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UP Election 2022: यूपी में नहीं बजा प्रियंका का डंका, कांग्रेस की लग गई लंका - अमेठी लोकसभा सीट

कांग्रेस राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस लगातार चौथा चुनाव हारने के कागार पर है. पहले लोकसभा, विधानसभा उपचुनाव, पंचायत चुनाव और अब यूपी विधानसभा चुनाव भी हार गई है...पढ़ें पूरी खबर.

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कांग्रेस राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी
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Published : Mar 10, 2022, 3:44 PM IST

लखनऊ: कांग्रेस राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी (Congress National General Secretary Priyanka Gandhi) ने साल 2019 में जब राष्ट्रीय महासचिव के साथ पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रभारी की कमान संभाली तो लखनऊ के कांग्रेस मुख्यालय पर जश्न का माहौल था. सिर्फ लखनऊ ही नहीं यूपी भर में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने जोश और उत्साह के साथ प्रियंका का स्वागत किया था. कार्यकर्ताओं को उम्मीद थी कि 32 साल का वनवास खत्म होगा और प्रियंका कांग्रेस को संजीवनी देने में कामयाब होंगी, लेकिन हकीकत यही है कि जबसे प्रियंका ने कमान संभाली तबसे यूपी में अलग-अलग चार चुनाव हो चुके हैं, लेकिन कांग्रेस की स्थिति सुधरने के बजाय चौपट ही होती गई. आलम यह है कि यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजे भी कांग्रेस को बिल्कुल रास नहीं आ रहे हैं. सियासी जमीन उपजाऊ होने के बजाय दरकती ही जा रही है. प्रियंका का कोई जादू उत्तर प्रदेश की जनता पर नहीं चल पा रहा है. कांग्रेस फिसड्डी ही होती जा रही है.



यूपी विधानसभा चुनाव में प्रियंका गांधी की साख दांव पर लगी थी, लेकिन नतीजे आए तो उनकी छवि मिट्टी में मिल गई है. प्रियंका का कोई मैजिक यूपी की जनता पर असर नहीं डाल पा रहा है. साल 2019 में लोकसभा चुनाव से पहले प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश की प्रभारी बनी तो कांग्रेस की सीटें बढ़ने के बजाय कम हो गईं. सिर्फ एक सीट ही कांग्रेस पार्टी जीत पाई, वह भी सोनिया गांधी की. परंपरागत अमेठी लोकसभा सीट(Amethi Lok Sabha seat) से पार्टी के नेता और प्रियंका के भाई राहुल गांधी भी चुनाव हार गए. प्रियंका को जनता ने यहीं से नकार दिया.

इसके बाद भी कांग्रेस को लगा कि अभी प्रियंका ने सक्रिय राजनीति में कदम रखा है. आगे जादू जरूर चलेगा. इसके बाद उत्तर प्रदेश में 11 सीटों पर विधानसभा उपचुनाव हुआ, लेकिन कांग्रेस पार्टी के खाते में यहां भी एक सीट नहीं आई. कांग्रेस का खाता भी नहीं खुल पाया. प्रियंका की छवि लगातार धूमिल होती चली गई. बावजूद इसके कांग्रेस पार्टी ने प्रियंका पर विश्वास करना कम नहीं किया. इसके बाद पंचायत चुनाव हुए, पार्टी की तरफ से पैसा भी पानी की तरह बहाया गया, लेकिन नतीजा सिफर ही रहा. कांग्रेस पार्टी कई पंचायतों में जमानत भी न बचा सकी. खास बात ये भी रही कि जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव भी कांग्रेस पार्टी नहीं जीत पाई. यहां पर फिर एक बार प्रियंका के नेतृत्व पर सवाल खड़े हुए, लेकिन जब पार्टी घर की हो तो फिर किसी के कहने सुनने से असर भी क्या पड़ने वाला? हाईकमान की तरफ से प्रियंका को आगे भी नेतृत्व दिया जाता रहा.


