लखनऊ: बुजुर्ग भुलक्कड़ हो रहे हैं और जवान अवसाद के शिकार हो रहे हैं. इसका खुलासा होने के बाद किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के वृद्धावस्था मानसिक स्वास्थ्य विभाग ने इन के कारणों की तलाश शुरू की है. शोध एक कदम बढ़कर भी ठहर गया है. वहीं इस को लेकर शोधार्थियों का कहना है कि संसाधनों की कमी हो रही है फिर भी हम इस दिशा में बढ़ रहे हैं.
जानिए क्या हो रहा शोध कार्य-
- केजीएमसी के मानसिक स्वास्थ्य विभाग में दो ऐसे रिसर्च किए जा रहे हैं.
- एक रिसर्च मरीजों को दी जाने वाली एंटीडिप्रेसेंट दवाओं के लिए है.
- दूसरी रिसर्च युवाओं और वृद्धावस्था में हो रहे मानसिक बदलाव पर आधारित है.
इस मामले में ईटीवी भारत ने इस विभाग की पीएचडी स्कॉलर अनामिका श्रीवास्तव से बातचीत की तो उन्होंने कहा कि मेरी रिसर्च एडल्ट और ओल्डर एडल्ट्स लोगों पर है. हमारा मुख्य उद्देश्य डिप्रेशन से पीड़ित और सामान्य मरीजों के बीच के बायोमाकर्स को निकालना है. इस रिसर्च से हम सामान्य और अवसाद ग्रस्त मरीजों के बीच को रिलेशन कर इस नतीजे पर पहुंच सकते हैं कि दोनों ग्रुप में किसी तरह का कोई मानसिक बदलाव आ रहा है या नहीं.
सीनियर रेजीडेंट डॉक्टर सौम्यजीत सान्याल ने बताया कि-
- यह रिसर्च दो भाग में पूरी की जा रही है. पहला भाग मरीज के शुरुआती दौर का होगा जब उसे एंटीडिप्रेसेंट दवाएं दी जाएंगी.
- उसके चार हफ्ते बाद उन एंटीडिप्रेसेंट दवाओं का असर क्यूईजी के माध्यम से मरीज पर दोबारा जांचा जाएगा.
- इस रिसर्च के माध्यम से मरीज को दी जाने वाली एंटीडिप्रेसेंट दवाओं के प्रभाव के बारे में हम पता लगा सकते हैं.
- इसके आधार पर मरीजों का बेहतर इलाज किया जा सकता है.
- दो महीने पहले इस रिसर्च की शुरुआत की जा चुकी है, पर कुछ लॉजिस्टिक परेशानियों की वजह से यह रिसर्च तेजी नहीं पकड़ पा रही है.
- कहीं न कहीं विभाग में कुछ साधनों की कमी है. कुछ मशीनें खराब पड़ी हैं या कभी लैब टेक्नीशियन और स्टाफ की कमी हो जा रही है.
पिछले कुछ वर्षों में डिप्रेशन के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है. इसके कुछ भी कारण हो सकते हैं. ऐसे में डिप्रेशन को को लैब से डायग्नोस्टिक उसके सबसे अच्छे इलाज क्या हो सकते हैं यह रिसर्च के मुख्य बिंदुओं में शामिल है.वृद्धावस्था मानसिक विभाग में 1 हफ्ते में 10 से 12 मरीज डिप्रेशन से पीड़ित आ जाते हैं. यह ऐसे लोग हैं जो डिप्रेशन की समस्या के साथ ओपीडी आ जाते हैं पर काफी बड़ी संख्या में ऐसे भी लोग हमारे समाज में उपस्थित हैं जो डिप्रेशन को पहचान नहीं पाते हैं और यदि पहचान भी जाएं तो इलाज करवाने में झिझकते हैं. ऐसे में यदि वह मरीज भी अस्पताल में आ जाए तो यह संख्या काफी अधिक हो जाएगी.
-डॉ. श्रीकांत श्रीवास्तव, विभागाध्यक्ष, जिरियाट्रिक मेंटल हेल्थ डिपार्टमेंट