लखनऊ: भले ही अनलॉक के बाद जिंदगी की गाड़ियां पटरी पर धीरे-धीरे उतरनी लगी हों, लेकिन हमारे समाज का एक ऐसा तबका भी है, जिनकी परेशानियां कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. दरअसल, हम बात कर रहे हैं उन सपेरे परिवार की जो सदियों से सांप-बिच्छू का खेल दिखाकर हमारा मनोरंजन करते आ रहे हैं.
लॉकडाउन की मार से सपेरे परेशान
सपेरों की जिंदगी बंजारों की तरह होती है. एक जगह से दूसरे जगह उनका पलायन लगा रहता है. हफ्तों या कभी-कभी महीनों सांप-बिच्छू का खेल दिखाने के लिए सपेरे अपने घर से बाहर रहते हैं. सपेरे परिवारों का कहना है कि पहले कोर्ट ने सांप-बिच्छू के खेल दिखाने पर रोक लगाई और अब लॉकडाउन ने कमाई की बची उम्मीदों पर पानी फेर दिया.
प्रशासन की मदद से वंचित सपेरा समुदाय
लॉकडाउन के बाद से ही देश भर में काम धंधे ठप पड़े हुए हैं. इस संकट से उबरने के लिए केंद्र व प्रदेश सरकार मजदूरों और दूसरे कई लोगों को चिन्हित कर योजनाओं के माध्यम से आर्थिक राहत पहुंचाने का काम कर रही है. वहीं, सपेरा समुदाय को आर्थिक मदद न मिलने से इनके सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है.
अब सपेरों का खेल नहीं देखते लोग
सपेरा पृथ्वीनाथ ने बताया कि देश में भले ही अनलॉक हो गया हो, लेकिन ये समय अभी भी सपेरों के लिए लॉकडाउन से कम नहीं है. उन्होंने बताया कि लोगों के मन में अब भी कोरोना वायरस का खौफ इतना है कि अब वे सपेरों का खेल देखने के लिए रुकते नहीं हैं. सपेरा पृथ्वीनाथ ने बताया कि इस मुश्किल की घड़ी में वे लोगों से मांग कर अपना और अपने परिवार का पेट पालने को मजबूर हैं. पृथ्वीनाथ के परिवार का कहना है कि वे पीढ़ियों से सांप-बिच्छूओं का खेल दिखाते आ रहे हैं. इसके अलावा उनकी जिंदगी में और कुछ भी बचा नहीं है. उन्हें इसके अलावा कोई और काम नहीं आता.
परिवार पालना हुआ मुश्किल
सांप-बिच्छू के खेल पर कोर्ट से रोक लगाए जाने वाली बात पर सपेरों का दर्द छलक उठा. उन्होंने बताया कि वे भी चाहते हैं कि उनके बच्चे पढ़ें-लिखें. अच्छी नौकरियां करें, लेकिन जहां परिवार पालना इतना मुश्किल हो रहा है. वहां कैसे बच्चों को अच्छी शिक्षा प्रदान करें.
हर व्यक्ति अपने परिवार को एक अच्छी बेहतर जिंदगी देना चाहता है, जिसके लिए वह दिन-रात मेहनत करता है. सपेरा परिवार पूरी कोशिश करते हैं कि उनके बच्चों को अच्छा खाना मिले. बेहतर जिंदगी मिले, लेकिन कोरोना महामारी ने आकर इनकी जिंदगी की गाड़ी पर ब्रेक लगा दी है.
लॉकडाउन के बाद से ही बंद है कमाई का जरिया
सपेरा जाति के लोगों को प्रमुख व्यवसाय है सांप पकड़कर उसे गांव, कस्बों में घर-घर जाकर दिखाना, उसके बदले में लोगों द्वारा अनाज या पैसे दिए जाते हैं. जिससे वह अपनी रोजी-रोटी चलाने का काम करते हैं. यही इनका आर्थिक स्रोत का जरिया है. लॉकडाउन के बाद से ही सपेरा जाति के लोगों की कमाई का जरिया बंद हो गया है.