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पिता के दुष्कर्म की शिकार बेटी ने हाईकोर्ट में दाखिल की याचिका, मांगी गर्भपात की इजाजत - गर्भपात के लिए याचिका

दुष्कर्म की शिकार एक पीड़िता ने हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में याचिका दाखिल कर गर्भपात की मांग की है. पीड़िता का कहना है कि उसके पिता ने ही उसके साथ दुष्कर्म किया और वह बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती. कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड बनाकर पीड़िता का चिकित्सकीय जांच करने का आदेश दिया है.

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हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच
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Published : May 20, 2021, 10:01 PM IST

लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में गर्भपात की मांग को लेकर एक दुराचार पीड़िता ने याचिका दाखिल की है. याचिका पर सुनवाई के बाद न्यायालय ने मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ), बाराबंकी को एक मेडिकल बोर्ड बनाकर पीड़िता का चिकित्सकीय परीक्षण कराने का आदेश दिया है. यह आदेश न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की खंडपीठ ने दुराचार पीड़िता की याचिका पर पारित किया.

पिता ने ही किया था दुराचार

पीड़िता का कहना था कि उसके साथ उसके पिता ने ही दुराचार किया था, जिसके बाद उसका गर्भधारण हो गया. वह गर्भ में पल रहे बच्चे को जन्म देना नहीं चाहती है. याचिका में आगे कहा गया है कि पीड़िता के गर्भ में पल रहा बच्चा 20 सप्ताह 5 दिन का हो गया है. जबकि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट की धारा 3 के अनुसार 20 सप्ताह से अधिक बीत जाने पर गर्भपात नहीं कराया जा सकता है. पीड़िता की ओर से दलील दी गई कि ऐसी विषम परिस्थिति को देखते हुए उसे न्यायालय की शरण लेनी पड़ी. वहीं न्यायालय ने मेडिकल बोर्ड का गठन कर इस आशय की जांच का आदेश दिया है कि क्या पीड़िता के लिए गर्भपात सुरक्षित है. गर्भपात के कारण उसकी जिन्दगी पर खतरा तो नहीं हो सकता है. न्यायालय ने मेडिकल रिपोर्ट अगली सुनवाई तक पेश करने का आदेश दिया है. मामले की अगली सुनवाई 28 मई को होगी.

इसे भी पढ़ें - UP में कक्षा 1 से 8 तक के बच्चों की ऑनलाइन क्लासेस होंगी शुरू, जारी हुआ आदेश

लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में गर्भपात की मांग को लेकर एक दुराचार पीड़िता ने याचिका दाखिल की है. याचिका पर सुनवाई के बाद न्यायालय ने मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ), बाराबंकी को एक मेडिकल बोर्ड बनाकर पीड़िता का चिकित्सकीय परीक्षण कराने का आदेश दिया है. यह आदेश न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की खंडपीठ ने दुराचार पीड़िता की याचिका पर पारित किया.

पिता ने ही किया था दुराचार

पीड़िता का कहना था कि उसके साथ उसके पिता ने ही दुराचार किया था, जिसके बाद उसका गर्भधारण हो गया. वह गर्भ में पल रहे बच्चे को जन्म देना नहीं चाहती है. याचिका में आगे कहा गया है कि पीड़िता के गर्भ में पल रहा बच्चा 20 सप्ताह 5 दिन का हो गया है. जबकि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट की धारा 3 के अनुसार 20 सप्ताह से अधिक बीत जाने पर गर्भपात नहीं कराया जा सकता है. पीड़िता की ओर से दलील दी गई कि ऐसी विषम परिस्थिति को देखते हुए उसे न्यायालय की शरण लेनी पड़ी. वहीं न्यायालय ने मेडिकल बोर्ड का गठन कर इस आशय की जांच का आदेश दिया है कि क्या पीड़िता के लिए गर्भपात सुरक्षित है. गर्भपात के कारण उसकी जिन्दगी पर खतरा तो नहीं हो सकता है. न्यायालय ने मेडिकल रिपोर्ट अगली सुनवाई तक पेश करने का आदेश दिया है. मामले की अगली सुनवाई 28 मई को होगी.

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