लखनऊः राजधानी जहां अपनी नवाबी शान-व-शौकत और खान पान के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. वहीं इस शहर ने देश की आजादी के जंग में भी अपना अहम योगदान दिया है. पूरे हिंदुस्तान में अंग्रेजी हुकूमत को अगर सबसे बड़े संकट का सामना कहीं करना पड़ा तो वो नवाबों के शहर लखनऊ था. 1857 के विद्रोह का ही असर था कि उस क्रांति के 90 साल बाद जब 1947 में देश को आजादी की घोषणा हुई तो 15 अगस्त से दो दिन पहले अंग्रेजों ने राजधानी के रेजिडेंसी से अपना झंडा उतार लिया था.
इतिहासकारों का कहना है कि 15 अगस्त को जब भारत को आजाद घोषित करने का निर्णय लिया गया. अवध के रेजिडेंसी में रह रहे अंग्रेज अफसरों को डर था कि कहीं 1857 की क्रांति की तरह आजादी मिलने के बाद फिर उन पर उसी तरह का हमला ना हो जाए. इसी डर से उन्होंने 13 अगस्त को ही रेजीडेंसी से अंग्रेजी झंडा उतार लिया था.
इतिहासकार रवि भट्ट बताया कि 'उस समय रेजिडेंटसी के केयर टेकर आयरलैंड 13 अगस्त की रात को रेजिडेंसी के टावर जहां पर अंग्रेजों का झंडा लगता था वहां जाकर झंडा चोरी करके ले आता है. इसके 2 दिन बाद अवध के मेजर जनरल अल्बर्ट कर्टसी वहां पहुंचते है, वो उस जगह को जहां पर अंग्रेजों का झंडा फहराया जाता था वहां से झंडा फहराने वाले स्तन को तोड़ते हैं और प्लास्टर करके उस जगह को बराबर कर देते हैं. उनको डर था कहीं 1857 के गदर की तरह दोबारा अवध में लोगों का गुस्सा ना भड़के और वह रेजीडेंसी पर हमला कर दे.'
2 दिनों तक बांटी थी मिठाइयांः रवी भट्ट बताते हैं कि 15 अगस्त को आजादी मिलने के बाद अमीनाबाद के झंडे वाले पार्क में एक बड़ी जनसभा आयोजित की गई. आजादी की पहली रात अमीनाबाद का पूरा क्षेत्र रोशनी से जगमगाया गया था. साथ ही लखनऊ में 2 दिनों तक सड़कों पर मिठाईयां बांटी गई थी.
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