लखनऊ: जिस तरह से पंजाब में स्थानीय निकाय चुनाव में किसान आंदोलन का समर्थन करने का फायदा कांग्रेस पार्टी को मिला है, ठीक इसी तरह उत्तर प्रदेश में किसानों की राजनीति करने वाली राष्ट्रीय लोकदल के लिए भी किसान आंदोलन ऑक्सीजन का काम कर सकता है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोकदल का हमेशा से ही दबदबा रहा है. लेकिन, पिछले कुछ सालों में पार्टी की स्थिति बदतर होती गई. वेंटिलेटर पर पहुंच चुके राष्ट्रीय लोकदल को किसान आंदोलन एक बार फिर ऑक्सीजन दे सकता है. नए कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहा किसान आंदोलन अंतिम सांसे गिन रही पार्टी में फिर से जान डाल सकता है. इसे लेकर रालोद के नेता सक्रिय भी हैं और आशान्वित भी. पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जयंत चौधरी लगातार किसानों के बीच जा रहे हैं और उन्हें किसान मसीहा चौधरी चरण सिंह की दुहाई भी दे रहे हैं.
शून्य से शिखर तक पहुंचाने की कवायद
पश्चिमी उत्तर प्रदेश बेल्ट पर रालोद का काफी समय से दबदबा माना जाता है. किसान मसीहा चौधरी चरण सिंह के बेटे चौधरी अजित सिंह लगातार यहां से चुनाव लड़कर उत्तर प्रदेश से लेकर केंद्र की सरकार में कई दफा मंत्री रह चुके हैं. उत्तर प्रदेश में भी पार्टी की हैसियत इतनी रही कि सरकार में पार्टी का दखल बना रहा है. चौधरी अजित सिंह के साथ उनके बेटे जयंत चौधरी भी राजनीति में सक्रिय हुए. उन्हें भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जनता ने पलकों पर बिठा लिया. जयंत चौधरी भी सांसद बनकर संसद भवन में पहुंचे, लेकिन यहां से पिता और बेटे की जनता से दूरी बढ़ने लगी. किसान मसीहा के रूप में चौधरी चरण सिंह की ख्याति थी. उन्हें किसानों का सच्चा नेता माना जाता था. किसानों के हृदय में चौधरी चरण सिंह बसते थे, लेकिन धीरे-धीरे चौधरी अजित सिंह और जयंत चौधरी से किसान दूरी बनाने लगे. यही वजह रही कि किसी भी सरकार में प्रतिनिधित्व तो दूर संसद और विधानसभा पहुंचने में भी दिक्कतें आने लगीं. पार्टी वर्तमान में शून्य पर है और शिखर पर पहुंचाने की कवायद में जयंत चौधरी जुटे हुए हैं.
किसान आंदोलन डाल सकता है रालोद में जान
केंद्र सरकार के कृषि कानूनों को लेकर पिछले करीब तीन माह से किसान सड़क पर उतरकर प्रदर्शन कर रहे हैं. विपक्षी दल लगातार किसानों का समर्थन कर सरकार पर किसान आंदोलन खत्म हो, इसके लिए कृषि कानूनों को वापस लेने का दबाव बना रहे हैं. इनमें किसानों की राजनीति करने वाली पार्टी राष्ट्रीय लोक दल भी बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही है. पार्टी के नेता किसानों को समर्थन देने पहुंच रहे हैं. इसके अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जयंत चौधरी किसान महापंचायतों में शिरकत कर सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं. पार्टी को पूरी उम्मीद है की जो जनाधार खो गया है, वह इस आंदोलन से वापस मिल सकेगा. किसान फिर से राष्ट्रीय लोकदल के साथ खड़े होंगे और पार्टी पहले ही की तरह मजबूती से खड़ी हो जाएगी.
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इन वर्गों को साथ लाने के प्रयास में रालोद
किसान महापंचायत के बहाने राष्ट्रीय लोकदल किसान, जाट और मुस्लिम मतदाताओं को अपने पाले में वापस लाना चाहती है. रालोद इन वर्गों की परंपरागत पार्टी रही है इसलिए इन्हीं में फिर से संभावनाएं तलाश रही है. चौधरी अजित सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल की राजनीति किसानों के सहारे ही आगे बढ़ी है. यही वजह है कि केंद्र सरकार से किसानों की नाराजगी रालोद को नए मौके की तरह दिखाई पड़ रही है. जयंत चौधरी इसलिए पंचायत कर इन वर्गों को अपने पक्ष में जोड़ने में जुट गए हैं. हाल ही में मुजफ्फरनगर में जो किसानों की विशाल महापंचायत हुई, वह पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बन गया. माना जा रहा है कि जाटों ने छोटे चौधरी को एक बार फिर से समर्थन देने की हामी भर दी है. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अगर जाट, किसान और मुसलमान का परंपरागत वोट छोटे चौधरी के पक्ष में पड़ जाता है, तो राष्ट्रीय लोकदल उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर से वापसी कर सकती है.
1996 में हुई थी पार्टी की स्थापना
चौधरी अजित सिंह ने 1996 में राष्ट्रीय लोक दल की स्थापना की थी. किसानों के दम पर पार्टी तेजी से आगे बढ़ी. चौधरी अजित सिंह एनडीए सरकार में कृषि मंत्री रहे हैं. 2011 में केंद्र की यूपीए सरकार में नागरिक उड्डयन मंत्री रहे. जयंत चौधरी जो वर्तमान में पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं. वे उत्तर प्रदेश के मथुरा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से 2009 से लेकर 2014 तक सांसद रह चुके हैं. हालांकि अभी पार्टी पूरी तरह से वेंटिलेटर पर है और किसान आंदोलन से उसे ऑक्सीजन मिलने की पूरी उम्मीद है.
रालोद और किसान एक दूसरे के पूरक- सुरेंद्र त्रिवेदी
राष्ट्रीय लोक दल के प्रवक्ता सुरेंद्र त्रिवेदी कहते हैं कि किसान मसीहा चौधरी चरण सिंह का किसानों के दिल में वही स्थान रहा है जो एक भक्त के दिल में ईश्वर का होता है. उसी मशाल को लेकर अब चौधरी चरण सिंह के पुत्र चौधरी अजित सिंह और पौत्र जयंत चौधरी आगे बढ़ रहे हैं. ये लोग किसानों को पार्टी के साथ जोड़ रहे हैं. हां यह बात जरूर है कि बीच में पार्टी से किसान कुछ दूर हो गए थे, लेकिन अब फिर से किसान पार्टी के साथ हैं. रालोद और किसान एक दूसरे के पूरक हैं. पार्टी का कहना है कि 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में बिना राष्ट्रीय लोकदल के कोई भी सरकार सत्ता में नहीं आ सकती. इस किसान आंदोलन का फायदा किसानों को तो मिलेगा ही राष्ट्रीय लोकदल को भी मिलना तय है.