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अव्यवस्था और पुलिस की सुस्ती ले रही लोगों की जान, नियम कायदों से लोग अनजान

थानों और पुलिस चौकियों के बाहर ठेले-खोमचों की भरमार है. जाम, अतिक्रमण, यातायात नियमों की अनदेखी आम बात है. इन सबसे पुलिस बेपरवाह है, ऐसा कहना ठीक नहीं लगता, क्योंकि जहां पुलिस नहीं चाहती वहां अतिक्रमण नहीं होता है. ऐसे में यह कहना कतई गलत नहीं कि पुलिस खुश तो सब ठीक. पढ़ें यूपी के ब्यूरो चीफ आलोक त्रिपाठी का विश्लेषण...

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Published : Dec 2, 2022, 2:42 PM IST

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लखनऊ : प्रदेश के लगभग सभी शहरों और राजमार्गों में जाम, अतिक्रमण, यातायात नियमों की अनदेखी और इन सबसे बेपरवाह पुलिस को देखा जा सकता है. यहां न लोग जागरूक हैं और न पुलिस सतर्क. थानों और पुलिस चौकियों के बाहर भी ठेले-खोमचों की कतारें आम हैं. ऐसा नहीं है कि बिना पुलिस को 'खुश' किए यह सब चलता रहता है. जहां पुलिस नहीं चाहती वहां अतिक्रमण होता भी नहीं है. लोगों में भी जिम्मेदार नागरिक बनने का भाव अब तक नहीं आया है. यहां लोग सिर्फ भय की भाषा समझते हैं. ऐसे में यह भी दिखाई नहीं दे रहा कि भविष्य में कोई सुधार होगा. नेतागण सत्ता में आते ही जन सरोकार के मुद्दे भूल जाते हैं.


एक वक्त था, जब किसी भी वाहन की आधी हेड लाइट काली करना अनिवार्य होता था. पुलिस और परिवहन विभाग भी इस नियम का अनुपालन सुनिश्चित कराते थे. धीरे-धीर यह नियम खत्म सा हो गया है. आधी हेडलाइट काली होने से सामने से आ रहा वाहन चालक आंखों में लाइट लगने से चुंधियाता नहीं था. यह नियम अब नई पीढ़ी को मालूम तक नहीं है. इसके पीछे दोष किसका है? पुलिस और परिवहन विभाग इस नियम का अनुपालन क्यों सुनिश्चित नहीं कराते. आज लोगों को अपर-डिपर का उपयोग कब, कैसे और कहां करना है यह भी नहीं मालूम होता है. भारी वाहनों में अक्सर बैक लाइट गायब रहती है. यही वजह है कि प्राय: बड़ी गाड़ियों में कुछ दिखाई न देने के कारण लोग पीछे से हादसा कर बैठते हैं. लोगों को यातायात संकेतकों का ज्ञान नहीं होता. न ही पुलिस और परिवहन विभाग की ओर से लोगों को इसकी पर्याप्त जानकारी दी जाती है. लोग भी सीट बेल्ट और हेलमेट लगाना अपनी जिम्मेदारी नहीं समझते. सिर्फ चालान के भय से ही कभी-कभी इन नियमों का पालन करते हैं, जबकि लोगों को खुद इसे अपनी आदत में शुमार कर लेना चाहिए. दोपहिया और चार पहिया वाहनों में क्षमता से ज्यादा सवारियां ढोई जाती हैं. यातायात नियमों को लेकर जनजागरूकता का भी घोर अभाव है.

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यदि हादसों पर अंकुश लगाना है और यातायात को सुगम बनाना है, तो लोगों को कुछ बातों को अपनी आदत में शुमार करना होगा. जैसे गाड़ी खड़ी करते समय हमेशा ध्यान देना चाहिए कि जगह उचित पार्किंग वाली हो और लोगों के लिए अवरोध न बने. गाड़ी कभी भी निर्धारित गति से तेज नहीं चलानी चाहिए. तेज गति से गाड़ी चलाने पर माइलेज कम मिलता है. साथ ही हादसे का खतरा सदा बना रहता है. तेज गति की गाड़ी पर नियंत्रण कर पाना आसान नहीं होता है. गाड़ी चलाते समय यातायात के नियमों का पालन जरूर करें. सीट बेल्ट और हेलमेट को अपनी आदत में शुमार करें. यही नहीं गाड़ी को हमेशा निर्धारित लेन में ही चलाने की आदत डालें. हाईवे पर आगे चल रही गाड़ी से उचित दूरी बनाकर ही रहें, ताकि अचानक ब्रेक लगाने पर संतुलन न बिगड़े. सिर्फ जरूरी होने पर ही हॉर्न का प्रयोग करें. अनावश्यक रूप से हॉर्न बजाने से ध्वनि प्रदूषण फैलता है.

शहर में लगा जाम.
शहर में लगा जाम.

सरकार और प्रशासन के स्तर पर भी यह ध्यान रखना चाहिए कि मुख्य सड़कों और हाईवे आदि पर अतिक्रमण न होने पाए. सर्विस लेन पर भी यातायात सुगम हो, ताकि छोटी दूरी की यात्रा करने वाले लोग अनावश्यक रूप से हाईवे पर न चढ़ें. यातायात नियमों का उल्लंघन करने वालों पर कार्रवाई भी होती रहे, ताकि ऐसे लोगों की वजह से आम यात्री हादसे के शिकार न हों. जाड़े के समय कोहरा बढ़ जाने पर हाईवे आदि पर हादसों का खतरा बढ़ जाता है. ऐसे में प्रशासन को सड़कों पर संकेतकों की उचित व्यवस्था भी जरूर करनी चाहिए. यदि यात्री और यातायात प्रशासन दोनों अपने-अपने दायित्वों को समझें और उनका अनुपालन करें, तो असमय होती दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है.

