लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में गर्भपात की मांग को लेकर याचिका दाखिल करने वाली दुराचार पीड़िता मेडिकल जांच में गर्भवती नहीं पाई गई है. इस पर न्यायालय ने पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट रिकॉर्ड पर लाने के आदेश दिये हैं. न्यायालय ने यह चेतावनी भी दी है कि यदि पीड़िता गर्भवती नहीं है और उसने झूठी याचिका दाखिल की है तो उसके खिलाफ विधि अनुसार कार्यवाही की जाएगी. यह आदेश न्यायमूर्ति एआर मसूदी और न्यायमूर्ति अजय कुमार श्रीवास्तव, प्रथम की खंडपीठ ने पीड़िता की याचिका पर दिया. मामले की सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने न्यायालय को जानकारी दी कि पिछले आदेश के अनुपालन में पीड़िता का चिकित्सकीय परीक्षण मेडिकल बोर्ड का गठन करके करवावा गया. लेकिन, जांच में पीड़िता को कोई गर्भ नहीं पाया गया है.
क्या है मामला
पीड़िता की ओर से दाखिल याचिका में कहा गया है उसके साथ उसके पिता ने ही दुराचार किया था, जिसके बाद उसका गर्भधारण हो गया. वह गर्भ में पल रहे बच्चे को जन्म देना नहीं चाहती है. याचिका में आगे कहा गया है कि पीड़िता के गर्भ में पल रहा बच्चा 20 सप्ताह 5 दिन का हो गया है, जबकि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट की धारा 3 के अनुसार 20 सप्ताह से अधिक बीत जाने पर गर्भपात नहीं कराया जा सकता है. उल्लेखनीय है कि पिछली सुनवाई पर न्यायालय ने मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ), बाराबंकी को एक मेडिकल बोर्ड बनाकर पीड़िता का चिकित्सकीय परीक्षण कराने का आदेश दिया था.
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