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सपा के 'अच्छे दिन' लाने के लिए अखिलेश यादव करेंगे पार्टी में बड़े बदलाव ! - समाजवादी पार्टी

लगातार हार झेल रही समाजवादी पार्टी की चुनौतियां कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. अखिलेश यादव के करीबी समझे जाने वाले कई नेता पार्टी छोड़ भगवा खेमे में जा चुके हैं. ऐसे में अब कहा जा रहा है कि समाजवादी पार्टी को बुरे दौर से निकालने के लिए अखिलेश यादव पार्टी और संगठन में कुछ बड़े बदलाव करने जा रहे हैं.

सपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव (फाइल फोटो).
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Published : Aug 20, 2019, 8:13 PM IST

लखनऊ: लोकसभा चुनाव और इससे पहले हुए विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद समाजवादी पार्टी बड़े बदलाव की तैयारी में है. पार्टी नेतृत्व ने एक बार फिर मुलायम सिंह यादव को अहमियत देते हुए बदलाव की रूपरेखा तैयार की है. राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के बेहद करीबी रहे संजय सेठ जैसे लोगों के पार्टी छोड़कर जाने से सांगठनिक संकट खड़ा हो गया है. सेठ के जाने के बाद पार्टी के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष पद पर अब तक कोई नई तैनाती न होने से संगठन के लोगों में गहरी आशंका भी है. ऐसे में समाजवादी पार्टी के सामने चुनौतियों से पार पाना आसान नहीं होगा.

सपा में बड़े बदलाव की तैयारी में अखिलेश यादव.
मुलायम सिंह यादव और चाचा शिवपाल के बिना कमजोर सपा !लोकसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद समाजवादी पार्टी नेतृत्व भी अब इस बात से इत्तेफाक करने लगा है कि मुलायम सिंह यादव वाली समाजवादी पार्टी का रुतबा हासिल करने के लिए उसे नेताजी की पसंद के अनुसार ही पार्टी का ढांचा तैयार करना पड़ेगा. चाचा शिवपाल सिंह यादव की बगावत के बाद समाजवादी पार्टी ने बगैर सांगठनिक ढांचा मजबूत किए ढाई साल गुजार दिए. विधानसभा चुनाव और उसके बाद लोकसभा चुनावों में करारी शिकस्त के रूप में पार्टी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा. दरअसल, शिवपाल सिंह यादव के साथ रहते हुए पार्टी के प्रदेश संगठन में कई ऐसे चेहरे थे जो अखिलेश यादव से ज्यादा चाचा के नेतृत्व की सराहना करते थे. जब समाजवादी पार्टी ने शिवपाल को हाशिए पर पर डाला तो संगठन का पुनर्गठन इस डर से नहीं किया गया कि चाचा के खास लोगों को संगठन से बाहर करने से पार्टी में गलत संदेश जाएगा. ऐसे में अलग से 'टीम अखिलेश' सक्रिय हो गई जो पार्टी से जुड़े सभी अहम फैसले लेने लगी.बदलाव के लिए मंथन !

चुनावी शिकस्त के बाद समाजवादी पार्टी के नेता भाजपा में जाने लगे. इनमें ऐसे नेता भी शामिल हैं, जो अखिलेश यादव के करीबी समझे जाते थे. अब पार्टी में नए सिरे से मंथन हो रहा है कि पार्टी की कमान ऐसे लोगों के हाथ में नहीं सौंपी जानी चाहिए, जिनकी निष्ठा संदिग्ध है. अब पार्टी उन्हीं लोगों को आगे बढ़ाना चाहती है जो हकीकत में समाजवादी मिशन के लिए अपनी जवानी कुर्बान कर चुके हैं. इसके बावजूद एक बड़ा सवाल यह है कि क्या वाकई पार्टी नेतृत्व की मंशा मुलायम सिंह यादव की रीति नीति पर चलने की है. ऐसे में क्या फिर से पार्टी में टीम अखिलेश की बजाय टीम मुलायम का जलवा कायम हो सकेगा. पिछले दिनों समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष और अखिलेश यादव के करीबी संजय सेठ ने जब राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया तो पार्टी नेतृत्व अब तक उनके स्थान पर किसी दूसरे कोषाध्यक्ष का ऐलान नहीं कर सका है.

