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लखनऊ: डिप्रेशन की दवाइयों पर हो रहा रिसर्च, पर क्यों लग रहा है इस पर ब्रेक! - research in depression medicine

केजीएमसी के मानसिक स्वास्थ्य विभाग में दो ऐसे रिसर्च किए जा रहे हैं.जिनका सीधा प्रभाव मरीजों पर देखा जा सकता है. पहला रिसर्च मरीजों को दी जाने वाली एंटीडिप्रेसेंट दवाओं के लिए है. वहीं दूसरा रिसर्च युवाओं और वृद्धावस्था हो रहे मानसिक बदलाव पर आधारित है.

डॉ. श्रीकांत श्रीवास्तव, विभागाध्यक्ष, जिरियाट्रिक मेंटल हेल्थ डिपार्टमेंट
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Published : Jul 8, 2019, 9:37 PM IST

लखनऊ: बुजुर्ग भुलक्कड़ हो रहे हैं और जवान अवसाद के शिकार हो रहे हैं. इसका खुलासा होने के बाद किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के वृद्धावस्था मानसिक स्वास्थ्य विभाग ने इन के कारणों की तलाश शुरू की है. शोध एक कदम बढ़कर भी ठहर गया है. वहीं इस को लेकर शोधार्थियों का कहना है कि संसाधनों की कमी हो रही है फिर भी हम इस दिशा में बढ़ रहे हैं.

जानिए क्या हो रहा शोध कार्य-

  • केजीएमसी के मानसिक स्वास्थ्य विभाग में दो ऐसे रिसर्च किए जा रहे हैं.
  • एक रिसर्च मरीजों को दी जाने वाली एंटीडिप्रेसेंट दवाओं के लिए है.
  • दूसरी रिसर्च युवाओं और वृद्धावस्था में हो रहे मानसिक बदलाव पर आधारित है.

इस मामले में ईटीवी भारत ने इस विभाग की पीएचडी स्कॉलर अनामिका श्रीवास्तव से बातचीत की तो उन्होंने कहा कि मेरी रिसर्च एडल्ट और ओल्डर एडल्ट्स लोगों पर है. हमारा मुख्य उद्देश्य डिप्रेशन से पीड़ित और सामान्य मरीजों के बीच के बायोमाकर्स को निकालना है. इस रिसर्च से हम सामान्य और अवसाद ग्रस्त मरीजों के बीच को रिलेशन कर इस नतीजे पर पहुंच सकते हैं कि दोनों ग्रुप में किसी तरह का कोई मानसिक बदलाव आ रहा है या नहीं.

केजीएमसी के मानसिक स्वास्थ्य विभाग में किए जा रहे हैं दो नए रिसर्च.

सीनियर रेजीडेंट डॉक्टर सौम्यजीत सान्याल ने बताया कि-

  • यह रिसर्च दो भाग में पूरी की जा रही है. पहला भाग मरीज के शुरुआती दौर का होगा जब उसे एंटीडिप्रेसेंट दवाएं दी जाएंगी.
  • उसके चार हफ्ते बाद उन एंटीडिप्रेसेंट दवाओं का असर क्यूईजी के माध्यम से मरीज पर दोबारा जांचा जाएगा.
  • इस रिसर्च के माध्यम से मरीज को दी जाने वाली एंटीडिप्रेसेंट दवाओं के प्रभाव के बारे में हम पता लगा सकते हैं.
  • इसके आधार पर मरीजों का बेहतर इलाज किया जा सकता है.
  • दो महीने पहले इस रिसर्च की शुरुआत की जा चुकी है, पर कुछ लॉजिस्टिक परेशानियों की वजह से यह रिसर्च तेजी नहीं पकड़ पा रही है.
  • कहीं न कहीं विभाग में कुछ साधनों की कमी है. कुछ मशीनें खराब पड़ी हैं या कभी लैब टेक्नीशियन और स्टाफ की कमी हो जा रही है.

पिछले कुछ वर्षों में डिप्रेशन के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है. इसके कुछ भी कारण हो सकते हैं. ऐसे में डिप्रेशन को को लैब से डायग्नोस्टिक उसके सबसे अच्छे इलाज क्या हो सकते हैं यह रिसर्च के मुख्य बिंदुओं में शामिल है.वृद्धावस्था मानसिक विभाग में 1 हफ्ते में 10 से 12 मरीज डिप्रेशन से पीड़ित आ जाते हैं. यह ऐसे लोग हैं जो डिप्रेशन की समस्या के साथ ओपीडी आ जाते हैं पर काफी बड़ी संख्या में ऐसे भी लोग हमारे समाज में उपस्थित हैं जो डिप्रेशन को पहचान नहीं पाते हैं और यदि पहचान भी जाएं तो इलाज करवाने में झिझकते हैं. ऐसे में यदि वह मरीज भी अस्पताल में आ जाए तो यह संख्या काफी अधिक हो जाएगी.
-डॉ. श्रीकांत श्रीवास्तव, विभागाध्यक्ष, जिरियाट्रिक मेंटल हेल्थ डिपार्टमेंट

