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अपराध के समुद्र में युवा जमकर खा रहे है गोते, आंकड़े दे रहे हैं गवाही

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Published : Mar 8, 2022, 8:43 PM IST

राजधानी को अपराध मुक्त बनाने के लिए पुलिस अपराधियों पर गुंडा एक्ट से लेकर जिलाबदर करने जैसी कार्रवाई करती है. पुलिस के मुताबिक जिलाबदर की कार्रवाई को सुधार प्रोग्राम के तौर पर देखा जाना चाहिए जबकि एक्सपर्ट मानते हैं कि जिलाबदर करने से अपराधी में कोई सुधार नहीं होता है.

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लखनऊ: पुलिस कमिश्नरेट के आंकड़ों के मुताबिक पिछले एक साल में जिलाबदर हुए अपराधियों में सबसे अधिक युवा हैं और 74 फीसदी युवाओं की उम्र 18 से 30 साल है.अब ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या जिलाबदर करने से इन युवाओं को अपराध की दुनिया से बचाया जा सकता है.

पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू होने के बाद से लखनऊ को अपराध मुक्त बनाने के लिए एक डीसीपी की नियुक्ति की गई है जो एक प्रक्रिया के तहत बदमाशों और अपराधियों को जिलाबदर करने की कार्रवाई करता है. लखनऊ पुलिस कमिश्नरेट ने 18 नवंबर 2020 से 28 फरवरी 2022 के बीच 190 अपराध करने वाले व्यक्तियों पर जिलाबदर की कार्रवाई की है.

यह भी पढे़ं: कोचिंग जा रही छात्रा से 3 युवकों ने की दुष्कर्म की कोशिश, SP से लगाई न्याय की गुहार

जिलाबदर होने वालों में सबसे ज्यादा हैं 18 से 30 साल के युवा
इनमें 74 फीसदी 18 से 30 साल के नवयुवक है. संख्या की बात करें तो 190 में 140 युवा ऐसे हैं जिनकी उम्र 18 से 30 साल है, 33 ऐसे हैं जिनकी उम्र 31 से 40 साल है, 13 व्यक्ति 41 से 50 साल के हैं. वहीं 51 साल से 55 साल तक के 4 अपराधियों को जिलाबदर किया गया है. वहीं पिछले एक साल की बात करें तो इस दौरान भी 74 प्रतिशत युवा ऐसे हैं जिनकी उम्र 18 से 30 साल के बीच है. ऐसे अपराधी जिन पर कई मुकदमे दर्ज हैं उनकी उम्र भी 18 से 25 साल के बीच है. जिलाबदर होने वाले अधिकतर अपराधियों पर मारपीट के मुकदमें दर्ज हैं.

युवाओं पर सबसे अधिक दर्ज हैं मारपीट के मुकदमें
राजधानी में अपराधियों की धड़पकड़ करने, अपराध पर अंकुश लगाने के लिए पुलिस अलग अलग तरीकों से कार्रवाई करती है. जिसमें अपराधियों पर गुंडा एक्ट, गैंगस्टर एक्ट से लेकर 6 महीने के लिए जिलाबदर करने की कार्रवाई करती है. पुलिस जिलाबदर कर अपने शहर से अपराधियों को दूर तो कर देती है लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं होती है कि वो कहीं और जाकर अपराध न करें. लखनऊ से जिलाबदर किये गए युवाओं पर दर्ज मुकदमों की बात करें तो उन पर लूट, डकैती, हत्या, चोरी, महिलाओं से छेड़छाड़ के मुकदमें शामिल हैं. लेकिन जिलाबदर युवाओं पर मारपीट करने की धाराओं के सबसे ज्यादा मुकदमें दर्ज हैं.

पूर्व डीजीपी जिलाबदर को मानते हैं सुधार प्रोग्राम
पूर्व डीजीपी एके जैन का मानना है कि जब किसी अपराधी को जिलाबदर किया जाता है तब उसे 6 महीने तक अपने परिवेश से दूर रहना होता है. जिस कारण उसे एक नया वातावरण मिलता है और इससे अपराधिक वातावरण से दूरी बनती है. वो कहते हैं कि जिलाबदर की कार्रवाई को एक तरह से अपराधियों के सुधार प्रोग्राम के तौर पर देखा जाना चाहिए.

एक्सपर्ट मानते हैं जिलाबदर करने से नहीं सुधरता है अपराधी
पिछले 15 वर्षों से हाईकोर्ट में प्रैक्टिस कर रहें क्रिमनल लॉयर प्रिंस लेनिन कहते हैं कि किसी भी अपराधी को जिलाबदर करना एक मात्र समाधान नहीं है. अपराधी जिस जिले में जायेगा वहां अपराध करेगा. क्योंकि उसका मस्तिष्क उसे अपराध करने को प्रेरित करता है. पुलिस को यदि युवाओं को अपराध से मुक्त करना ही है तो उन्हें जागरूक करें. कम्युनिटी पुलिसिंग करें जिससे वो भी सुधर सकें. यहीं नहीं लेनिन कहते हैं कि जब कोई गंभीर अपराध करें तब ही उसे जिलाबदर करना चाहिए. वो कहते है कि रोजाना कोर्ट में ऐसे मामले सामने आते हैं जिन पर सिर्फ एक या दो ही केस लगे होते हैं उन्हें भी पुलिस जिलाबदर कर देती है.


