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मुकदमे में उलझ गई स्मार्ट कार्ड आरसी की प्रक्रिया, डिजी लॉकर पूरी कर सकता है जरूरत

परिवहन विभाग ने स्मार्ट कार्ड आरसी भी जारी करने की कवायद शुरू की गई थी, लेकिन अब तक स्मार्ट कार्ड आरसी की प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई है. दरअसल, स्मार्ट कार्ड आरसी के लिए टेंडर प्रक्रिया भी पूरी करा ली गई थी और टेंडर भी हो गया था, लेकिन जिस कंपनी को टेंडर नहीं मिला उसने मुकदमा कर दिया और इस मुकदमे के चलते कोर्ट ने एलओआई निरस्त कर दिया गया.

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Published : Nov 7, 2022, 7:43 AM IST

लखनऊ : परिवहन विभाग पिछले 10 साल से स्मार्ट कार्ड ड्राइविंग लाइसेंस जारी कर रहा है. उसी समय से स्मार्ट कार्ड आरसी भी जारी करने की कवायद शुरू की गई थी, लेकिन अब तक स्मार्ट कार्ड आरसी की प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई है. दरअसल, स्मार्ट कार्ड आरसी के लिए टेंडर प्रक्रिया भी पूरी करा ली गई थी और टेंडर भी हो गया था, लेकिन जिस कंपनी को टेंडर नहीं मिला उसने मुकदमा कर दिया और इस मुकदमे के चलते कोर्ट ने एलओआई निरस्त कर दिया गया. अब एक बार फिर परिवहन विभाग के प्रमुख सचिव ने अधिकारियों को फटकार लगाते हुए इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के निर्देश दिए हैं.



दो दशक बाद भी उत्तर प्रदेश में स्मार्ट कार्ड आरसी (smart card rc) की व्यवस्था लागू नहीं हो पाई है. जबकि पिछले 10 साल से लोगों को स्मार्ट कार्ड ड्राइविंग लाइसेंस (smart card driving license) उपलब्ध कराए जा रहे हैं. देश में दिल्ली को छोड़कर सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में स्मार्ट कार्ड ड्राइविंग लाइसेंस और आरसी दी जा रही है, लेकिन उत्तर प्रदेश में यह व्यवस्था लागू ही नहीं की जा सकी. ऐसा नहीं है कि स्मार्ट कार्ड आरसी को लागू करने के लिए प्रयास नहीं किए गए. सालों पहले इस व्यवस्था को लागू करने के लिए एक प्रस्ताव बना और सेवा प्रदाता के चयन के लिए टेंडर प्रक्रिया भी पूरी कराई गई. पहली बार निकाले गए टेंडर पर हुए विवाद के बाद से इस व्यवस्था पर अब तक ग्रहण लगाए हुए हैं.

परिवहन विभाग (transport Department) के अधिकारी बताते हैं कि वर्ष 2000 में पहली बार स्मार्ट कार्ड आरसी के टेंडर निकाले गए थे. इस दौरान सफल बिडर को लेटर आफ इंटेंट (एलओवाई) भी जारी कर दिया गया, लेकिन दूसरी कंपनी ने टेंडर प्रक्रिया पर आपत्ति जता दी और कोर्ट में मुकदमा दर्ज करा दिया. विभाग को इस टेंडर को निरस्त भी करना पड़ गया. इसके बाद भी स्मार्ट कार्ड आरसी की व्यवस्था को लागू किए जाने को लेकर कई बार कोशिश की गई. हालांकि हर बार किसी न किसी बाधा के चलते यह प्रक्रिया अब तक पूरी नहीं की जा सकी. स्मार्ट कार्ड आरसी के सेवा प्रदाता के लिए पहली बार त्र्यंबके इंफोटेक को सफल बिडर घोषित किया गया था. दूसरे नंबर पर रोजमार्ता प्राइवेट लिमिटेड रही थी. टेंडर प्रक्रिया पर आपत्ति के बाद मामला न्यायालय में पहुंच गया. कोर्ट के निर्देश पर वर्ष 2020 में कंपनी का (एलओवाई) निरस्त कर दिया गया. इसके बाद कंपनी को बैंक गारंटी के 15 लाख रुपए वापस कर दिए गए.

स्मार्ट कार्ड में लगी चिप में सभी सूचनाएं संरक्षित होती हैं और रीडर द्वारा पढ़ी भी जा सकती हैं. बगैर चिप वाले लैमिनेटेड कार्ड में ये सुविधा नहीं है. नए वाहनों की पंजीयन पुस्तिका 15 वर्ष के लिए जारी होती है. यह एक स्थाई दस्तावेज है. ऐसे में पंजीयन पुस्तिका इस प्रकार के कार्ड पर निर्गत होना चाहिए जिससे गुणवत्ता बेहतर हो. एडिशनल ट्रांसपोर्ट कमिश्नर वीके सोनकिया (Additional Transport Commissioner VK Sonakia) बताते हैं कि स्मार्ट कार्ड आरसी की अब आवश्यकता महसूस नहीं की जा रही है. वजह है कि अब डिजीलॉकर का इस्तेमाल किया जा रहा है. इस पर अपने सभी दस्तावेज संरक्षित करने के बाद अगर चेकिंग के दौरान जरूरत पड़ती है तो दिखाए जा सकते हैं. जिससे इस दस्तावेज के अतिरिक्त आवश्यकता महसूस नहीं हो रही है.

