लखनऊ : लंबी प्रतीक्षा के बाद कौशल विकास मिशन ने शार्ट टाइम ट्रेनिंग (एसटीटी) के तहत स्टार्टअप योजना में सूचीबद्ध प्रशिक्षणदाताओं में से 179 लोगों को लक्ष्य का आवंटन किया है. इस लक्ष्य आवंटन में प्रशिक्षणदाताओं और मिशन के साथ हुए अनुबंध को तार-तार कर दिया गया है. हर प्रशिक्षणदाता को 250 अभ्यर्थियों को प्रशिक्षित किए जाने का लक्ष्य तय किया गया था. पहली सूची में सौ लोगों को इसके अनुरूप लक्ष्य आवंटित भी किया गया, लेकिन दूसरी सूची में 179 लोगों को अनुबंध को ताक पर रखकर सिर्फ 108 सीटों का ही आवंटन किया गया. यही नहीं मिशन में एक और शर्त जोड़ दी कि कोई भी टीपी (ट्रेनिंग पार्टनर) 600 घंटे से ज्यादा समय वाला प्रशिक्षण नहीं दे सकेगा. प्रशिक्षण सहयोगी बताते हैं कि मिशन ने बना सूचित किए आरएफपी (रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल) और एमओयू (मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग) यानी समझौता ज्ञापन की शर्तों में बदलाव भी किया. ऐसे में प्रशिक्षणदाता खुद को छला हुआ महसूस कर रहे हैं.
नव चयनित प्रशिक्षणदाताओं में असंतोष : गौरतलब है कि आरएफपी के अनुसार तमाम मानकों को पूरा करने वाले स्टार्टअप ट्रेनिंग पार्टनर्स को 10 लाख रुपये की डीडी (डिमांड ड्राफ्ट) मिशन के नाम जमा करनी थी, जिसके बाद उन्हें ढाई सौ युवाओं को शिक्षित करने की जिम्मेदारी दी जानी थी. इसके तहत बड़ी संख्या में लोगों ने आवेदन किए, जिनमें से 435 लोगों का चयन किया गया. पहले चरण में 169 चयनित लोगों की सूची जारी की गई और दूसरे फेस में 266 चयनितों की. अधिकांश चयनित आवेदकों ने 10-10 लाख रुपये की डीडी भी जमा कर दी. इसके कुछ दिन बाद सौ प्रशिक्षण सहयोगियों को 250 का टारगेट दिया गया. इसके कुछ ही दिन बाद तत्कालीन मिशन निदेशक आंद्रा वामसी का स्थानांतरण हो गया. नए एमडी रमेश रंजन को स्थितियां समझने में थोड़ा वक्त लगा. विगत 23 नवंबर को दूसरी सूची में 179 लोगों को सिर्फ 250 की जगह 108 का टारगेट दिया गया. साथ में यह शर्त भी थोप दी गई कि कोई भी प्रशिक्षणदाता 600 घंटे से अधिक अवधि वाला कोर्स संचालित नहीं कर सकता. इससे नव चयनित प्रशिक्षणदाताओं में भारी असंतोष है. 156 लोगों को अब भी टार्गेट नहीं मिल पाया है, जबकि इन्होंने 10-10 लाख की डीडी जमा कर रखी है, जिसका 15 से 20 हजार रुपये ब्याज वह हर माह भर रहे हैं. कई लोगों ने 250 अभ्यर्थियों के हिसाब से सभी प्रबंध कर लिए थे, ताजा लक्ष्य मिल जाने के बाद वह बर्बादी के मुहाने पर खड़े हैं.
आरएफपी में कई नियमों की अनदेखी : इस संबंध में एक प्रशिक्षणदाता कहते हैं कि आरएफपी में कई नियमों की अनदेखी की गई है. भुगतान के नियम भी बदल दिए गए हैं. आरएफपी में लक्ष्य 250 का रखा गया था, लेकिन आवंटन सिर्फ 108 का हुआ है. अगर ऐसा करना था, तो पहले आरएफपी में उल्लेख करना चाहिए था.एक यह शर्त भी थोप दी गई है कि अब 600 घंटे से ज्यादा वाला कोई कोर्स भी नहीं चलाया जा सकेगा. प्रशिक्षणदाता का कहना है कि लक्ष्य घटाकर 108 कर दिया गया है तो उसके हिसाब से डीडी में ली गई अतिरिक्त धनराशि भी लौटानी चाहिए. टारगेट के हिसाब से डीडी 1-2 लाख ही होना चाहिए, बाकी सबका पेमेंट लौटाना चाहिए. वहीं गायत्री ग्रुप ऑफ एजुकेशन के शैलेंद्र तिवारी कहते हैं कि एमओयू का लिहाज तो रखना चाहिए था. फिर अनुबंध का मतलब ही क्या रहा, जब आपने खुद ही इसे नहीं माना. 10 लाख रुपये देकर हमने काम करना चाहा, लेकिन आरएफपी के टर्म एमएयू में बदल दिए गए. एक ही मानक पूरा करने पर भी लोगों को अलग-अलग टार्गेट दिए गए. नियमानुसार आरएफपी के सात दिन में एमओयू साइन होना था और एमएयू के 15 दिन में टार्गेट मिल जाना था, जो दो माह बाद दिया गया और वह भी 108 का. आरएफपी में लिखा है कि डिमांड ड्राफ्ट के रूप में जमा 10 लाख रुपये 180 दिन में वापस कर दिए जाएंगे. हालांकि इसकी भी उम्मीद कम ही है.