यह भी पढ़ें : ठेंगे पर परिवहन विभाग के नियम, बिना एचएसआरपी के गाड़ियां डिलीवर कर रहे डीलर

लखनऊ : प्रदेश के लगभग सभी शहरों और राजमार्गों में जाम, अतिक्रमण, यातायात नियमों की अनदेखी और इन सबसे बेपरवाह पुलिस को देखा जा सकता है. यहां न लोग जागरूक हैं और न पुलिस सतर्क. थानों और पुलिस चौकियों के बाहर भी ठेले-खोमचों की कतारें आम हैं. ऐसा नहीं है कि बिना पुलिस को 'खुश' किए यह सब चलता रहता है. जहां पुलिस नहीं चाहती वहां अतिक्रमण होता भी नहीं है. लोगों में भी जिम्मेदार नागरिक बनने का भाव अब तक नहीं आया है. यहां लोग सिर्फ भय की भाषा समझते हैं. ऐसे में यह भी दिखाई नहीं दे रहा कि भविष्य में कोई सुधार होगा. नेतागण सत्ता में आते ही जन सरोकार के मुद्दे भूल जाते हैं.


एक वक्त था, जब किसी भी वाहन की आधी हेड लाइट काली करना अनिवार्य होता था. पुलिस और परिवहन विभाग भी इस नियम का अनुपालन सुनिश्चित कराते थे. धीरे-धीर यह नियम खत्म सा हो गया है. आधी हेडलाइट काली होने से सामने से आ रहा वाहन चालक आंखों में लाइट लगने से चुंधियाता नहीं था. यह नियम अब नई पीढ़ी को मालूम तक नहीं है. इसके पीछे दोष किसका है? पुलिस और परिवहन विभाग इस नियम का अनुपालन क्यों सुनिश्चित नहीं कराते. आज लोगों को अपर-डिपर का उपयोग कब, कैसे और कहां करना है यह भी नहीं मालूम होता है. भारी वाहनों में अक्सर बैक लाइट गायब रहती है. यही वजह है कि प्राय: बड़ी गाड़ियों में कुछ दिखाई न देने के कारण लोग पीछे से हादसा कर बैठते हैं. लोगों को यातायात संकेतकों का ज्ञान नहीं होता. न ही पुलिस और परिवहन विभाग की ओर से लोगों को इसकी पर्याप्त जानकारी दी जाती है. लोग भी सीट बेल्ट और हेलमेट लगाना अपनी जिम्मेदारी नहीं समझते. सिर्फ चालान के भय से ही कभी-कभी इन नियमों का पालन करते हैं, जबकि लोगों को खुद इसे अपनी आदत में शुमार कर लेना चाहिए. दोपहिया और चार पहिया वाहनों में क्षमता से ज्यादा सवारियां ढोई जाती हैं. यातायात नियमों को लेकर जनजागरूकता का भी घोर अभाव है.

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यदि हादसों पर अंकुश लगाना है और यातायात को सुगम बनाना है, तो लोगों को कुछ बातों को अपनी आदत में शुमार करना होगा. जैसे गाड़ी खड़ी करते समय हमेशा ध्यान देना चाहिए कि जगह उचित पार्किंग वाली हो और लोगों के लिए अवरोध न बने. गाड़ी कभी भी निर्धारित गति से तेज नहीं चलानी चाहिए. तेज गति से गाड़ी चलाने पर माइलेज कम मिलता है. साथ ही हादसे का खतरा सदा बना रहता है. तेज गति की गाड़ी पर नियंत्रण कर पाना आसान नहीं होता है. गाड़ी चलाते समय यातायात के नियमों का पालन जरूर करें. सीट बेल्ट और हेलमेट को अपनी आदत में शुमार करें. यही नहीं गाड़ी को हमेशा निर्धारित लेन में ही चलाने की आदत डालें. हाईवे पर आगे चल रही गाड़ी से उचित दूरी बनाकर ही रहें, ताकि अचानक ब्रेक लगाने पर संतुलन न बिगड़े. सिर्फ जरूरी होने पर ही हॉर्न का प्रयोग करें. अनावश्यक रूप से हॉर्न बजाने से ध्वनि प्रदूषण फैलता है.

शहर में लगा जाम.
शहर में लगा जाम.

सरकार और प्रशासन के स्तर पर भी यह ध्यान रखना चाहिए कि मुख्य सड़कों और हाईवे आदि पर अतिक्रमण न होने पाए. सर्विस लेन पर भी यातायात सुगम हो, ताकि छोटी दूरी की यात्रा करने वाले लोग अनावश्यक रूप से हाईवे पर न चढ़ें. यातायात नियमों का उल्लंघन करने वालों पर कार्रवाई भी होती रहे, ताकि ऐसे लोगों की वजह से आम यात्री हादसे के शिकार न हों. जाड़े के समय कोहरा बढ़ जाने पर हाईवे आदि पर हादसों का खतरा बढ़ जाता है. ऐसे में प्रशासन को सड़कों पर संकेतकों की उचित व्यवस्था भी जरूर करनी चाहिए. यदि यात्री और यातायात प्रशासन दोनों अपने-अपने दायित्वों को समझें और उनका अनुपालन करें, तो असमय होती दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है.

यह भी पढ़ें : ठेंगे पर परिवहन विभाग के नियम, बिना एचएसआरपी के गाड़ियां डिलीवर कर रहे डीलर

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