लखनऊ : मौसम की बदलती करवट कई चुनौतियों को भी दस्तक देती है. बसंत के बाद गर्मी की आहट भी कुछ ऐसी है, जो अस्थमा की मरीजों की मुश्किलें बढ़ा देती है. शहर में बढ़ते प्रदूषण में इससे जुड़ी तकलीफों में कई गुना इजाफा हो गया है. इनमें सबसे ज्यादा बच्चे प्रभावित होते हैं.
देश में तेजी से बढ़ रहा अस्थमा मरीजों की संख्या
- देश में वायु प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है. इस वजह से अस्थमा के मरीजों की संख्या भी बढ़ रही है.
- इससे बच्चों महिलाओं से लेकर बुजुर्ग तक प्रभावित हो रहे हैं.
- डॉक्टरों का कहना है ऑपरेशन से पैदा होने वाले बच्चों में अस्थमा का खतरा ज्यादा रहता है.
- अस्थमा एलर्जी है, हवा के प्रदूषण से हो सकती है. बढ़ते प्रदूषण के बीच फेफड़ों को शुद्ध ऑक्सीजन की जरूरत होती है.
- इसके लिए अपने घर, ऑफिस और आसपास ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाने चाहिए. इससे भरपूर ऑक्सीजन उचित मात्रा में मिल सकेगी.
कब होता है अस्थमा
- बच्चों की सांस फूल रही है तो चेकअप कराए.
- अगर यह शिकायत 4 से 5 बार कुछ ही दिनों के भीतर हो तो उसका टेस्ट कराना अनिवार्य हो जाता है.
- जिससे कि बच्चे को अस्थमा की शिकायत होने पर तुरंत प्रभावी इलाज किया जा सके.
इसके अलावा अस्थमा होने के कुछ मुख्य कारण है
- परिवार में यदि किसी को अस्थमा एलर्जी की समस्या हो तो बच्चों में भी अस्थमा होने की आशंका होती है.
- इसके अलावा घर में कोई पशु या कोई भी पालतू जानवर हो तो उससे भी शिकायत हो सकती है.
- अस्थमा की परेशानी में सुबह-सुबह सांस लेने में तकलीफ होती है या खांसी आती है.
- दिन के समय बच्चों को सांस लेने में तकलीफ, सांस फूलने या जकड़न की समस्या हो सकती है, तो ये अस्थमा नहीं है.
- सांस लेने में पसली चलने के साथ सांस लेने में सीटी बजने जैसी आवाज आए तो यह अस्थमा का एक लक्षण हो सकता है.
- मौसम की बात करें तो वसंत ऋतु में बच्चों को अस्थमा होने की आशंका बढ़ जाती है.
- ऐसा इसलिए होता है क्योंकि फूलों के खिलने के समय उन से निकलने वाले परागकण सांस की नली में जा सकते हैं.
- बदलते मौसम में अस्थमा होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है.
रूटीन चेकअप करवाएं
- अपने बच्चे के रुटीन चेकअप के दौरान पीएसआर या स्पायरोमेट्री टेस्ट जरूर करवाएं, ताकि अस्थमा होने की संभावनाओं से बचा जा सके.
- इसके अलावा प्रदूषण से जरूर बचाए. इस बात का खास ख्याल रखें कि डॉक्टर की सलाह के बिना न तो कोई दवा शुरू करें और अस्थमा होने के बाद न ही खुद से कोई दवा बंद करें.
- अस्थमा के दौरान कुछ दवाएं कम समय की अवधि की होती है, जबकि कुछ दवाएं ज्यादा समय अवधि की होती हैं. ऐसे में डॉक्टर की सलाह हमेशा माने.
WHO के आंकड़े अनुसार पिछले साल से इस बार आंकड़ों में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है. आंकड़ों के अनुसार 15 प्रतिशत बच्चों में अस्थमा होने के ज्यादा आसार रहते हैं. आंकड़े कुछ इस प्रकार हैं-
आयु प्रतिशत
5-11 वर्ष 15%
प्रीमैच्योर बच्चे 52%
IUGR 24-30%
अंडर वेट बच्चे (2.5 केजी से कम) 10.9%