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एक अन्य प्रशिक्षणदाता आकाश कहते हैं यदि विभाग के पास अभी कोई लक्ष्य नहीं है, तो उन्हें कम से कम हमारे आठ लाख रुपये लौटा देने चाहिए. 20 लाख के काम के लिए 10 लाख की सिक्योरिटी जमा करने का सीमित अर्थ है. हमें दुख है कि केवल 108 सीटों का लक्ष्य आवंटित किया गया है, जो प्रारंभ में सूचित 250 उम्मीदवारों से काफी कम है. आवंटन और एमओयू समझौते के जवाब में हमने 250 के लक्ष्य के आधार पर रशिक्षण केंद्रों की तैयारी कर रखी है.' वह कहते हैं कि 'हम कौशल विकास मिशन निदेशक से अनुरोध करते हैं कि वह पुनर्विचार करें और 250 उम्मीदवारों का लक्ष्य आवंटित करें.' एक अन्य स्टार्टअप प्रशिक्षणदाता नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताते हैं 'आरएफटी के अनुसार लक्ष्य आवंटित किया जाना चाहिए, लेकिन केवल 108 अभ्यर्थियों को लक्ष्य आवंटित किया गया है. इस स्थिति में बैंक गारंटी दो लाख की ही ली जानी चाहिए. साथ ही मिशन को आरएफपी (रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल) की गाइड लाइन के अनुसार ही काम करना चाहिए.' एक अन्य प्रशिक्षण दाता ने बताया कि '108 के लक्ष्य का मतलब है चार बैच, जो एक जिले के एक केंद्र में चलाए जा सकते हैं. प्रत्येक जिले के लिए बीजी पहले के एमओयू के लिए दो लाख के बराबर है. ऐसे में आठ-आठ लाख रुपये प्रशिक्षणदाताओं को अविलंब लौटानी चाहिए.'
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इस संबंध में कौशल विकास मिशन के निदेशक रमेश रंजन से फोन पर बात करने का प्रयास किया गया, लेकिन उनका फोन नहीं उठा. उन्हें वाट्सएप पर मैसेज भी किया गया, लेकिन मैसेज का भी उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. वहीं इस विभाग के प्रमुख सचिव एम देवराज को भी फोन और मैसेज के माध्यम से बातचीत करने की कोशिश की गई, लेकिन उनसे बात नहीं हो सकी. उन्होंने वाट्सएप मैसेज देखा तो पर कोई जवाब नहीं दिया. वहीं व्यावसायिक शिक्षा एवं कौशल विकास राज्य मंत्री कपिल देव अग्रवाल से भी बातचीत करने का प्रयास किया गया, लेकिन उन्होंने भी फोन नहीं उठाया. इस संबंध में मिशन से जुड़े एक अधिकारी कम टारगेट दिए जाने को प्रशिक्षणदाताओं के हक में बताते हैं. वह कहते हैं कि वित्तीय वर्ष में सिर्फ तीन माह शेष हैं. ऐसे में यदि 250 का टारगेट दिया गया होता, तो इसकी संभावना कम ही है कि अधिकांश प्रशिक्षणदाता शतप्रतिशत या आधा लक्ष्य भी पूरा कर पाते. लक्ष्य कम होने से इसे पूरा करना आसान होगा और प्रशिक्षणदाताओं की प्रगति रिपोर्ट भी अच्छी रहेगी. इससे उन्हें दोबारा आसानी से टार्गेट मिल सकेगा. वह बताते हैं कि यदि प्रशिक्षणदाता 108 अभ्यर्थियों का पंजीकरण कर लेते हैं, तो उनका टारगेट बढ़ाने में कोई समस्या नहीं है.
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