूरे देश के दूरदराज इलाकों में सामान बेचने, नौकरी दिलाने और लालच देकर लोगों के साथ ठगी करते हैं. इसमें सबसे ज्यादा चुनौती उन लोगों पर कार्रवाई करने में आती है. जो झारखंड बिहार के नक्सली क्षेत्र में बैठे कर अपराधी साइबर अपराध की घटना को अंजाम देते हैं. ऐसे में पुलिस अपराधियों को डिटेक्ट करने के बाद भी उन पर कार्यवाही नहीं कर पाती क्योंकि नक्सली क्षेत्र में पुलिस के रीच नहीं होती है.
साइबर क्राइम की घटनाएं प्रतिवर्ष 400 प्रतिशत की दर से बढ़ रही हैं. ऐसे में साइबर क्राइम की घटनाओं पर रोक लगाना पुलिस के लिए बड़ी चुनौती है, लेकिन साइबर अपराधों पर लगाम लगाना असंभव नहीं है. इसके लिए जरूरी है कि आधुनिक और पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराए जाएं. पुलिसकर्मियों को ट्रेंड किया जाए कि वह अपराधियों को आसानी से डिटेक्ट कर उन पर कार्रवाई कर सकें. थाने स्तर पर कर्मचारियों को ट्रेनिंग के साथ-साथ एक नोडल एजेंसी गठित की जाए, जिससे दूरदराज अन्य प्रदेशों से साइबर क्राइम की घटनाएं करने वाले अपराधियों पर लगाम लगाई जा सके. साइबर क्राइम के साथ-साथ आने वाले दिनों में सामान्य अपराधों में भी डिजिटल और साइबर सबूतों के माध्यम से ही आरोपी तक पहुंचना आसान होगा. इसलिए पुलिस प्रशासन को साइबर संसाधनों को मजबूत करने के लिए अधिक बल देना चाहिए.
-अनुज अग्रवाल, चेयरमैन सेंटर ऑफ रिसर्च एंड साइबर