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मिठास में बदल सकती है चाचा-भतीजे के रिश्तों की कड़वाहट

समाजवादी पार्टी और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के बीच पड़ी दरार के भरने की संभावना एक बार फिर जाग रही है. नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद चौधरी ने प्रसपा मुखिया शिवपाल यादव की विधानसभा सदस्यता रद करने की याचिका वापस लेने का निर्णय लिया है.

shivpal yadav
शिवपाल यादव
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Published : May 29, 2020, 6:40 PM IST

Updated : May 29, 2020, 9:07 PM IST

लखनऊः समाजवादी पार्टी की साइकिल और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी की चाबी में मिलाप हो सकता है. चाचा-भतीजे आपस में हाथ मिलाकर एक साथ साइकिल चलाकर 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में फिर से पार्टी को सत्ता की दहलीज तक पहुंचा सकते हैं. सालों के गिले-शिकवे भुलाकर अब वे गले लग सकते हैं. ये सभी संभावनाएं जागी हैं नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद चौधरी की तरफ से प्रसपा मुखिया शिवपाल यादव की विधानसभा सदस्यता रद करने की याचिका वापस लेने के निर्णय के बाद. उनके इस कदम के बाद कयास लगने शुरू हो गए हैं कि अब फिर से परिवार एकजुट हो सकता है.

एक साथ आ सकते हैं प्रसपा और सपा

चाचा-भतीजे की अनबन का बीजेपी को मिला था फायदा
2017 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले चाचा शिवपाल यादव और भतीजे अखिलेश यादव के बीच रिश्ते में खटास पैदा हो गई थी. समाजवादी पार्टी से अलग होकर शिवपाल सिंह यादव ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बना ली थी. इसके बाद चाचा और भतीजे के रिश्तों में खटास पैदा हो गई थी. दोनों ने अपनी-अपनी पार्टियों से चुनाव लड़ा और इसका सीधा फायदा भारतीय जनता पार्टी को मिला. समाजवादी पार्टी सत्ता से बेदखल हो गई और भारतीय जनता पार्टी सत्ता पर काबिज हो गई.

एक साथ लड़ सकते हैं 2022 के चुनाव
अब 2022 विधानसभा चुनाव से पहले एक बार फिर से शिवपाल और अखिलेश के एक होने की संभावनाएं बढ़ने लगी हैं. सत्ता के गलियारों में यह चर्चा आम होने लगी है कि अगर ऐसा हुआ तो समाजवादी पार्टी फिर से काफी मजबूती से चुनाव में उतरेगी.

बता दें कि दोनों नेताओं के एक-दूसरे से अलग होने का फायदा तीसरी पार्टी को ही मिला है. चाचा शिवपाल यादव पार्टी से अलग हुए तो उन्होंने ऐसी बिसात बिछाई कि लोकसभा चुनाव में भी समाजवादी पार्टी के मुखिया और उनके भतीजे अखिलेश यादव की सारी रणनीति धराशाही हो गई.

अभी खुलकर नहीं आए सामने
हालांकि अभी यह सिर्फ कयास ही है कि चाचा और भतीजे एक हो रहे हैं. दोनों ही पार्टियों के नेता खुलकर नहीं बोल रहे हैं कि आने वाले दिनों में इन दोनों पार्टियों में गठबंधन होगा या फिर शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी में प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का विलय करेंगे. बता दें कि इससे पहले शिवपाल और अखिलेश होली के दौरान मंच पर एक- दूसरे से मिले थे. उस दौरान भी यह कयास लगने शुरू हो गए थे कि जल्द ही एक होंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

अब इसमें मैं कुछ नहीं कह सकता हूं. हमने याचिका दाखिल की थी. कुछ तकनीकी कारणों से वापस ले ली है. मैंने अपने मन से कोई याचिका दाखिल की नहीं. अपने मन से वापस ली नहीं. यह तो राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ही बता सकते हैं. हमें जैसा निर्देश मिला, हमने वैसा किया.
राम गोविंद चौधरी, नेता प्रतिपक्ष

यह तो भविष्य की कोख में छिपा हुआ प्रश्न है. अभी इसका कोई उत्तर देना जल्दबाजी होगी, लेकिन एक चीज तो स्पष्ट है कि ऐतिहासिक तौर पर देखिए जब भी समाजवादी विचारधारा में आस्था रखने वाले लोग एक मन हुए हैं, एक मंच पर आए हैं तभी उन्होंने सरकारों का अपने आपको विकल्प बनाया है. सपा की भी आस्था है और प्रसपा की भी. इन दोनों का इतिहास एक है. ठीक है कुछ गतिरोध और मनरोध रहे, लेकिन यह समय की मांग है कि हम कदम मिलाकर आगे बढ़ें और इस पर अखिलेश और शिवपाल को गंभीरतापूर्वक सोचना चाहिए.
दीपक मिश्रा, मुख्य प्रवक्ता, प्रसपा

