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सरकार की ओटीएस स्कीम में बाधा डाल रहा पावर कारपोरेशन प्रबन्धन

लखनऊ में बिजली उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए सरकार ने एक मार्च से एकमुश्त समाधान योजना लागू की है. लेकिन इस योजना का लाभ लोगों तक नहीं पहुंच पा रहा है. जिसकी वजह संसाधनों का उपलब्ध न होना है.

बिजली उपभोक्ताओं को नहीं मिल रही राहत
बिजली उपभोक्ताओं को नहीं मिल रही राहत
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Published : Mar 12, 2021, 12:52 PM IST

लखनऊ: बिजली उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए सरकार ने एक मार्च से एकमुश्त समाधान योजना लागू की है, लेकिन ये योजना परवान नहीं चढ़ पा रही है. इसकी अहम वजह है पावर कारपोरेशन प्रबंधन की तरफ से अभियंताओं को संसाधन न उपलब्ध कराना. उन्हें दूसरे कामों में उलझाए रखना. विद्युत अभियंता संघ ने सरकार की इस योजना की असफलता के पीछे पावर कारपोरेशन प्रबंधन को पूरी तरह जिम्मेदार ठहराया है.

प्रदेश भर में विद्युत अभियंताओं की जिला मुख्यालय पर परियोजनाओं को लेकर बुधवार को बैठक हुई. लखनऊ में आयोजित बैठक में योजना को सफल बनाने के लिए अभियन्ताओं की तकनीकी एवं व्यवहारिक दिक्कतों को दूर न करने वाले, संसाधन मुहैया न करवा पाने वाले, उपभोक्ता हितों के विरुद्ध कार्य करने वाले और सरकार व विभाग की छवि खराब करने वाले पावर कारपोरेशन के अदूरदर्शी उच्च प्रबन्धन पर ठोस कार्रवाई करने की मांग की गई है. बैठक में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया गया है कि वर्तमान अदूरदर्शी एवं गैर तकनीकी ऊर्जा निगम प्रबन्धन को तत्काल हटाया जाए.

यह भी पढ़ें: सुन्नी वक्फ बोर्ड पर उठने लगे सवाल, HC जा सकता है मामला

कैसे मिले ओटीएस योजना का लाभ

विद्युत अभियन्ता संघ के अध्यक्ष इंजिनियर वीपी सिंह एवं महासचिव प्रभात सिंह ने बताया कि सरकार ने उपभोक्ताओं के हित में एक मार्च से 15 मार्च तक के लिए ओटीएस योजना घोषित की है, लेकिन नौ दिन बाद भी सम्बन्धित एमपावर पोर्टल कार्य नहीं कर रहा है. उसमें योजना के तमाम तकनीकी आकड़ों को दर्ज करने की व्यवस्था नहीं की गई है. जिससे उपभोक्ताओं के रजिस्ट्रेशन कराने एवं बिल भुगतान में कठिनाई हो रही है.

अधिकतर समय तक सर्वर डाउन रहता है, जबकि अभियन्ताओं से प्रेरित उपभोक्ता काफी समय तक लाइन में लगे रहने के बाद विभाग को कोसते हुए वापस चले जा रहे हैं. इन तमाम अव्यवस्थाओं की ओर प्रबन्धन आंख मूंदे हुए है. इससे स्पष्ट है कि उपभोक्ता हित में सरकार द्वारा घोषित की गयी ओटीएस योजना को सफल बनाने में ऊर्जा निगम के उच्च प्रबन्धन की कोई रुचि नहीं है.


अभियंताओं को भुगतना पड़ेगा प्रबंधन की गलती का खामियाजा

पदाधिकारियों का कहना है कि प्रबन्धन द्वारा अपनी विफलता का ठीकरा अभियन्ताओं पर फोड़ते हुए अभियन्ताओं को दण्डित किये जाने का अभियान शुरू कर दिया जायेगा. इसी प्रकार गर्मी में उपभोक्ताओं को निर्बाध विद्युत आपूर्ति की तैयारी एवं राजस्व वसूली में लगे अभियन्ताओं को ऊर्जा निगम प्रबन्धन वीसी/समीक्षाओं/स्पष्टीकरणों/प्रतिवेदनों/दण्डात्मक कार्रवाई में उलझाये हुए हैं. जिससे अभियन्ताओं को धरातल पर कार्य करने का समय नहीं मिल पा रहा है. प्रबन्धन द्वारा विभाग एवं विभागीय अभियन्ताओं की जनता में छवि खराब किये जाने के प्रयास किये जा रहे हैं. ऊर्जा निगमों का ऐसा कुप्रबन्धन पहले कभी नहीं देखा गया है. इन सब से आक्रोशित प्रदेश भर के विद्युत अभियन्ताओं ने बैठक कर विभाग एवं जनहित में वर्तमान प्रबन्धन पर ठोस कार्रवाई किये जाने की मांग की है.

सॉफ्टवेयर खरीद के नाम पर हो रहे कई बड़े घोटाले

उन्होंने बताया कि ऊर्जा निगमों में एमपोर्टल/आईटी के नाम पर बड़ा घोटाला किया जा रहा है. ईआरपी का जो सॉफ्टवेयर 30-40 करोड़ में मिल जाता है वही सॉफ्टवेयर पावर कारपोरेशन में लगभग 250 करोड़ में खरीदा गया है. इसके अतिरिक्त ट्रांसमिशन एवं उत्पादन निगम में अलग-अलग दरों पर सैकड़ों करोड़ रुपये में ये सॉफ्टवेयर खरीदे गये हैं. इस प्रकार ऊर्जा निगमों में बड़े घोटाले को जन्म दिया गया है. तमाम एप/पोर्टल/सॉफ्टवेयर खरीदे गये हैं या प्रक्रियाधीन हैं. जबकि ईआरपी आने के बाद इनका कोई उपयोग नहीं है. एक ही कार्य के लिए दो बार धनराशि खर्च किया जाना कहां तक उचित है ? सरकार को इसका संज्ञान लेकर वित्तीय अनियमितता करने वाले प्रबन्धन पर कार्रवाई करनी चाहिए.

