लखनऊ : प्रदेश सरकार गिरते भूजल स्तर पर काबू पाने के लिए वर्षाजल संचयन की नीति बनाई थी. बावजूद इसके साल दर साल प्रदेश भर में भूजल स्तर भयावह स्तर तक गिरता जा रहा है. यदि वर्षाजल संचयन की नीति का सही तरीके से अनुपालन कराया जाता तो शायद स्थिति इतनी खराब नहीं होती. सिंचाई के लिए प्रदेश में सत्तर फीसद भूगर्भ जल का उपयोग किया जाता है तो पेयजल के लिए अस्सी और औद्योगिक उपयोग के लिए पच्चासी फीसद पानी भूगर्भ से लिया जाता है. गांवों में भी हर घर जल योजना लागू होने के बाद जल दोहन और बढ़ेगा. सरकारी तंत्र अब तक इस बात को लेकर चिंतित नहीं है कि वह खाली होती भूगर्भ की कोख को कैसे भरेगा.
प्रदेश के बड़े शहरों की बात करें तो प्रयागराज में 285 सेंटीमीटर प्रति वर्ष भूजल का स्तर गिर रहा है. यह स्थिति वाकई भयावह है. यदि अन्य शहरों की बात करें तो प्रति वर्ष अलीगढ़ में 131 सेंटीमीटर, आगरा में 80 सेंटीमीटर, लखनऊ में 76 सेंटीमीटर, वाराणसी में 57 सेंटीमीटर, गाजियाबाद में 46 सेंटीमीटर, मुरादाबाद में 45 सेंटीमीटर, कानपुर में 38 सेंटीमीटर, मेरठ में 11 सेंटीमीटर और बरेली में पांच सेंटीमीटर भूजल स्तर गिर रहा है. सरकार वर्षाजल संचयन नीति इसलिए लाई थी, ताकि भूगर्भ जल संसाधनों का विवेकपूर्ण ढंग से उपयोग किया जाए सके. भूजल संवर्धन कार्यक्रम पूरे प्रदेश में लागू कर अतिदोहित विकासखंडों को सुरक्षित श्रेणी लाया जाना था, लेकिन ऐसे विकास खंडों की स्थिति अब और बिगड़ती जा रही है.
योजना का उद्देश्य था कि सहती जल और भूजल का सही ढंग से उपयोग किया जाए, ताकि जल संकट से बचा जा सके और आने वाली समस्या का समाधान हो सके. यही नहीं प्रदूषित भूजल स्रोतों का पताकर ऐसे क्षेत्रों में सुरक्षित जलापूर्ति भी की जानी है. इसके तहत आवासीय और शासकीय भवनों में रूफटाप रेन वाटर हार्वेस्टिंग विधि की योजना चलाई जा रही है. जिसके तहत शासकीय और निजी भवनों की छतों से आने वाले वर्षा जल को हार्वेस्टिंग प्रणाली में एकत्रित कर भूगर्भ जल रिचार्ज में वृद्धि की जानी है. तमाम भवनों में यह प्रणाली उपलब्ध है, लेकिन अब भी बड़ी संख्या में ऐसे भवन हैं, जहां इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है. यही कारण है कि भूजल स्तर लगातार नीचे जा रहा है.
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