लखनऊ: लोकसभा चुनाव और इससे पहले हुए विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद समाजवादी पार्टी बड़े बदलाव की तैयारी में है. पार्टी नेतृत्व ने एक बार फिर मुलायम सिंह यादव को अहमियत देते हुए बदलाव की रूपरेखा तैयार की है. राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के बेहद करीबी रहे संजय सेठ जैसे लोगों के पार्टी छोड़कर जाने से सांगठनिक संकट खड़ा हो गया है. सेठ के जाने के बाद पार्टी के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष पद पर अब तक कोई नई तैनाती न होने से संगठन के लोगों में गहरी आशंका भी है. ऐसे में समाजवादी पार्टी के सामने चुनौतियों से पार पाना आसान नहीं होगा.

सपा में बड़े बदलाव की तैयारी में अखिलेश यादव.
मुलायम सिंह यादव और चाचा शिवपाल के बिना कमजोर सपा !लोकसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद समाजवादी पार्टी नेतृत्व भी अब इस बात से इत्तेफाक करने लगा है कि मुलायम सिंह यादव वाली समाजवादी पार्टी का रुतबा हासिल करने के लिए उसे नेताजी की पसंद के अनुसार ही पार्टी का ढांचा तैयार करना पड़ेगा. चाचा शिवपाल सिंह यादव की बगावत के बाद समाजवादी पार्टी ने बगैर सांगठनिक ढांचा मजबूत किए ढाई साल गुजार दिए. विधानसभा चुनाव और उसके बाद लोकसभा चुनावों में करारी शिकस्त के रूप में पार्टी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा. दरअसल, शिवपाल सिंह यादव के साथ रहते हुए पार्टी के प्रदेश संगठन में कई ऐसे चेहरे थे जो अखिलेश यादव से ज्यादा चाचा के नेतृत्व की सराहना करते थे. जब समाजवादी पार्टी ने शिवपाल को हाशिए पर पर डाला तो संगठन का पुनर्गठन इस डर से नहीं किया गया कि चाचा के खास लोगों को संगठन से बाहर करने से पार्टी में गलत संदेश जाएगा. ऐसे में अलग से 'टीम अखिलेश' सक्रिय हो गई जो पार्टी से जुड़े सभी अहम फैसले लेने लगी.बदलाव के लिए मंथन !

चुनावी शिकस्त के बाद समाजवादी पार्टी के नेता भाजपा में जाने लगे. इनमें ऐसे नेता भी शामिल हैं, जो अखिलेश यादव के करीबी समझे जाते थे. अब पार्टी में नए सिरे से मंथन हो रहा है कि पार्टी की कमान ऐसे लोगों के हाथ में नहीं सौंपी जानी चाहिए, जिनकी निष्ठा संदिग्ध है. अब पार्टी उन्हीं लोगों को आगे बढ़ाना चाहती है जो हकीकत में समाजवादी मिशन के लिए अपनी जवानी कुर्बान कर चुके हैं. इसके बावजूद एक बड़ा सवाल यह है कि क्या वाकई पार्टी नेतृत्व की मंशा मुलायम सिंह यादव की रीति नीति पर चलने की है. ऐसे में क्या फिर से पार्टी में टीम अखिलेश की बजाय टीम मुलायम का जलवा कायम हो सकेगा. पिछले दिनों समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष और अखिलेश यादव के करीबी संजय सेठ ने जब राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया तो पार्टी नेतृत्व अब तक उनके स्थान पर किसी दूसरे कोषाध्यक्ष का ऐलान नहीं कर सका है.