लखनऊ: बुजुर्ग भुलक्कड़ हो रहे हैं और जवान अवसाद के शिकार हो रहे हैं. इसका खुलासा होने के बाद किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के वृद्धावस्था मानसिक स्वास्थ्य विभाग ने इन के कारणों की तलाश शुरू की है. शोध एक कदम बढ़कर भी ठहर गया है. वहीं इस को लेकर शोधार्थियों का कहना है कि संसाधनों की कमी हो रही है फिर भी हम इस दिशा में बढ़ रहे हैं.

जानिए क्या हो रहा शोध कार्य-

  • केजीएमसी के मानसिक स्वास्थ्य विभाग में दो ऐसे रिसर्च किए जा रहे हैं.
  • एक रिसर्च मरीजों को दी जाने वाली एंटीडिप्रेसेंट दवाओं के लिए है.
  • दूसरी रिसर्च युवाओं और वृद्धावस्था में हो रहे मानसिक बदलाव पर आधारित है.

इस मामले में ईटीवी भारत ने इस विभाग की पीएचडी स्कॉलर अनामिका श्रीवास्तव से बातचीत की तो उन्होंने कहा कि मेरी रिसर्च एडल्ट और ओल्डर एडल्ट्स लोगों पर है. हमारा मुख्य उद्देश्य डिप्रेशन से पीड़ित और सामान्य मरीजों के बीच के बायोमाकर्स को निकालना है. इस रिसर्च से हम सामान्य और अवसाद ग्रस्त मरीजों के बीच को रिलेशन कर इस नतीजे पर पहुंच सकते हैं कि दोनों ग्रुप में किसी तरह का कोई मानसिक बदलाव आ रहा है या नहीं.

केजीएमसी के मानसिक स्वास्थ्य विभाग में किए जा रहे हैं दो नए रिसर्च.

सीनियर रेजीडेंट डॉक्टर सौम्यजीत सान्याल ने बताया कि-

  • यह रिसर्च दो भाग में पूरी की जा रही है. पहला भाग मरीज के शुरुआती दौर का होगा जब उसे एंटीडिप्रेसेंट दवाएं दी जाएंगी.
  • उसके चार हफ्ते बाद उन एंटीडिप्रेसेंट दवाओं का असर क्यूईजी के माध्यम से मरीज पर दोबारा जांचा जाएगा.
  • इस रिसर्च के माध्यम से मरीज को दी जाने वाली एंटीडिप्रेसेंट दवाओं के प्रभाव के बारे में हम पता लगा सकते हैं.
  • इसके आधार पर मरीजों का बेहतर इलाज किया जा सकता है.
  • दो महीने पहले इस रिसर्च की शुरुआत की जा चुकी है, पर कुछ लॉजिस्टिक परेशानियों की वजह से यह रिसर्च तेजी नहीं पकड़ पा रही है.
  • कहीं न कहीं विभाग में कुछ साधनों की कमी है. कुछ मशीनें खराब पड़ी हैं या कभी लैब टेक्नीशियन और स्टाफ की कमी हो जा रही है.

पिछले कुछ वर्षों में डिप्रेशन के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है. इसके कुछ भी कारण हो सकते हैं. ऐसे में डिप्रेशन को को लैब से डायग्नोस्टिक उसके सबसे अच्छे इलाज क्या हो सकते हैं यह रिसर्च के मुख्य बिंदुओं में शामिल है.वृद्धावस्था मानसिक विभाग में 1 हफ्ते में 10 से 12 मरीज डिप्रेशन से पीड़ित आ जाते हैं. यह ऐसे लोग हैं जो डिप्रेशन की समस्या के साथ ओपीडी आ जाते हैं पर काफी बड़ी संख्या में ऐसे भी लोग हमारे समाज में उपस्थित हैं जो डिप्रेशन को पहचान नहीं पाते हैं और यदि पहचान भी जाएं तो इलाज करवाने में झिझकते हैं. ऐसे में यदि वह मरीज भी अस्पताल में आ जाए तो यह संख्या काफी अधिक हो जाएगी.
-डॉ. श्रीकांत श्रीवास्तव, विभागाध्यक्ष, जिरियाट्रिक मेंटल हेल्थ डिपार्टमेंट

Intro:लखनऊ। बुजुर्ग भुलक्कड़ हो रहे हैं और जवान अवसाद के शिकार हो रहे हैं। इसका खुलासा होने के बाद किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के वृद्धावस्था मानसिक स्वास्थ्य विभाग ने इन के कारणों की तलाश शुरू की। शोध एक कदम बढ़कर भी ठहर गया है। शोधार्थियों का कहना है कि संसाधनों की कमी हो रही है फिर भी हम इस दिशा में बढ़ रहे हैं।


