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विदेशी अपने साथ साथ कई व्यंजन लाए मगर ढाई हजार साल में नहीं बदला भारत का भात

भारत में सबसे अधिक चावल का उत्पादन होता है. भारत वैश्विक स्तर पर चावल का सबसे बड़ा निर्यातक है. इन दो सत्य के साथ हम आपको चावल से जुड़ा एक और तथ्य बताने जा रहे हैं. दरअसल चावल को उबालने के बाद बनने वाल भात (delicious food BHAT) ही भारत का सबसे पुराना प्रमुख व्यंजन है. लखनऊ विश्वविद्यालय में किए जा रहे रिसर्च के मुताबिक, महात्मा बुद्ध के समय से आज तक भात का स्वरूप नहीं बदला. हालांकि इसके साथ खाए जाने वाले दूसरे व्यंजन समय के साथ स्वाद और सूरत में बदल गए.

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Published : Nov 7, 2022, 6:14 PM IST

Updated : Nov 7, 2022, 7:17 PM IST

लखनऊ : अनेकता में एकता के मशहूर भारतवर्ष में विभिन्न धर्म, संप्रदाय, संस्कृति के लोग रहते हैं. भारत में कोस कोस पर बदले पानी और चार कोस पर वाणी वाला मुहावरा सच लगता है तो क्षेत्र और भोगौलिक विविधता के हिसाब से भोजन का स्वरूप (food tradition of india) भी बदलना स्वाभाविक है. वैसे में भारत में पकवान और व्यंजनों की कमी नहीं है. मगर व्यंजनों की इस कहानी में चावल से बनने वाले भात की कहानी भी काफी दिलचस्प है. मगर भारत में खाया जाने वाला सबसे ज्यादा अन्न चावल 'भात' है. उत्तर-दक्षिण पूर्व और पश्चिम, देश के किसी कोने में चले जाएं, चावल को उबालकर बनने वाला भात जरूर मिल जाएगा. भाषा और बोली के हिसाब से इसके नाम में कुछ अंतर हो सकता है.

अब रिसर्च में भात के इतिहास को लेकर प्रमाणिक और दिलचस्प तथ्य सामने आए हैं. लखनऊ विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व विभाग में हुए एक शोध में सामने आया है कि भगवान बुद्ध के समय से लेकर हिंदू राजवंश के समाप्ति तक का है यानी 6 BC से लेकर 12वीं ईसवी तक चावल से बनने वाला भात का स्वरूप नहीं बदला. तुर्क, अफगान, मुगल और अंग्रेज के भारत में आने के बाद कई नए व्यंजनों ने भारतीय रसोई में जगह बनाई, मगर भात आज भी वैसा ही है, जैसा छठी शताब्दी में था. बिल्कुल उबला और सफेद, एक अजीब सी मिठास लिए. पूर्वोत्तर भारत में यह दाल के साथ खाया जाता है और दाल-भात के नाम से प्रसिद्ध है. देश के अन्य हिस्सों में करी, राजमा और अन्य सब्जियों के साथ खाया जाता है. ओडिशा और पूर्वोत्तर के कई राज्यों में पाखाल या पखाल यानी पानी-भात भी बेहद पॉपुलर है.

जानकारी देते प्रोफेसर

लखनऊ विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व विभाग के रिसर्चर हिमांशु सिंह ने प्राचीन भारतीय प्राचीन भारत के भोजन और फूड सिस्टम पर रिसर्च किया है. हिमांशु बताते हैं कि अपने शोध के दौरान उन्होंने भगवान बुद्ध के समय से लेकर हिंदू राजवंश के समाप्ति तक का है यानी 6 BC से लेकर 12वीं सदी तक के फूड सिस्टम का अध्ययन किया है. रिसर्च के दौरान उन्होंने पाया कि 6 बीसी में जैसे लोग चावल को उबालकर भात बनाते थे, आज भी उसी तरह भात का उपयोग प्रचलित है.

हिमांशु बताते हैं कि विदेशियों के संपर्क में आने से कई अन्न हमारे भोजन में शामिल हुए. जैसे तुर्कों के आने के बाद समोसा भारत आया. समोसा मूल रूप से मांसाहार व्यंजन है जिसका स्वरूप बदलकर भारतीयों ने उसे अपने यहां खाद्य पदार्थ में शामिल किया. इसी तरह मुगल, पारसी, तुर्क, अफगानी और अंग्रेजों के व्यंजन भी भारतीय खाने में शामिल हए. हालांकि विदेशी व्यंजनों का स्वरूप भारत के घरों में ओरिजिनल नहीं रहा. उसके स्वरूप और स्वाद में काफी बदलाव हुआ. मगर भात एक ऐसा खाद पदार्थ है, जिसमें किसी प्रकार का कोई भी परिवर्तन इतने सालों के बाद भी नहीं आया है.

हिमांशु के गाइड रहे प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व विभाग प्रोफेसर दुर्गेश श्रीवास्तव ने भी भात से जुड़े रिसर्च से सहमति जाहिर की. प्रोफेसर दुर्गेश श्रीवास्तव ने बताया कि चावल एक ऐसा खाद्य पदार्थ है, जो पूरे मिडिल ईस्ट में 6 ईसापूर्व या उससे पहले से ही खाया जा रहा है. उन्होंने बताया कि मौर्य काल में अन्य मोटे अनाज की पैदावार शुरू हो गई थी. फिर उन अनाजों के साथ चावल को मिलाकर खाया जाने लगा.

