लखनऊ : पुलिस अभिरक्षा में जिस तरह बुधवार को राजधानी स्थित कचहरी में कोर्ट रूम के बाहर गैंगस्टर संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा की हत्या हुई, उससे सरकार के बेहतर कानून व्यवस्था के दावे पर सवाल उठने लगे हैं. योगी आदित्यनाथ की सरकार विगत कई वर्षों से अपराधियों के विरुद्ध सख्त रवैये को लेकर लगातार चर्चा में रही है. हालांकि विगत 15 अप्रैल को प्रयागराज में जिस तरह पुलिस अभिरक्षा में माफिया अतीक अहमद और उनके भाई अशरफ की ताबड़तोड़ गोली मारकर हत्या की गई उसके बाद से ही सरकार की आलोचना होने लगी थी. अब यह ताजा घटना सरकार को कानून व्यवस्था की स्थिति पर सोचने को मजबूर करने वाली है.
प्रदेश की भाजपा सरकार पिछले छह साल से कानून व्यवस्था को लेकर सुर्खियों में रही है. प्रदेश में ही नहीं देश के कई अन्य राज्यों में अपराधियों से निपटने का योगी मॉडल अपनाया जाने लगा. इसका भाजपा को लाभ भी मिला. वह न सिर्फ विधानसभा में दोबारा चुनकर आई, बल्कि उप चुनावों और निकाय चुनावों में भी जीत हासिल करने में कामयाब रही. अब जबकि लोकसभा चुनाव निकट हैं, योगी सरकार को इन दो वारदातों ने सवालों के घेरे में ला खड़ा किया है. अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की 15 अप्रैल की रात करीब साढ़े दस बजे उस समय गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, जब वह पुलिस अभिरक्षा में मेडिकल कराने के बाद प्रयागराज के कॉल्विन हॉस्पिटल से बाहर आ रहे थे. पूरा वाकया मीडिया के सामने हुआ और कैमरे में कैद किया गया. तीन हमलावर उस समय अतीक और अशरफ पर फायर करने लगे जब वह मीडिया से बात कर रहे थे. उस समय भी सरकार और पुलिस पर सवाल उठाए गए कि आखिर अशरफ की सुरक्षा में मौजूद पुलिसकर्मियों ने हमलावरों पर फायर क्यों नहीं किया? क्यों उन्हें तत्काल मौत के घाट नहीं उतार दिया गया? कुछ राजनीतिक दलों ने सरकार पर आरोप लगाया कि षड्यंत्र रचकर घटना को अंजाम दिया गया.
बुधवार को लखनऊ कचहरी में हुई संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा की हत्या के बाद सरकार पर विपक्षी हमले और तेज हो गए हैं. जीवा बुधवार दोपहर लखनऊ जिला जेल से सेशन कोर्ट पेशी के लिए लाया गया था, जहां कोर्ट रूम में वकील के वेश में हमलावर पहले से मौजूद था. पुलिस अभिरक्षा के बावजूद मौका मिलते ही हमलावर ने जीवा को निशाना बनाया, जिससे उसकी मौत हो गई. घटना में दो सिपाहियों और एक बच्ची सहित चार लोग घायल भी हो गए. इस घटना के बाद यह सवाल भी उठने लगे कि आखिर पुलिस अभिरक्षा में भी लोग सुरक्षित नहीं हैं, तो यह कैसी कानून व्यवस्था है. यदि लोग खुद ही हत्याएं करने लगेंगे, तो कानून और अदालतों का क्या होगा? घटना से नाराज वकीलों ने भी नाराजगी जताते हुए अदालतों में सुरक्षा व्यवस्था बढ़ाने की मांग की है.
यह और बात है कि अतीक अहमद, अशरफ और संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा पर गंभीर मुकदमे दर्ज थे और तमाम बड़ी वारदातों में इनकी संलिप्तता जगजाहिर है. अतीक पर करीब एक सौ एक मुकदमे दर्ज थे, जिनमें तमाम हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण और वसूली जैसी गंभीर धाराओं में हैं. उसके भाई अशरफ पर भी बावन केस दर्ज थे. उस पर भी गंभीर धाराओं के मुकदमे थे. इसी तरह संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा पर चौबीस मुकदमे दर्ज थे, जिनमें पूर्व मंत्री ब्रह्मदत्त द्विवेदी की हत्या, भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या सहित अपहरण, लूट और डकैती के तमाम मुकदमे शामिल हैं. इन तीनों के गंभीर अपराधों में आरोपी होने के बावजूद इस तरह से हत्या को कभी जायज नहीं ठहराया जा सकता. आखिर कानून का राज कहां है? ऐसे आरोपियों को सजा देने का अधिकार अदालतों को है.
इस संबंध में राजनीतिक विश्लेषक डॉ पीएन शुक्ला कहते हैं 'निश्चित रूप से इस तरह की घटनाएं सरकार को परेशान करने वाली हैं, हालांकि अभी लोकसभा चुनावों में काफी वक्त है. यदि आगे ऐसी वारदातों पर अंकुश लगा तो इसमें दो राय नहीं कि भाजपा को खास नुकसान नहीं होगा, लेकिन यदि एक-दो और वारदातें हो गईं, तो सरकार को जवाब देते नहीं बनेगा. अब तक अपराधियों के खिलाफ योगी सरकार का रवैया बहुत ही सख्त रहा है, लेकिन कुछ लोगों पर कार्रवाई न करने के आरोप भी लगते रहे हैं. ऐसे में सरकार को और सावधानी बरतनी होगी कि वह विपक्षी दलों को मौका न दे.'
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