लखनऊः समाजवादी पार्टी की साइकिल और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी की चाबी में मिलाप हो सकता है. चाचा-भतीजे आपस में हाथ मिलाकर एक साथ साइकिल चलाकर 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में फिर से पार्टी को सत्ता की दहलीज तक पहुंचा सकते हैं. सालों के गिले-शिकवे भुलाकर अब वे गले लग सकते हैं. ये सभी संभावनाएं जागी हैं नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद चौधरी की तरफ से प्रसपा मुखिया शिवपाल यादव की विधानसभा सदस्यता रद करने की याचिका वापस लेने के निर्णय के बाद. उनके इस कदम के बाद कयास लगने शुरू हो गए हैं कि अब फिर से परिवार एकजुट हो सकता है.

एक साथ आ सकते हैं प्रसपा और सपा

चाचा-भतीजे की अनबन का बीजेपी को मिला था फायदा
2017 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले चाचा शिवपाल यादव और भतीजे अखिलेश यादव के बीच रिश्ते में खटास पैदा हो गई थी. समाजवादी पार्टी से अलग होकर शिवपाल सिंह यादव ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बना ली थी. इसके बाद चाचा और भतीजे के रिश्तों में खटास पैदा हो गई थी. दोनों ने अपनी-अपनी पार्टियों से चुनाव लड़ा और इसका सीधा फायदा भारतीय जनता पार्टी को मिला. समाजवादी पार्टी सत्ता से बेदखल हो गई और भारतीय जनता पार्टी सत्ता पर काबिज हो गई.

एक साथ लड़ सकते हैं 2022 के चुनाव
अब 2022 विधानसभा चुनाव से पहले एक बार फिर से शिवपाल और अखिलेश के एक होने की संभावनाएं बढ़ने लगी हैं. सत्ता के गलियारों में यह चर्चा आम होने लगी है कि अगर ऐसा हुआ तो समाजवादी पार्टी फिर से काफी मजबूती से चुनाव में उतरेगी.

बता दें कि दोनों नेताओं के एक-दूसरे से अलग होने का फायदा तीसरी पार्टी को ही मिला है. चाचा शिवपाल यादव पार्टी से अलग हुए तो उन्होंने ऐसी बिसात बिछाई कि लोकसभा चुनाव में भी समाजवादी पार्टी के मुखिया और उनके भतीजे अखिलेश यादव की सारी रणनीति धराशाही हो गई.

अभी खुलकर नहीं आए सामने
हालांकि अभी यह सिर्फ कयास ही है कि चाचा और भतीजे एक हो रहे हैं. दोनों ही पार्टियों के नेता खुलकर नहीं बोल रहे हैं कि आने वाले दिनों में इन दोनों पार्टियों में गठबंधन होगा या फिर शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी में प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का विलय करेंगे. बता दें कि इससे पहले शिवपाल और अखिलेश होली के दौरान मंच पर एक- दूसरे से मिले थे. उस दौरान भी यह कयास लगने शुरू हो गए थे कि जल्द ही एक होंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

अब इसमें मैं कुछ नहीं कह सकता हूं. हमने याचिका दाखिल की थी. कुछ तकनीकी कारणों से वापस ले ली है. मैंने अपने मन से कोई याचिका दाखिल की नहीं. अपने मन से वापस ली नहीं. यह तो राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ही बता सकते हैं. हमें जैसा निर्देश मिला, हमने वैसा किया.
राम गोविंद चौधरी, नेता प्रतिपक्ष

यह तो भविष्य की कोख में छिपा हुआ प्रश्न है. अभी इसका कोई उत्तर देना जल्दबाजी होगी, लेकिन एक चीज तो स्पष्ट है कि ऐतिहासिक तौर पर देखिए जब भी समाजवादी विचारधारा में आस्था रखने वाले लोग एक मन हुए हैं, एक मंच पर आए हैं तभी उन्होंने सरकारों का अपने आपको विकल्प बनाया है. सपा की भी आस्था है और प्रसपा की भी. इन दोनों का इतिहास एक है. ठीक है कुछ गतिरोध और मनरोध रहे, लेकिन यह समय की मांग है कि हम कदम मिलाकर आगे बढ़ें और इस पर अखिलेश और शिवपाल को गंभीरतापूर्वक सोचना चाहिए.
दीपक मिश्रा, मुख्य प्रवक्ता, प्रसपा

Last Updated : May 29, 2020, 9:07 PM IST
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