पढ़ें : राजधानी के कई डिग्री कॉलेजों में पोस्टग्रैजुएशन में प्रवेश का मौका, दो बार चांस देने के बाद भी सीटें खाली

लखनऊ : अनेकता में एकता के मशहूर भारतवर्ष में विभिन्न धर्म, संप्रदाय, संस्कृति के लोग रहते हैं. भारत में कोस कोस पर बदले पानी और चार कोस पर वाणी वाला मुहावरा सच लगता है तो क्षेत्र और भोगौलिक विविधता के हिसाब से भोजन का स्वरूप (food tradition of india) भी बदलना स्वाभाविक है. वैसे में भारत में पकवान और व्यंजनों की कमी नहीं है. मगर व्यंजनों की इस कहानी में चावल से बनने वाले भात की कहानी भी काफी दिलचस्प है. मगर भारत में खाया जाने वाला सबसे ज्यादा अन्न चावल 'भात' है. उत्तर-दक्षिण पूर्व और पश्चिम, देश के किसी कोने में चले जाएं, चावल को उबालकर बनने वाला भात जरूर मिल जाएगा. भाषा और बोली के हिसाब से इसके नाम में कुछ अंतर हो सकता है.

अब रिसर्च में भात के इतिहास को लेकर प्रमाणिक और दिलचस्प तथ्य सामने आए हैं. लखनऊ विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व विभाग में हुए एक शोध में सामने आया है कि भगवान बुद्ध के समय से लेकर हिंदू राजवंश के समाप्ति तक का है यानी 6 BC से लेकर 12वीं ईसवी तक चावल से बनने वाला भात का स्वरूप नहीं बदला. तुर्क, अफगान, मुगल और अंग्रेज के भारत में आने के बाद कई नए व्यंजनों ने भारतीय रसोई में जगह बनाई, मगर भात आज भी वैसा ही है, जैसा छठी शताब्दी में था. बिल्कुल उबला और सफेद, एक अजीब सी मिठास लिए. पूर्वोत्तर भारत में यह दाल के साथ खाया जाता है और दाल-भात के नाम से प्रसिद्ध है. देश के अन्य हिस्सों में करी, राजमा और अन्य सब्जियों के साथ खाया जाता है. ओडिशा और पूर्वोत्तर के कई राज्यों में पाखाल या पखाल यानी पानी-भात भी बेहद पॉपुलर है.

जानकारी देते प्रोफेसर

लखनऊ विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व विभाग के रिसर्चर हिमांशु सिंह ने प्राचीन भारतीय प्राचीन भारत के भोजन और फूड सिस्टम पर रिसर्च किया है. हिमांशु बताते हैं कि अपने शोध के दौरान उन्होंने भगवान बुद्ध के समय से लेकर हिंदू राजवंश के समाप्ति तक का है यानी 6 BC से लेकर 12वीं सदी तक के फूड सिस्टम का अध्ययन किया है. रिसर्च के दौरान उन्होंने पाया कि 6 बीसी में जैसे लोग चावल को उबालकर भात बनाते थे, आज भी उसी तरह भात का उपयोग प्रचलित है.

हिमांशु बताते हैं कि विदेशियों के संपर्क में आने से कई अन्न हमारे भोजन में शामिल हुए. जैसे तुर्कों के आने के बाद समोसा भारत आया. समोसा मूल रूप से मांसाहार व्यंजन है जिसका स्वरूप बदलकर भारतीयों ने उसे अपने यहां खाद्य पदार्थ में शामिल किया. इसी तरह मुगल, पारसी, तुर्क, अफगानी और अंग्रेजों के व्यंजन भी भारतीय खाने में शामिल हए. हालांकि विदेशी व्यंजनों का स्वरूप भारत के घरों में ओरिजिनल नहीं रहा. उसके स्वरूप और स्वाद में काफी बदलाव हुआ. मगर भात एक ऐसा खाद पदार्थ है, जिसमें किसी प्रकार का कोई भी परिवर्तन इतने सालों के बाद भी नहीं आया है.

हिमांशु के गाइड रहे प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व विभाग प्रोफेसर दुर्गेश श्रीवास्तव ने भी भात से जुड़े रिसर्च से सहमति जाहिर की. प्रोफेसर दुर्गेश श्रीवास्तव ने बताया कि चावल एक ऐसा खाद्य पदार्थ है, जो पूरे मिडिल ईस्ट में 6 ईसापूर्व या उससे पहले से ही खाया जा रहा है. उन्होंने बताया कि मौर्य काल में अन्य मोटे अनाज की पैदावार शुरू हो गई थी. फिर उन अनाजों के साथ चावल को मिलाकर खाया जाने लगा.

पढ़ें : राजधानी के कई डिग्री कॉलेजों में पोस्टग्रैजुएशन में प्रवेश का मौका, दो बार चांस देने के बाद भी सीटें खाली

Last Updated : Nov 7, 2022, 7:17 PM IST
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