लखनऊ : उत्तर प्रदेश के विश्वविद्यालयों और महाविद्यालय में पढ़ने वाले 30 लाख से ज्यादा छात्रों के लिए अच्छी खबर है. यूजी और पीजी के फाइनल ईयर के छात्रों को छोड़कर किसी अन्य को परीक्षा नहीं देनी होगी. शासन की ओर से बनाई गई तीन कुलपतियों की समिति ने यह प्रस्ताव तैयार किया है. अब अगर शासन से इस प्रस्ताव को मंजूरी मिल जाएगी तो इन छात्र-छात्राओं को बड़ी राहत मिलेगी.
इस फार्मूले पर काम कर रही सरकार
प्रदेश सरकार ने बिना परीक्षाओं के छात्रों को प्रमोट करने का फार्मूला तलाशने का काम शुरू कर दिया है. इसके लिए शासन की तरफ से तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया है. इसमें, छत्रपति शाहूजी महाराज कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर विनय कुमार पाठक, लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर आलोक कुमार राय और बरेली के रुहेलखंड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर कृष्ण पाल सिंह शामिल है. इस समिति ने अपनी रिपोर्ट शासन को भेज दी है.
समिति ने की ये सिफारिशें
- स्नातक प्रथम और द्वितीय वर्ष के छात्रों को प्रमोट कर दिया जाए. अंतिम वर्ष के छात्रों की परीक्षा कराई जाए.
- अंतिम वर्ष के छात्रों की परीक्षा का प्रारूप विश्वविद्यालयों को अपने स्तर पर तय करने की छूट मिले.
- जो विद्यार्थी अभी द्वितीय वर्ष में है, उन्हें सत्र 2020-21 में भी बिना परीक्षा के प्रमोट किया गया था. अगले वर्ष स्नातक अंतिम वर्ष की परीक्षा के साथ उनकी द्वितीय वर्ष की परीक्षा भी ली जाए.
- द्वितीय वर्ष की परीक्षा के अंकों के आधार पर प्रथम वर्ष के अंक निर्धारित किए जाएं. ताकि विद्यार्थी केवल 1 वर्ष की परीक्षा देकर ही उत्तीर्ण ना हो.
- प्रथम वर्ष के जिन विद्यार्थियों को प्रमोट किया जाएगा, उनकी द्वितीय वर्ष की परीक्षा के प्राप्तांक के आधार पर प्रथम वर्ष के अंक निर्धारित किए जाएंगे.
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने भी दी है छूट
कोरोना संक्रमण के मौजूदा हालातों को देखते हुए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने परीक्षाओं के संबंध में विश्वविद्यालयों को छूट दी है. विश्वविद्यालयों को स्थानीय स्थिति की समीक्षा करते हुए परीक्षा कराने या ना कराने के संबंध में फैसला लेने को कहा गया है. आयोग ने साफ किया है कि विश्वविद्यालय ऑटोनॉमस संस्थान है. इसलिए इन मुद्दों पर वह अपने स्तर पर फैसला कर सकते हैं. अंतिम वर्ष के छात्रों को छोड़ कर सभी अन्य को राहत मिल सकती है.
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शासन ने भले ही अभी प्रक्रिया शुरू की है. लेकिन, लखनऊ विश्वविद्यालय समेत प्रदेश के कई राज्य विश्वविद्यालय अपने स्तर पर पहले ही परीक्षा ना कराने का प्रस्ताव तैयार कर चुके हैं. लखनऊ विश्वविद्यालय की ओर से करीब 15 से 20 दिन पहले ही यह प्रस्ताव शासन को भेजा जा चुका है.