ETV Bharat / state

लगातार तीन चुनाव में हार से सबक सीख पाएंगे अखिलेश! - samajwadi party founder mulayam singh yadav

लोकसभा चुनाव की ताजी हार के बाद पार्टी में मंथन का दौर जारी है, लेकिन सवाल इससे भी बड़ा यह है कि क्या चुनाव की हार से अखिलेश यादव कोई सबक सीखने के लिए तैयार हैं?

रास नहीं आया अखिलेश को महागठबंधन.
author img

By

Published : May 25, 2019, 8:26 AM IST

लखनऊ: समाजवादी पार्टी अपने स्थापना काल के बाद से अब तक के सबसे गहरे संकट से गुजर रही है. यह पहली बार हुआ है, जब लगातार तीन आम चुनाव में समाजवादी पार्टी को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा है. पार्टी ने पिछले दो चुनाव में गठबंधन का फार्मूला भी अपनाया, लेकिन इसके बावजूद उसे कामयाबी हासिल नहीं हो सकी.

रास नहीं आया अखिलेश को महागठबंधन.

रास नहीं आया अखिलेश को महागठबंधन

  • समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने स्थापना के पहले साल के अंदर ही पार्टी की उत्तर प्रदेश में सरकार बनवा दी थी.
  • पहली बार कांशीराम के साथ गठबंधन की सरकार चलाने वाले मुलायम सिंह यादव ने पिछले 25 साल के दौरान पार्टी को न केवल उत्तर प्रदेश की राजनीतिक केंद्र में रखा बल्कि सत्ता का सुख भी भोगा.
  • 2012 में जब समाजवादी पार्टी ने सत्ता में तीसरी बार वापसी की तो मुलायम सिंह यादव ने अपने बेटे अखिलेश यादव के माथे पर मुख्यमंत्री का ताज सजा दिया.
  • समाजवादी पार्टी के युवा चेहरे के तौर पर सामने आए अखिलेश यादव की सरकार रहने के दौरान ही पार्टी ने 2014 में लोकसभा का चुनाव लड़ा और कभी उत्तर प्रदेश की 40 लोकसभा सीट जीतने वाली समाजवादी पार्टी 5 सीट पर सिमट कर रह गई.
  • मोदी मैजिक मानते हुए समाजवादी पार्टी ने इस हार को हल्के में लिया.
  • 2017 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन किया और सरकार बनाने की हसरत लिए हुए विपक्ष में जा बैठे.
  • विधानसभा चुनाव से पहले अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी का घरेलू सत्ता संघर्ष अपने सगे चाचा शिवपाल सिंह यादव को पराजित कर जीता, लेकिन चुनावी हार के बावजूद वह शिवपाल यादव से समझौता करने के लिए तैयार नहीं हुए.
  • मुलायम सिंह यादव को समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से बेदखल और चाचा शिवपाल सिंह यादव को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा चुके अखिलेश यादव ने बसपा के साथ गठबंधन का नया दांव आजमाया.

यह भी पढें- इस बार स्मृति ईरानी समेत 11 महिलाएं संसद में करेंगी यूपी का प्रतिनिधित्व

अखिलेश को भरोसा था कि दलित, पिछड़ा और मुस्लिम गठजोड़ के बूते वे महापरिवर्तन का चक्र चलाने में कामयाब होंगे, लेकिन 2019 का लोकसभा चुनाव उनके लिए एक और दुःस्वप्न बनकर रह गया. चुनावी हार के बाद अब पार्टी के कार्यकर्ता और राजनीतिक विश्लेषक भी मान रहे हैं कि समाजवादी पार्टी अपने मूल रास्ते से भटक गई है. समाजवाद का नारा भूल कर वो जातिवाद के दलदल में बहुत गहरे तक धंस गई है. ऐसे में उसे राह दिखाने वाला भी कोई नहीं है क्योंकि अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी के ऐसे नेता बन चुके हैं, जिन्हें सलाह देने की जुर्रत भी कोई नहीं कर सकता.


लखनऊ: समाजवादी पार्टी अपने स्थापना काल के बाद से अब तक के सबसे गहरे संकट से गुजर रही है. यह पहली बार हुआ है, जब लगातार तीन आम चुनाव में समाजवादी पार्टी को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा है. पार्टी ने पिछले दो चुनाव में गठबंधन का फार्मूला भी अपनाया, लेकिन इसके बावजूद उसे कामयाबी हासिल नहीं हो सकी.

रास नहीं आया अखिलेश को महागठबंधन.

रास नहीं आया अखिलेश को महागठबंधन

  • समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने स्थापना के पहले साल के अंदर ही पार्टी की उत्तर प्रदेश में सरकार बनवा दी थी.
  • पहली बार कांशीराम के साथ गठबंधन की सरकार चलाने वाले मुलायम सिंह यादव ने पिछले 25 साल के दौरान पार्टी को न केवल उत्तर प्रदेश की राजनीतिक केंद्र में रखा बल्कि सत्ता का सुख भी भोगा.
  • 2012 में जब समाजवादी पार्टी ने सत्ता में तीसरी बार वापसी की तो मुलायम सिंह यादव ने अपने बेटे अखिलेश यादव के माथे पर मुख्यमंत्री का ताज सजा दिया.
  • समाजवादी पार्टी के युवा चेहरे के तौर पर सामने आए अखिलेश यादव की सरकार रहने के दौरान ही पार्टी ने 2014 में लोकसभा का चुनाव लड़ा और कभी उत्तर प्रदेश की 40 लोकसभा सीट जीतने वाली समाजवादी पार्टी 5 सीट पर सिमट कर रह गई.
  • मोदी मैजिक मानते हुए समाजवादी पार्टी ने इस हार को हल्के में लिया.
  • 2017 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन किया और सरकार बनाने की हसरत लिए हुए विपक्ष में जा बैठे.
  • विधानसभा चुनाव से पहले अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी का घरेलू सत्ता संघर्ष अपने सगे चाचा शिवपाल सिंह यादव को पराजित कर जीता, लेकिन चुनावी हार के बावजूद वह शिवपाल यादव से समझौता करने के लिए तैयार नहीं हुए.
  • मुलायम सिंह यादव को समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से बेदखल और चाचा शिवपाल सिंह यादव को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा चुके अखिलेश यादव ने बसपा के साथ गठबंधन का नया दांव आजमाया.

