लखनऊ : भारतीय जनता पार्टी को घेरने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस विपक्षी दलों के साथ गठबंधन बना रही है. इस गठबंधन (assembly elections 2023) की अब तक तीन बैठकें संपन्न हो चुकी हैं. अब जबकि पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों की घोषणा हो चुकी है और प्रचार जोरों पर है, ऐसी स्थिति में गठबंधन के मतभेद सामने आने लगे हैं. मंगलवार को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ ने समाजवादी पार्टी पर आरोप लगाए, तो वहीं सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कांग्रेस नेता को नसीहत दे डाली कि जब गठबंधन की बैठकें हो रही थीं, तब क्या कमलनाथ वहां पर थे? यदि नहीं तो ने ऐसी बात नहीं करनी चाहिए. यह तो अभी शुरुआत है. जब लोकसभा चुनावों की घोषणा होगी तब सीटों का बंटवारा इस गठबंधन के लिए असल चुनौती होगी, हालांकि यह अनुमान अभी से लगने लगा है कि गठबंधन के लिए आगे की राह आसान नहीं होने वाली है.
प्रदेश कांग्रेस के नवनियुक्त अध्यक्ष अजय राय इस समय प्रदेश के ताबड़तोड़ दौरे कर रहे हैं. अपनी बैठकों और मीडिया से बातचीत में वह समाजवादी पार्टी पर आरोप-प्रत्यारोप में कोई नरमी नहीं अपनाते. यहां तक कि वह प्रदेश की 25 से 30 लोकसभा सीटों तक दावा ठोकते हैं. यह तब है जब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी सिर्फ रायबरेली सीट जीतने में कामयाब हुई थी. यहां तक कि पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी परंपरागत अमेठी सीट भी बचा नहीं पाए थे और उन्हें भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी स्मृति ईरानी के हाथों पराजय मुंह देखना पड़ा था. 2022 के विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस पार्टी सिर्फ दो सीटें जीतने में कामयाब हुई थी.
जिस तरह उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी बहुत कमजोर राजनीतिक दल होने के बावजूद ज्यादा सीटों पर दावा ठोकर सपा पर दबाव बनाना चाहती है, उसी तरह समाजवादी पार्टी ने भी मध्यप्रदेश में ज्यादा सीटें मांगकर कांग्रेस को मुश्किल में डाल दिया है. समाजवादी पार्टी भी राष्ट्रीय दल का दर्जा चाहती है, स्वाभाविक है कि इसके लिए उसे अन्य राज्यों में भी सीटें जीतकर आना होगा. सपा के सामने अकेले कांग्रेस ही चुनौती नहीं है, उसे राष्ट्रीय लोकदल के साथ भी गठबंधन धर्म निभाना होगा. राष्ट्रीय लोकदल का वर्चस्व पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अधिक है, ऐसे में पश्चिम की सीटों पर रालोद का भी मजबूत दावा है, वहीं कांग्रेस पार्टी भी उत्तर प्रदेश कुछ सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारना चाहती है. ऐसे में बंटवारे के समय समाजवादी पार्टी के सामने चुनौती होगी कि वह किस तरह से सबको साथ लेकर चले और गठबंधन पर भी आंच न आने पाए.
राजनीतिक विश्लेषक डॉ प्रदीप यादव कहते हैं 'समाजवादी पार्टी के वह नेता जो पिछले पांच साल से लोकसभा चुनावों की तैयारी कर रहे हैं, यदि बड़ी संख्या में उनके टिकट कटे तो पार्टी में बगावत होगी. स्वाभाविक है कि अखिलेश यादव यह नहीं चाहेंगे. 2022 के विधानसभा चुनावों में इस तरह की गलतियां अखिलेश यादव से हुई थीं. निश्चित रूप से उन्होंने गलतियों से सबक लिया होगा और अब वह ऐसी गलतियां दोहराना नहीं चाहेंगे. गठबंधन करना और सीटों पर तालमेल एक बहुत बड़ा विषय है. इस चुनौती से निपटने के लिए सपा और कांग्रेस कितनी सहनशीलता दिखाते हैं, गठबंधन मजबूती इसी पर निर्भर करेगी, लेकिन इतना तो पक्का है कि आगे की राह दोनों ही दलों के लिए बहुत ही मुश्किलों भरी है.'