लखनऊ: बिजली उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए सरकार ने एक मार्च से एकमुश्त समाधान योजना लागू की है, लेकिन ये योजना परवान नहीं चढ़ पा रही है. इसकी अहम वजह है पावर कारपोरेशन प्रबंधन की तरफ से अभियंताओं को संसाधन न उपलब्ध कराना. उन्हें दूसरे कामों में उलझाए रखना. विद्युत अभियंता संघ ने सरकार की इस योजना की असफलता के पीछे पावर कारपोरेशन प्रबंधन को पूरी तरह जिम्मेदार ठहराया है.

प्रदेश भर में विद्युत अभियंताओं की जिला मुख्यालय पर परियोजनाओं को लेकर बुधवार को बैठक हुई. लखनऊ में आयोजित बैठक में योजना को सफल बनाने के लिए अभियन्ताओं की तकनीकी एवं व्यवहारिक दिक्कतों को दूर न करने वाले, संसाधन मुहैया न करवा पाने वाले, उपभोक्ता हितों के विरुद्ध कार्य करने वाले और सरकार व विभाग की छवि खराब करने वाले पावर कारपोरेशन के अदूरदर्शी उच्च प्रबन्धन पर ठोस कार्रवाई करने की मांग की गई है. बैठक में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया गया है कि वर्तमान अदूरदर्शी एवं गैर तकनीकी ऊर्जा निगम प्रबन्धन को तत्काल हटाया जाए.

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कैसे मिले ओटीएस योजना का लाभ

विद्युत अभियन्ता संघ के अध्यक्ष इंजिनियर वीपी सिंह एवं महासचिव प्रभात सिंह ने बताया कि सरकार ने उपभोक्ताओं के हित में एक मार्च से 15 मार्च तक के लिए ओटीएस योजना घोषित की है, लेकिन नौ दिन बाद भी सम्बन्धित एमपावर पोर्टल कार्य नहीं कर रहा है. उसमें योजना के तमाम तकनीकी आकड़ों को दर्ज करने की व्यवस्था नहीं की गई है. जिससे उपभोक्ताओं के रजिस्ट्रेशन कराने एवं बिल भुगतान में कठिनाई हो रही है.

अधिकतर समय तक सर्वर डाउन रहता है, जबकि अभियन्ताओं से प्रेरित उपभोक्ता काफी समय तक लाइन में लगे रहने के बाद विभाग को कोसते हुए वापस चले जा रहे हैं. इन तमाम अव्यवस्थाओं की ओर प्रबन्धन आंख मूंदे हुए है. इससे स्पष्ट है कि उपभोक्ता हित में सरकार द्वारा घोषित की गयी ओटीएस योजना को सफल बनाने में ऊर्जा निगम के उच्च प्रबन्धन की कोई रुचि नहीं है.


अभियंताओं को भुगतना पड़ेगा प्रबंधन की गलती का खामियाजा

पदाधिकारियों का कहना है कि प्रबन्धन द्वारा अपनी विफलता का ठीकरा अभियन्ताओं पर फोड़ते हुए अभियन्ताओं को दण्डित किये जाने का अभियान शुरू कर दिया जायेगा. इसी प्रकार गर्मी में उपभोक्ताओं को निर्बाध विद्युत आपूर्ति की तैयारी एवं राजस्व वसूली में लगे अभियन्ताओं को ऊर्जा निगम प्रबन्धन वीसी/समीक्षाओं/स्पष्टीकरणों/प्रतिवेदनों/दण्डात्मक कार्रवाई में उलझाये हुए हैं. जिससे अभियन्ताओं को धरातल पर कार्य करने का समय नहीं मिल पा रहा है. प्रबन्धन द्वारा विभाग एवं विभागीय अभियन्ताओं की जनता में छवि खराब किये जाने के प्रयास किये जा रहे हैं. ऊर्जा निगमों का ऐसा कुप्रबन्धन पहले कभी नहीं देखा गया है. इन सब से आक्रोशित प्रदेश भर के विद्युत अभियन्ताओं ने बैठक कर विभाग एवं जनहित में वर्तमान प्रबन्धन पर ठोस कार्रवाई किये जाने की मांग की है.

सॉफ्टवेयर खरीद के नाम पर हो रहे कई बड़े घोटाले

उन्होंने बताया कि ऊर्जा निगमों में एमपोर्टल/आईटी के नाम पर बड़ा घोटाला किया जा रहा है. ईआरपी का जो सॉफ्टवेयर 30-40 करोड़ में मिल जाता है वही सॉफ्टवेयर पावर कारपोरेशन में लगभग 250 करोड़ में खरीदा गया है. इसके अतिरिक्त ट्रांसमिशन एवं उत्पादन निगम में अलग-अलग दरों पर सैकड़ों करोड़ रुपये में ये सॉफ्टवेयर खरीदे गये हैं. इस प्रकार ऊर्जा निगमों में बड़े घोटाले को जन्म दिया गया है. तमाम एप/पोर्टल/सॉफ्टवेयर खरीदे गये हैं या प्रक्रियाधीन हैं. जबकि ईआरपी आने के बाद इनका कोई उपयोग नहीं है. एक ही कार्य के लिए दो बार धनराशि खर्च किया जाना कहां तक उचित है ? सरकार को इसका संज्ञान लेकर वित्तीय अनियमितता करने वाले प्रबन्धन पर कार्रवाई करनी चाहिए.

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