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लखनऊ: पुलिस कमिश्नरेट के आंकड़ों के मुताबिक पिछले एक साल में जिलाबदर हुए अपराधियों में सबसे अधिक युवा हैं और 74 फीसदी युवाओं की उम्र 18 से 30 साल है.अब ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या जिलाबदर करने से इन युवाओं को अपराध की दुनिया से बचाया जा सकता है.

पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू होने के बाद से लखनऊ को अपराध मुक्त बनाने के लिए एक डीसीपी की नियुक्ति की गई है जो एक प्रक्रिया के तहत बदमाशों और अपराधियों को जिलाबदर करने की कार्रवाई करता है. लखनऊ पुलिस कमिश्नरेट ने 18 नवंबर 2020 से 28 फरवरी 2022 के बीच 190 अपराध करने वाले व्यक्तियों पर जिलाबदर की कार्रवाई की है.

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जिलाबदर होने वालों में सबसे ज्यादा हैं 18 से 30 साल के युवा
इनमें 74 फीसदी 18 से 30 साल के नवयुवक है. संख्या की बात करें तो 190 में 140 युवा ऐसे हैं जिनकी उम्र 18 से 30 साल है, 33 ऐसे हैं जिनकी उम्र 31 से 40 साल है, 13 व्यक्ति 41 से 50 साल के हैं. वहीं 51 साल से 55 साल तक के 4 अपराधियों को जिलाबदर किया गया है. वहीं पिछले एक साल की बात करें तो इस दौरान भी 74 प्रतिशत युवा ऐसे हैं जिनकी उम्र 18 से 30 साल के बीच है. ऐसे अपराधी जिन पर कई मुकदमे दर्ज हैं उनकी उम्र भी 18 से 25 साल के बीच है. जिलाबदर होने वाले अधिकतर अपराधियों पर मारपीट के मुकदमें दर्ज हैं.

युवाओं पर सबसे अधिक दर्ज हैं मारपीट के मुकदमें
राजधानी में अपराधियों की धड़पकड़ करने, अपराध पर अंकुश लगाने के लिए पुलिस अलग अलग तरीकों से कार्रवाई करती है. जिसमें अपराधियों पर गुंडा एक्ट, गैंगस्टर एक्ट से लेकर 6 महीने के लिए जिलाबदर करने की कार्रवाई करती है. पुलिस जिलाबदर कर अपने शहर से अपराधियों को दूर तो कर देती है लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं होती है कि वो कहीं और जाकर अपराध न करें. लखनऊ से जिलाबदर किये गए युवाओं पर दर्ज मुकदमों की बात करें तो उन पर लूट, डकैती, हत्या, चोरी, महिलाओं से छेड़छाड़ के मुकदमें शामिल हैं. लेकिन जिलाबदर युवाओं पर मारपीट करने की धाराओं के सबसे ज्यादा मुकदमें दर्ज हैं.

पूर्व डीजीपी जिलाबदर को मानते हैं सुधार प्रोग्राम
पूर्व डीजीपी एके जैन का मानना है कि जब किसी अपराधी को जिलाबदर किया जाता है तब उसे 6 महीने तक अपने परिवेश से दूर रहना होता है. जिस कारण उसे एक नया वातावरण मिलता है और इससे अपराधिक वातावरण से दूरी बनती है. वो कहते हैं कि जिलाबदर की कार्रवाई को एक तरह से अपराधियों के सुधार प्रोग्राम के तौर पर देखा जाना चाहिए.

एक्सपर्ट मानते हैं जिलाबदर करने से नहीं सुधरता है अपराधी
पिछले 15 वर्षों से हाईकोर्ट में प्रैक्टिस कर रहें क्रिमनल लॉयर प्रिंस लेनिन कहते हैं कि किसी भी अपराधी को जिलाबदर करना एक मात्र समाधान नहीं है. अपराधी जिस जिले में जायेगा वहां अपराध करेगा. क्योंकि उसका मस्तिष्क उसे अपराध करने को प्रेरित करता है. पुलिस को यदि युवाओं को अपराध से मुक्त करना ही है तो उन्हें जागरूक करें. कम्युनिटी पुलिसिंग करें जिससे वो भी सुधर सकें. यहीं नहीं लेनिन कहते हैं कि जब कोई गंभीर अपराध करें तब ही उसे जिलाबदर करना चाहिए. वो कहते है कि रोजाना कोर्ट में ऐसे मामले सामने आते हैं जिन पर सिर्फ एक या दो ही केस लगे होते हैं उन्हें भी पुलिस जिलाबदर कर देती है.


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