यह भी पढें- इस बार स्मृति ईरानी समेत 11 महिलाएं संसद में करेंगी यूपी का प्रतिनिधित्व

अखिलेश को भरोसा था कि दलित, पिछड़ा और मुस्लिम गठजोड़ के बूते वे महापरिवर्तन का चक्र चलाने में कामयाब होंगे, लेकिन 2019 का लोकसभा चुनाव उनके लिए एक और दुःस्वप्न बनकर रह गया. चुनावी हार के बाद अब पार्टी के कार्यकर्ता और राजनीतिक विश्लेषक भी मान रहे हैं कि समाजवादी पार्टी अपने मूल रास्ते से भटक गई है. समाजवाद का नारा भूल कर वो जातिवाद के दलदल में बहुत गहरे तक धंस गई है. ऐसे में उसे राह दिखाने वाला भी कोई नहीं है क्योंकि अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी के ऐसे नेता बन चुके हैं, जिन्हें सलाह देने की जुर्रत भी कोई नहीं कर सकता.


Intro:लखनऊ. समाजवादी पार्टी अपने स्थापना काल के बाद से अब तक के सबसे गहरे संकट दौर से गुजर रही है। यह पहली बार हुआ है जब लगातार तीन आम चुनाव में समाजवादी पार्टी को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा है। पार्टी ने पिछले दो चुनाव में गठबंधन का फार्मूला भी अपनाया लेकिन इसके बावजूद उसे कामयाबी हासिल नहीं हो सकी। लोकसभा चुनाव की ताजी हार के बाद पार्टी में मंथन का दौर जारी है लेकिन सवाल इससे भी बड़ा यह है कि क्या चुनाव की हार से अखिलेश यादव कोई सबक सीखने के लिए तैयार हैं?


Body:समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने स्थापना के पहले साल के अंदर ही पार्टी की उत्तर प्रदेश में सरकार बनवा दी थी पहली बार कांशीराम के साथ गठबंधन की सरकार चलाने वाले मुलायम सिंह यादव ने पिछले 25 साल के दौरान पार्टी को न केवल उत्तर प्रदेश की राजनीति के केंद्र में रखा बल्कि सत्ता का सुख भी भोगा 2012 में जब समाजवादी पार्टी ने सत्ता में तीसरी बार वापसी की तो मुलायम सिंह यादव ने अपने बेटे अखिलेश यादव के माथे पर मुख्यमंत्री का ताज सजा दिया। समाजवादी पार्टी के युवा चेहरे के तौर पर सामने आए अखिलेश यादव कि सरकार रहने के दौरान ही पार्टी ने 2014 में लोकसभा का चुनाव लड़ा और कभी उत्तर प्रदेश की 40 लोकसभा सीट जीतने वाली समाजवादी पार्टी 5 सीट पर सिमट कर रह गई। मोदी मैजिक मानते हुए समाजवादी पार्टी ने इस हार को हल्के में लिया । 2017 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन किया और सरकार बनाने की हसरत लिए हुए विपक्ष में जा बैठे। विधानसभा चुनाव से पहले अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी का घरेलू सत्ता संघर्ष अपने सगे चाचा शिवपाल सिंह यादव को पराजित कर जीता लेकिन चुनावी हार के बावजूद वह शिवपाल यादव से समझौता करने के लिए तैयार नहीं हुए।मुलायम सिंह यादव को समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से बेदखल और चाचा शिवपाल सिंह यादव को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा चुके अखिलेश यादव ने बसपा के साथ गठबंधन का नया दांव आजमाया। उन्हें भरोसा था कि दलित पिछड़ा और मुस्लिम गठजोड़ के बूते पर वह महा परिवर्तन का चक्र चलाने में कामयाब होंगे लेकिन 2019 का लोकसभा चुनाव उनके लिए एक और दुःस्वप्न बनकर रह गया। चुनावी हार के बाद अब पार्टी के कार्यकर्ता और राजनीतिक विश्लेषक भी मान रहे हैं कि समाजवादी पार्टी अपने मूल रास्ते से भटक गई है. समाजवाद का नारा भूल कर वो जातिवाद के दलदल में बहुत गहरे तक धँस गई है ऐसे में उसे राह दिखाने वाला भी कोई नहीं है क्योंकि अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी के ऐसे नेता बन चुके हैं जिन्हें सलाह देने की जुर्रत भी कोई नहीं कर सकता।


बाइट/ अतुल चंद्र पूर्व स्थानीय संपादक टाइम्स ऑफ इंडिया




Conclusion:पीटीसी अखिलेश तिवारी
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.