लखनऊ: बदलते समय में हमारे आसपास काफी कुछ बदल रहा है. हमारी लाइफ स्टाइल, खाने-पीने की आदतें और उम्र के हिसाब से हमारे शरीर की जरूरतें भी. ऑस्टियोपोरोसिस बीमारी में हड्डियां बहुत कमजोर हो जाती हैं. जिससे फ्रैक्चर का खतरा बढ़ जाता है. उम्र बढ़ने के साथ-साथ हड्डियां कमजोर होने लगती हैं और ऑस्टियोपोरोसिस की संभावना बढ़ने लगती है. अब इस बीमारी का असर कम उम्र के युवाओं में भी देखने को मिल रहा है.
बलरामपुर अस्पताल के आर्थोपेडिक स्पेशलिस्ट डॉ. जीपी गुप्ता बताते हैं कि 'ऑस्टियो' का मतलब हड्डी व 'पोरोसिस' का मतलब छिद्रों से भरा हुआ. ऑस्टियोपोरोसिस शब्द ग्रीक एवं लैटिन भाषा है. हड्डी एक जीवित अंग है, जीवन भर पुरानी हड्डी गलती जाती है व नई बनती जाती है. जब कई कारणों से गलन की रफ्तार अधिक हो जाए तो ऑस्टियोपोरोसिस या अस्थिभंगुरता हो जाती है. इस बीमारी में हड्डियों का घनत्व (लंबाई, मोटाई, चौड़ाई) कम हो जाता है. बचपन में 20 साल की उम्र तक नई हड्डी बनने की रफ्तार ज्यादा होती है व पुरानी हड्डी गलने की कम होती है. फलस्वरूप हड्डियों का घनत्व ज्यादा होता है और वे मजबूत होती हैं. 30 साल की उम्र तक आते-आते हड्डियों का गलना (क्षीण होना) बढ़ने लगता है व नई हड्डी बनने की रफ्तार कम होने लगती है. यह बढ़ती उम्र की नियमित प्रक्रिया है.
डॉ. जीपी गुप्ता ने बताया कि निष्क्रिय जीवनशैली वाले उम्रदराज लोगों को ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा सर्वाधिक है. मोटापा तो हड्डियों का दुश्मन है ही, इसके अलावा सबसे ज्यादा खतरा है दुबले लोगों को. अगर उनका वजन लंबाई के मुकाबले कम हो और मसल मास बहुत कम हो तो उनकी हड्डियां कमजोर हो जाती हैं.
- महिलाओं में जल्दी पीरियड्स खत्म होना या मीनोपॉज की स्थिति
- स्मोकिंग
- डायबीटीज, थायरॉइड जैसी बीमारियां
- दवाएं (दौरे की दवाएं, स्टेरॉयड आदि)
- विटामिन डी की कमी
- बढ़ती उम्र भी है एक वजह
- बच्चों का बहुत ज्यादा सॉफ्ट
- जेनेटिक फैक्टर