Body:वीओ किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी की व्यवस्था मानसिक स्वास्थ्य विभाग में दो ऐसे रिसर्च किए जा रहे हैं जिनका सीधा प्रभाव मरीजों पर देखा जा सकता है सच में एक रिसर्च मरीजों को दी जाने वाली एंटीडिप्रेसेंट दवाओं के लिए है तो वहीं दूसरी रिसर्च युवाओं और वृद्धावस्था हो रहे मानसिक बदलाव पर आधारित है। जिरियाट्रिक मेंटल हेल्थ डिपार्टमेंट के विभागाध्यक्ष डॉ श्रीकांत श्रीवास्तव कहते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में डिप्रेशन के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। इसके कुछ भी कारण हो सकते हैं। ऐसे में डिप्रेशन को को लैब से डायग्नोस्टिक उसके सबसे अच्छे इलाज क्या हो सकते हैं यह रिसर्च के मुख्य बिंदुओं में शामिल है। डॉ श्रीवास्तव कहते हैं कि वृद्धावस्था मानसिक विभाग में 1 हफ्ते में 10 से 12 मरीज डिप्रेशन से पीड़ित आ जाते हैं। यह ऐसे लोग हैं जो डिप्रेशन की समस्या के साथ ओपीडी आ जाते हैं पर काफी बड़ी संख्या में ऐसे भी लोग हमारे समाज में उपस्थित हैं जो डिप्रेशन को पहचान नहीं पाते हैं और यदि पहचान भी जाएं तो इलाज करवाने में झिझकते हैं। ऐसे में यदि वह मरीज भी अस्पताल में आ जाए तो यह संख्या काफी अधिक हो जाएगी। विभाग में पीएचडी स्कॉलर अनामिका श्रीवास्तव 30 से 70 वर्ष तक के लोगों के मानसिक स्वास्थ्य के बदलाव के बारे में रिसर्च कर रही हैं। वे कहती हैं कि मेरी रिसर्च एडल्ट और ओल्डर एडल्ट्स लोगों पर है। हमारा मुख्य उद्देश्य डिप्रेशन से पीड़ित और सामान्य मरीजों के बीच के बायोमाकर्स को निकालना है। इस रिसर्च से हम सामान्य और अवसाद ग्रस्त मरीजों के बीच को रिलेशन कर इस नतीजे पर पहुंच सकते हैं कि दोनों ग्रुप में किसी तरह का कोई मानसिक बदलाव आ रहा है या नहीं। विभाग के सीनियर रेजीडेंट डॉक्टर सौम्यजीत सान्याल अवसाद के शिकार मरीजों पर रिसर्च कर रहे हैं। इस रिसर्च के बारे में वह कहते हैं कि यह रिसर्च दो भाग में पूरी की जा रही है। पहला भाग मरीज के शुरुआती दौर का होगा जब उसे एंटीडिप्रेसेंट दवाएं दी जाएंगी और उसके 4 हफ्ते बाद उन एंटीडिप्रेसेंट दवाओं का असर क्यूईजी के माध्यम से मरीज पर दोबारा जांचा जाएगा। डॉक्टर सान्याल कहते हैं कि इस रिसर्च के माध्यम से मरीज को दी जाने वाली एंटीडिप्रेसेंट दवाओं के प्रभाव के बारे में हम पता लगा सकते हैं। इसके आधार पर मरीजों का बेहतर इलाज किया जा सकता है। डॉक्टर सान्याल कहते हैं कि 2 महीने पहले इस रिसर्च की शुरुआत की जा चुकी है, पर कुछ लॉजिस्टिक परेशानियों की वजह से यह रिसर्च तेजी नहीं पकड़ पा रही है। कहीं न कहीं विभाग में कुछ साधनों की कमी है। कुछ मशीनें खराब पड़ी हैं, या कभी लैब टेक्नीशियन और स्टाफ की कमी हो जा रही है। साथ ही मरीजों की संख्या में भी फिलहाल कमी है।


Conclusion:सवाल यह है कि संसाधनों के अभाव में डॉक्टरों ने शोध पूरा कर भी लिया तो क्या उसके निष्कर्ष इस दिशा में कारगर परिणाम ला सकेंगे? बाइट- डॉ श्रीकांत श्रीवास्तव, हेड ऑफ डिपार्टमेंट जेरियट्रिक मेंटल हेल्थ डिपार्टमेंट केजीएमयू बाइट- अनामिका पीएचडी स्कॉलर बाइट- सौम्यजीत सान्याल, सीनियर रेजिडेंट पीटीसी- रामांशी मिश्रा
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