Intro:लखनऊ। लोकसभा चुनाव और इससे पहले हुए विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद समाजवादी पार्टी बड़े बदलाव की तैयारी में है पार्टी नेतृत्व ने एक बार फिर मुलायम सिंह यादव को अहमियत देते हुए बदलाव की रूपरेखा तैयार की है लेकिन संजय सेठ जैसे अखिलेश यादव के बेहद करीबी लोगों के पार्टी छोड़कर जाने और पार्टी के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष पद पर अब तक कोई नई तैनाती ना होने से संगठन के लोगों में गहरी आशंका है कि क्या वाकई पार्टी अपना कायांतरण करने में कामयाब हो सकेगी।


Body:लोकसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद समाजवादी पार्टी नेतृत्व भी अब इस बात से इत्तेफाक करने लगा है कि मुलायम सिंह यादव वाली समाजवादी पार्टी का रुतबा हासिल करने के लिए उसे नेताजी की पसंद के अनुसार ही पार्टी का ढांचा तैयार करना पड़ेगा। चाचा शिवपाल सिंह यादव की बगावत के बाद समाजवादी पार्टी ने बीते ढाई साल बगैर संगठन ढांचा मजबूत किए वक्त गुजार दिया इसका खामियाजा भी पार्टी को विधानसभा चुनाव और बाद में लोकसभा चुनाव की करारी शिकस्त के तौर पर उठाना पड़ा है। दरअसल शिवपाल सिंह यादव के साथ रहते हुए पार्टी के प्रदेश संगठन में कई ऐसे चेहरे थे जो अखिलेश यादव से ज्यादा चाचा के नेतृत्व की सराहना करते थे जब समाजवादी पार्टी ने शिवपाल को हाशिए पर पर डालें तो संगठन का पुनर्गठन इस संकोच में नहीं किया कि चाचा के खास लोगों को संगठन से बाहर करने से पार्टी में गलत संदेश जाएगा। ऐसे में एक अलग" टीम अखिलेश" सक्रिय हो गई जो पार्टी के सभी अहम फैसलों में अहम भूमिका का निर्वाह करने लगी।

चुनावी शिकस्त के बाद जब समाजवादी पार्टी के वह नेता भी क्षेत्र कर भाजपा में जाने लगे जो अखिलेश यादव के करीबी माने जाते थे तो अब पार्टी में नए सिरे से मंथन हो रहा है कि पार्टी की कमान ऐसे लोगों के हाथ में नहीं सौंपी जानी चाहिए जिनकी निष्ठा संदिग्ध है। अब पार्टी उन्हीं लोगों को आगे बढ़ाना चाहती है जो हकीकत में समाजवादी मिशन के लिए अपनी जवानी कुर्बान कर चुके हैं। इसके बावजूद एक बड़ा सवाल पार्टी के अंदर खड़ा हो रहा है कि क्या वाकई पार्टी नेतृत्व की मंशा मुलायम सिंह यादव की रीति नीति पर चलने की है। क्या वाकई पार्टी में टीम अखिलेश के बजाय टीम मुलायम का जलवा कायम हो सकेगा क्योंकि पिछले दिनों समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष और अखिलेश यादव की करीबी संजय सेठ ने जब राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया तो पार्टी नेतृत्व आज तक उनके स्थान पर किसी दूसरे कोषाध्यक्ष का एलान नहीं कर सका है। इसे पार्टी नेतृत्व का संजय सेठ जैसे अखिलेश यादव के करीबी लोगों पर मेहरबानी बरकरार रहने के तौर पर देखा जा रहा है और माना जा रहा है के पार्टी नेतृत्व शायद ही मुलायम सिंह यादव की सलाह पर संगठन का चेहरा बदलने को तैयार है। पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने ईटीवी भारत से कहा कि अगर मुलायम सिंह यादव की बात नहीं मानी जाती है और पार्टी के पुराने नेताओं को अहम जिम्मेदारी नहीं मिलती है तो पुनर्गठन और बदलाव की बात कोई मायने नहीं रखेगी।

वाक थ्रू अखिलेश तिवारी


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