यह भी पढ़ें : कुलपति विनय पाठक के कमीशन की रकम मैनेज करने वाला अजय जैन गिरफ्तार

लखनऊ : परिवहन विभाग पिछले 10 साल से स्मार्ट कार्ड ड्राइविंग लाइसेंस जारी कर रहा है. उसी समय से स्मार्ट कार्ड आरसी भी जारी करने की कवायद शुरू की गई थी, लेकिन अब तक स्मार्ट कार्ड आरसी की प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई है. दरअसल, स्मार्ट कार्ड आरसी के लिए टेंडर प्रक्रिया भी पूरी करा ली गई थी और टेंडर भी हो गया था, लेकिन जिस कंपनी को टेंडर नहीं मिला उसने मुकदमा कर दिया और इस मुकदमे के चलते कोर्ट ने एलओआई निरस्त कर दिया गया. अब एक बार फिर परिवहन विभाग के प्रमुख सचिव ने अधिकारियों को फटकार लगाते हुए इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के निर्देश दिए हैं.



दो दशक बाद भी उत्तर प्रदेश में स्मार्ट कार्ड आरसी (smart card rc) की व्यवस्था लागू नहीं हो पाई है. जबकि पिछले 10 साल से लोगों को स्मार्ट कार्ड ड्राइविंग लाइसेंस (smart card driving license) उपलब्ध कराए जा रहे हैं. देश में दिल्ली को छोड़कर सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में स्मार्ट कार्ड ड्राइविंग लाइसेंस और आरसी दी जा रही है, लेकिन उत्तर प्रदेश में यह व्यवस्था लागू ही नहीं की जा सकी. ऐसा नहीं है कि स्मार्ट कार्ड आरसी को लागू करने के लिए प्रयास नहीं किए गए. सालों पहले इस व्यवस्था को लागू करने के लिए एक प्रस्ताव बना और सेवा प्रदाता के चयन के लिए टेंडर प्रक्रिया भी पूरी कराई गई. पहली बार निकाले गए टेंडर पर हुए विवाद के बाद से इस व्यवस्था पर अब तक ग्रहण लगाए हुए हैं.

परिवहन विभाग (transport Department) के अधिकारी बताते हैं कि वर्ष 2000 में पहली बार स्मार्ट कार्ड आरसी के टेंडर निकाले गए थे. इस दौरान सफल बिडर को लेटर आफ इंटेंट (एलओवाई) भी जारी कर दिया गया, लेकिन दूसरी कंपनी ने टेंडर प्रक्रिया पर आपत्ति जता दी और कोर्ट में मुकदमा दर्ज करा दिया. विभाग को इस टेंडर को निरस्त भी करना पड़ गया. इसके बाद भी स्मार्ट कार्ड आरसी की व्यवस्था को लागू किए जाने को लेकर कई बार कोशिश की गई. हालांकि हर बार किसी न किसी बाधा के चलते यह प्रक्रिया अब तक पूरी नहीं की जा सकी. स्मार्ट कार्ड आरसी के सेवा प्रदाता के लिए पहली बार त्र्यंबके इंफोटेक को सफल बिडर घोषित किया गया था. दूसरे नंबर पर रोजमार्ता प्राइवेट लिमिटेड रही थी. टेंडर प्रक्रिया पर आपत्ति के बाद मामला न्यायालय में पहुंच गया. कोर्ट के निर्देश पर वर्ष 2020 में कंपनी का (एलओवाई) निरस्त कर दिया गया. इसके बाद कंपनी को बैंक गारंटी के 15 लाख रुपए वापस कर दिए गए.

स्मार्ट कार्ड में लगी चिप में सभी सूचनाएं संरक्षित होती हैं और रीडर द्वारा पढ़ी भी जा सकती हैं. बगैर चिप वाले लैमिनेटेड कार्ड में ये सुविधा नहीं है. नए वाहनों की पंजीयन पुस्तिका 15 वर्ष के लिए जारी होती है. यह एक स्थाई दस्तावेज है. ऐसे में पंजीयन पुस्तिका इस प्रकार के कार्ड पर निर्गत होना चाहिए जिससे गुणवत्ता बेहतर हो. एडिशनल ट्रांसपोर्ट कमिश्नर वीके सोनकिया (Additional Transport Commissioner VK Sonakia) बताते हैं कि स्मार्ट कार्ड आरसी की अब आवश्यकता महसूस नहीं की जा रही है. वजह है कि अब डिजीलॉकर का इस्तेमाल किया जा रहा है. इस पर अपने सभी दस्तावेज संरक्षित करने के बाद अगर चेकिंग के दौरान जरूरत पड़ती है तो दिखाए जा सकते हैं. जिससे इस दस्तावेज के अतिरिक्त आवश्यकता महसूस नहीं हो रही है.

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