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सिर्फ भूखा-प्यासा रहना नहीं है रमजान, जानिए क्यों पूरे महीने रोजे रखते हैं मुसलमान

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Published : Apr 1, 2023, 10:41 PM IST

इस्लामिक महीने रमज़ान में दुनियाभर के मुसलमान रोज़े रखकर अल्लाह की इबादत कर रहे हैं. रमजान में रोजे को लेकर इस्लामी शरीयत में तमाम हिदायतें और फर्ज बताए गए हैं. जानिए क्या कहते हैं वरिष्ठ मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली.

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सिर्फ भूखा-प्यासा रहना नहीं है रमजान, जानिए क्यों पूरे महीने रोजे रखते हैं मुसलमान.

लखनऊ : इस्लामिक महीने रमज़ान की शुरुआत हो चुकी है. देश के साथ पूरी दुनिया में मुसलमान रोज़े रखकर अल्लाह की इबादत कर रहे हैं. रमज़ान बेहद पाक और मुकद्दस महीना माना जाता है. इस महीने को बरकत और रहमत वाले दिनों के भी रूप में देखा जाता है. रमज़ान का चांद नजर आने के बाद से पूरे एक महीने तक रोजे रखने का सिलसिला शुरू हो जाता है. ईद के चांद का दीदार होने के बाद ही रोजे रखने का सिलसिला खत्म होता है. इस्लाम में हर मुसलमान पर रोजे रखना फ़र्ज़ करार दिया गया है.


वरिष्ठ मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली बताते हैं कि रमजान के रोजे इस्लाम के पांच मूल स्तंभों में से एक हैं. रोज़ों को पैगम्बर मोहम्मद साहब की उम्मत से पहले भी हर नबी के दौर में फर्ज़ करार दिया गया है. मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा कि रोजे रखकर जन्नत हासिल करना सबसे आसान रास्ता है. उन्होंने कहा कि सिर्फ भूखा और प्यासा रहना ही रोज़ा नहीं है, बल्कि इसमें जितनी भी गैर शरई चीज़ें हैं, उनसे भी दूरी बनाए रखनी है. गाली देना या किसी को बुरा भला कहने से परहेज़ करना है. अपनी आंखों से किसी गलत चीज़ को देखना या हाथ से कोई गलत काम करने से भी बचना है. रिश्वत लेने या देने के साथ किसी भी शख्स पर कोई ज़ुल्म ज़्यादती नहीं करनी होती है. ऐसी तमाम चीज़े हैं जो इस्लामी शरीयत में बताई गई हैं. उन पर आम दिन में भी अमल करना है, वरना रोज़ा रखकर गलत कामों में घिरे रहने पर इंसान सिर्फ भूखा और प्यासा ही रह जाएगा.

मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने बताया कि रोजा रखना दीन के साथ दुनियावी नज़र से भी बहुत बेहतर अमल है. साल में एक बार पूरे डाइजेस्टिव सिस्टम की ओवरहालिंग हो जाती है. पूरा बॉडी स्ट्रक्चर रोजे रखने से शेप में हो जाता है. डाइटिशियन भी 12 से 14 घंटे फास्टिंग करने से वज़न कम होने की बात कहते हैं. ऐसे में रोजे रखकर जिन लोगों को मोटापे की शिकयत है वह भी पूरे महीने रोजे रखकर आसानी से 2-3 किलो तक अपना वज़न कम कर सकते हैं. हालांकि फरंगी महली ने कहा कि रोज़े को उसके उसूलों की तरह रखा जाए और सहरी अफ्तारी में भी कई बातों का ध्यान रखा जाए.

मौलाना ने बताया कि 12 से 14 वर्ष के बच्चों से रोजा रखना फ़र्ज़ है और हर मर्द या औरत को रोज़ा रखना चाहिए. हालांकि अगर कोई बीमार है तो वह उतने दिन के लिए रोज़ा छोड़ सकता है, लेकिन उसके बदले उस दिन के खाने की रकम को फिदिया के तौर पर किसी गरीब को देना होगा. उन्होंने बताया कि आज के वक्त में फिदिया 100 रुपये माना जाता है. बंगाल और बिहार के साथ देश के अलग अलग हिस्सों में रामनवमी के मौके पर हुई हिंसा पर बोलते हुए मौलाना ने कहा कि सबको अपने त्योहारों पर एक दूसरे से मिलकर रहना चाहिए. इस रमज़ान के पवित्र महीने को सभी इबादत में गुज़ारें और दूसरे धर्मों के लोगों के साथ मिलजुल कर मनाएं. मौलाना ने बताया कि लखनऊ की ईदगाह स्थित इस्लामिक सेंटर ऑफ इंडिया में एक तरफ हज़ारों लोगों ने लाउडस्पीकर पर तरावीह की नमाज़ पढ़ी और दूसरी तरफ रामलीला पर हिन्दू भाइयों के कार्यक्रम होते रहे, लेकिन कोई भी घटना नहीं हुई. ऐसे ही देशभर में सबको एक साथ रहते हुए अपने त्योहार और इबादत भी करनी चाहिए.

