लखनऊ : समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव और भाई प्रतीक यादव को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत दी है. आय से अधिक संपत्ति मामले में सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट को शीर्ष अदालत ने मंजूर करते हुए सुनवाई बंद कर दी है. यह फैसला अखिलेश यादव और उनके परिवार के लिए बहुत ही राहत भरा माना जा रहा है. ऐसे दौर में जब सीबीआई, ईडी और आयकर जैसे विभागों पर सत्तारूढ़ बल के लिए काम करने के आरोप लगते हैं, तब उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य के मुख्य विपक्षी दल के मुखिया के लिए यह फैसला निश्चितरूप से बहुत ही राहत देने वाला माना जाना चाहिए. सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की थी. जिसके खिलाफ कांग्रेस नेता विश्वनाथ चतुर्वेदी की याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया. सुप्रीम कोर्ट को याचिका में कोई मेरिट दिखाई नहीं दी.
गौरतलब है कि विगत पांच दिसंबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने मामला बंद करने से इनकार कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह यह तय करेगा कि मामले की सुनवाई को बंद की जाए अथवा नहीं. उस समय अखिलेश यादव परिवार की ओर से कपिल सिब्बल ने मामले की सुनवाई बंद करने की मांग की थी. उन्होंने कहा कि वर्ष 2019 में सीबीआई हलफनामा दाखिल कर कह चुकी है कि केस की जांच बंद है और इस प्रकरण में अब कुछ भी शेष नहीं बचा है. उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव, उनके पुत्र अखिलेश यादव और प्रतीक यादव को राहत देते हुए सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के आरोपों को साबित नहीं किया जा सका. सीबीआई ने सात अगस्त 2013 को प्रारंभिक जांच बंद कर आठ अगस्त को इसकी सूचना सीवीसी को दे दी थी. विश्वनाथ चतुर्वेदी वर्ष 2005 में मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव व उनकी पत्नी डिंपल और प्रतीक यादव के खिलाफ सीबीआई जांच की याचिका के साथ सुप्रीम कोर्ट गए थे. उन्होंने मुलायम पर वर्ष 1999 और वर्ष 2005 के बीच यूपी के मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचार और सौ करोड़ रुपये से अधिक की आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने का आरोप लगाया था. बाद में डिंपल यादव को इस मामले से हटा दिया गया था.
इस मामले में राजनीतिक विश्लेषक डॉ. विनोद पांडे कहते हैं भले ही सीबीआई जांच में मुलायम सिंह यादव के खिलाफ साक्ष्य जुटाए नहीं जा सकते हों, बावजूद इसके जब तक कोई भी मामला कोर्ट या जांच एजेंसियों के पास लंबित होता है, तो संबंधित व्यक्ति को चिंता तो बनी ही रहती है. यह भी देखा जाता रहा है कि अतीत में सरकारों ने कई बार अपने हित में एजेंसियों का इस्तेमाल किया है. ऐसे भी विपक्षी नेताओं में एक भय तो बना ही रहता है कि कहीं किसी झमेले में न फंस जाएं. लालू यादव समेत तमाम उदाहरण हैं जो बताते हैं एक बार जांच एजेंसियों के पचड़े में पड़ने के बाद बच निकलना मुश्किल ही होता है. डॉक्टर पांडे कहते हैं राजनीति में कोई कितना ही पाक साफ होने का दावा करे किंतु जब जांच एजेंसियां अपने पर आती हैं तो कोई ना कोई बड़ा घोटाला ढूंढ ही लेती हैं. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल सिंह यादव पहले ही रिवर फ्रंट घोटाले की जांच की जद में हैं. अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री रहते जब शिवपाल यादव के पास सिंचाई विभाग का जिम्मा था तब रिवर फ्रंट का काम हुआ था. बाद में भाजपा सरकार आई तो उसने प्रकरण मैं भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए जांच का आदेश दिया. तमाम दलीय नेताओं का हश्र देख चुके अखिलेश यह कतई नहीं चाहेंगे कि उन पर कोई आरोप लगे अथवा जांच एजेंसियों के हत्थे कोई केस पहुंचे. इसलिए प्रकरण में क्लोजर रिपोर्ट अदनान और सुप्रीम कोर्ट का उसे स्वीकार कर लेना सपा के लिए एक बहुत बड़ी राहत की खबर है.