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दोस्ती की मिसाल हैं जंगली भालू, जो बाबा की एक आवाज पर चले आते हैं दौड़े - lucknow

किसी ने सच ही कहा है कि प्यार एक ऐसा एहसास है, जो किसी को भी अपना बना लेता है. फिर चाहे वो इंसान हो या जानवर. प्यार-दोस्ती की ऐसी ही मिसाल हैं ये जंगली जानवर और बाबा रामदास.

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बाबा और भालू की जुगलबंदी.
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Published : Feb 15, 2020, 9:09 PM IST

शहडोल(एमपी): मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के बॉर्डर पर घने जंगलों के बीच प्राकृतिक सौंदर्य जहां अपनी अलग छटा बिखेरती है, वहीं खड़ाखोह के जंगल में राजमाड़ा के पास पहाड़ी पर एक आश्रम है. इसे रामवन आश्रम के नाम से जाना जाता है और इस आश्रम में बाबा रामदास रहते हैं. बाबा रामदास की जंगल में रहने वाले भालूओं से गजब की जुगलबंदी है. बाबा की एक आवाज पर भालू दौड़े चले आते हैं. इतना ही नहीं बाबा बताते हैं कि वह जब से आये हैं, तभी से भालू आने लगे हैं. बाबा रामदास ने इन जंगली भालुओं का नामकरण भी कर दिया है. वह इन भालूओं को चुन्नू, मुन्नू, लल्ली, गल्लू, और मुन्ना के नाम से पुकारते हैं.

बाबा और भालू की जुगलबंदी.

जिन जंगली भालुओं का नाम सुनकर इंसान कांप जाता है, वही भालू बाबा रामदास की एक आवाज पर दौड़े चले आते हैं. बाबा और भालुओं के बीच ऐसी दोस्ती है कि जब तक बाबा पूजा-पाठ करते हैं, तब तक भालू उनके पास ही बैठे रहते हैं और प्रसाद खाने के बाद ही वहां से जाते हैं. बाबा रामदास कहते हैं कि वह इस जंगल में कुटिया बनाकर पिछले सात साल से रह रहे हैं. धीरे-धीरे यहां रहने वाले भालुओं से उनकी जुगलबंदी होती गई.

इसे भी पढ़ें- आगरा: 150 फीट की ऊंचाई पर लंच-डिनर संग ताज का दीदार

खास बात यह है कि आज तक इन भालुओं ने किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया है. बाबा को इन भालुओं पर जितना भरोसा है, इन जंगली भालुओं को भी बाबा पर उतना ही भरोसा है. बाबा रामदास कहते हैं कि भालू बड़ी उम्मीद के साथ आते हैं और उनके पास जो भी प्रसाद रहता है वह भालूओं को खिला देंते हैं. आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में जहां इंसानी रिश्ते कमजोर पड़ते जा रहे हैं, वहीं दूर जगलों में बाबा और भालुओं की बीच का रिश्ता यह सोचने पर मजबूर करता है कि जब जानवर प्यार निभाना जानते हैं तो इंसानों की जिंदगी से प्यार कहां खो गया.

शहडोल(एमपी): मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के बॉर्डर पर घने जंगलों के बीच प्राकृतिक सौंदर्य जहां अपनी अलग छटा बिखेरती है, वहीं खड़ाखोह के जंगल में राजमाड़ा के पास पहाड़ी पर एक आश्रम है. इसे रामवन आश्रम के नाम से जाना जाता है और इस आश्रम में बाबा रामदास रहते हैं. बाबा रामदास की जंगल में रहने वाले भालूओं से गजब की जुगलबंदी है. बाबा की एक आवाज पर भालू दौड़े चले आते हैं. इतना ही नहीं बाबा बताते हैं कि वह जब से आये हैं, तभी से भालू आने लगे हैं. बाबा रामदास ने इन जंगली भालुओं का नामकरण भी कर दिया है. वह इन भालूओं को चुन्नू, मुन्नू, लल्ली, गल्लू, और मुन्ना के नाम से पुकारते हैं.

बाबा और भालू की जुगलबंदी.

जिन जंगली भालुओं का नाम सुनकर इंसान कांप जाता है, वही भालू बाबा रामदास की एक आवाज पर दौड़े चले आते हैं. बाबा और भालुओं के बीच ऐसी दोस्ती है कि जब तक बाबा पूजा-पाठ करते हैं, तब तक भालू उनके पास ही बैठे रहते हैं और प्रसाद खाने के बाद ही वहां से जाते हैं. बाबा रामदास कहते हैं कि वह इस जंगल में कुटिया बनाकर पिछले सात साल से रह रहे हैं. धीरे-धीरे यहां रहने वाले भालुओं से उनकी जुगलबंदी होती गई.

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खास बात यह है कि आज तक इन भालुओं ने किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया है. बाबा को इन भालुओं पर जितना भरोसा है, इन जंगली भालुओं को भी बाबा पर उतना ही भरोसा है. बाबा रामदास कहते हैं कि भालू बड़ी उम्मीद के साथ आते हैं और उनके पास जो भी प्रसाद रहता है वह भालूओं को खिला देंते हैं. आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में जहां इंसानी रिश्ते कमजोर पड़ते जा रहे हैं, वहीं दूर जगलों में बाबा और भालुओं की बीच का रिश्ता यह सोचने पर मजबूर करता है कि जब जानवर प्यार निभाना जानते हैं तो इंसानों की जिंदगी से प्यार कहां खो गया.

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