लखनऊ: लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती और कोशिश करने वालों की हार नहीं होती. ऐसा ही कुछ कर दिखाया है 26 साल शशांक ने, जिन्हें बचपन में ही पोलियो हो गया. पोलियो ने उन्हें दोनों पैरों से दिव्यांग बना दिया, लेकिन इसके बाद भी शशांक ने शारीरिक कमजोरी और आर्थिक स्थिति को कभी बाधा नहीं बनने दिया. शशांक ने व्हीलचेयर के सहारे पैरा बैडमिंटन में 8 नेशनल और एक इंटरनेशनल मैच में हिस्सा लेकर 10 मेडल जीतकर साबित कर दिया कि जान किसी अंग में नहीं, हौसलों में होती है.
बाराबंकी के रहने वाले शशांक को चार साल की उम्र में पोलियो हो गया था. गरीब परिवार से आने वाले शशांक वर्ष 1999 में इलाज के लिए भाई सत्यनरायण व राजेश के साथ लखनऊ आए. पैसों के अभाव में प्राइवेट हाॅस्पिटल में दो साल तक उनका लंबा इलाज चलता रहा. इसके बाद दोनों पैरों से दिव्यांग हो गए.लखनऊ: व्हीलचेयर पर बैडमिंटन खेलकर शशांक बने युवाओं की प्रेरणा, जीते 10 मेडल
यूपी की राजधानी लखनऊ के रहने वाले शशांक दोनों पैरों से दिव्यांग होने के बाद भी युवाओं के लिए प्रेरणा बने हैं. शशांक ने व्हीलचेयर के सहारे पैरा बैडमिंटन में 8 नेशनल और एक इंटरनेशनल मैच खेलकर 10 मेडल जीते हैं.
लखनऊ: लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती और कोशिश करने वालों की हार नहीं होती. ऐसा ही कुछ कर दिखाया है 26 साल शशांक ने, जिन्हें बचपन में ही पोलियो हो गया. पोलियो ने उन्हें दोनों पैरों से दिव्यांग बना दिया, लेकिन इसके बाद भी शशांक ने शारीरिक कमजोरी और आर्थिक स्थिति को कभी बाधा नहीं बनने दिया. शशांक ने व्हीलचेयर के सहारे पैरा बैडमिंटन में 8 नेशनल और एक इंटरनेशनल मैच में हिस्सा लेकर 10 मेडल जीतकर साबित कर दिया कि जान किसी अंग में नहीं, हौसलों में होती है.