यह भी पढ़ें : पर्यटन मंत्री ने अखिलेश यादव को दी सलाह, बोले- चुनाव जीतना है तो जमीन पर उतरकर करें काम

सिर्फ भूखा-प्यासा रहना नहीं है रमजान, जानिए क्यों पूरे महीने रोजे रखते हैं मुसलमान.

लखनऊ : इस्लामिक महीने रमज़ान की शुरुआत हो चुकी है. देश के साथ पूरी दुनिया में मुसलमान रोज़े रखकर अल्लाह की इबादत कर रहे हैं. रमज़ान बेहद पाक और मुकद्दस महीना माना जाता है. इस महीने को बरकत और रहमत वाले दिनों के भी रूप में देखा जाता है. रमज़ान का चांद नजर आने के बाद से पूरे एक महीने तक रोजे रखने का सिलसिला शुरू हो जाता है. ईद के चांद का दीदार होने के बाद ही रोजे रखने का सिलसिला खत्म होता है. इस्लाम में हर मुसलमान पर रोजे रखना फ़र्ज़ करार दिया गया है.


वरिष्ठ मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली बताते हैं कि रमजान के रोजे इस्लाम के पांच मूल स्तंभों में से एक हैं. रोज़ों को पैगम्बर मोहम्मद साहब की उम्मत से पहले भी हर नबी के दौर में फर्ज़ करार दिया गया है. मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा कि रोजे रखकर जन्नत हासिल करना सबसे आसान रास्ता है. उन्होंने कहा कि सिर्फ भूखा और प्यासा रहना ही रोज़ा नहीं है, बल्कि इसमें जितनी भी गैर शरई चीज़ें हैं, उनसे भी दूरी बनाए रखनी है. गाली देना या किसी को बुरा भला कहने से परहेज़ करना है. अपनी आंखों से किसी गलत चीज़ को देखना या हाथ से कोई गलत काम करने से भी बचना है. रिश्वत लेने या देने के साथ किसी भी शख्स पर कोई ज़ुल्म ज़्यादती नहीं करनी होती है. ऐसी तमाम चीज़े हैं जो इस्लामी शरीयत में बताई गई हैं. उन पर आम दिन में भी अमल करना है, वरना रोज़ा रखकर गलत कामों में घिरे रहने पर इंसान सिर्फ भूखा और प्यासा ही रह जाएगा.

मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने बताया कि रोजा रखना दीन के साथ दुनियावी नज़र से भी बहुत बेहतर अमल है. साल में एक बार पूरे डाइजेस्टिव सिस्टम की ओवरहालिंग हो जाती है. पूरा बॉडी स्ट्रक्चर रोजे रखने से शेप में हो जाता है. डाइटिशियन भी 12 से 14 घंटे फास्टिंग करने से वज़न कम होने की बात कहते हैं. ऐसे में रोजे रखकर जिन लोगों को मोटापे की शिकयत है वह भी पूरे महीने रोजे रखकर आसानी से 2-3 किलो तक अपना वज़न कम कर सकते हैं. हालांकि फरंगी महली ने कहा कि रोज़े को उसके उसूलों की तरह रखा जाए और सहरी अफ्तारी में भी कई बातों का ध्यान रखा जाए.

मौलाना ने बताया कि 12 से 14 वर्ष के बच्चों से रोजा रखना फ़र्ज़ है और हर मर्द या औरत को रोज़ा रखना चाहिए. हालांकि अगर कोई बीमार है तो वह उतने दिन के लिए रोज़ा छोड़ सकता है, लेकिन उसके बदले उस दिन के खाने की रकम को फिदिया के तौर पर किसी गरीब को देना होगा. उन्होंने बताया कि आज के वक्त में फिदिया 100 रुपये माना जाता है. बंगाल और बिहार के साथ देश के अलग अलग हिस्सों में रामनवमी के मौके पर हुई हिंसा पर बोलते हुए मौलाना ने कहा कि सबको अपने त्योहारों पर एक दूसरे से मिलकर रहना चाहिए. इस रमज़ान के पवित्र महीने को सभी इबादत में गुज़ारें और दूसरे धर्मों के लोगों के साथ मिलजुल कर मनाएं. मौलाना ने बताया कि लखनऊ की ईदगाह स्थित इस्लामिक सेंटर ऑफ इंडिया में एक तरफ हज़ारों लोगों ने लाउडस्पीकर पर तरावीह की नमाज़ पढ़ी और दूसरी तरफ रामलीला पर हिन्दू भाइयों के कार्यक्रम होते रहे, लेकिन कोई भी घटना नहीं हुई. ऐसे ही देशभर में सबको एक साथ रहते हुए अपने त्योहार और इबादत भी करनी चाहिए.

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