यह भी पढ़ें:नोएडा के अंधविश्वास को सीएम योगी ने तोड़ा, यूपी में फिर से लहराया भगवा!


प्रियंका के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी लगातार रेस में आगे के बजाय पीछे की तरफ भागती जा रही थी. इसी बीच उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव का प्रियंका के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी को बेसब्री से इंतजार था, वह घड़ी भी आ गई. उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए और प्रियंका गांधी ने पूरा जोर लगा दिया कि कांग्रेस पार्टी की स्थिति बेहतर हो सके. लेकिन यह चुनाव भी कांग्रेस पार्टी के लिए पहले के चुनाव की तरह ही साबित हुआ. प्रियंका का डंका यूपी में नहीं बजा, बल्कि कांग्रेस की लंका जरूर लग गई. लगातार चार चुनाव में प्रियंका गांधी कांग्रेस के लिए कोई करिश्मा नहीं कर पाईं.

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लखनऊ: कांग्रेस राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी (Congress National General Secretary Priyanka Gandhi) ने साल 2019 में जब राष्ट्रीय महासचिव के साथ पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रभारी की कमान संभाली तो लखनऊ के कांग्रेस मुख्यालय पर जश्न का माहौल था. सिर्फ लखनऊ ही नहीं यूपी भर में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने जोश और उत्साह के साथ प्रियंका का स्वागत किया था. कार्यकर्ताओं को उम्मीद थी कि 32 साल का वनवास खत्म होगा और प्रियंका कांग्रेस को संजीवनी देने में कामयाब होंगी, लेकिन हकीकत यही है कि जबसे प्रियंका ने कमान संभाली तबसे यूपी में अलग-अलग चार चुनाव हो चुके हैं, लेकिन कांग्रेस की स्थिति सुधरने के बजाय चौपट ही होती गई. आलम यह है कि यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजे भी कांग्रेस को बिल्कुल रास नहीं आ रहे हैं. सियासी जमीन उपजाऊ होने के बजाय दरकती ही जा रही है. प्रियंका का कोई जादू उत्तर प्रदेश की जनता पर नहीं चल पा रहा है. कांग्रेस फिसड्डी ही होती जा रही है.



यूपी विधानसभा चुनाव में प्रियंका गांधी की साख दांव पर लगी थी, लेकिन नतीजे आए तो उनकी छवि मिट्टी में मिल गई है. प्रियंका का कोई मैजिक यूपी की जनता पर असर नहीं डाल पा रहा है. साल 2019 में लोकसभा चुनाव से पहले प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश की प्रभारी बनी तो कांग्रेस की सीटें बढ़ने के बजाय कम हो गईं. सिर्फ एक सीट ही कांग्रेस पार्टी जीत पाई, वह भी सोनिया गांधी की. परंपरागत अमेठी लोकसभा सीट(Amethi Lok Sabha seat) से पार्टी के नेता और प्रियंका के भाई राहुल गांधी भी चुनाव हार गए. प्रियंका को जनता ने यहीं से नकार दिया.

इसके बाद भी कांग्रेस को लगा कि अभी प्रियंका ने सक्रिय राजनीति में कदम रखा है. आगे जादू जरूर चलेगा. इसके बाद उत्तर प्रदेश में 11 सीटों पर विधानसभा उपचुनाव हुआ, लेकिन कांग्रेस पार्टी के खाते में यहां भी एक सीट नहीं आई. कांग्रेस का खाता भी नहीं खुल पाया. प्रियंका की छवि लगातार धूमिल होती चली गई. बावजूद इसके कांग्रेस पार्टी ने प्रियंका पर विश्वास करना कम नहीं किया. इसके बाद पंचायत चुनाव हुए, पार्टी की तरफ से पैसा भी पानी की तरह बहाया गया, लेकिन नतीजा सिफर ही रहा. कांग्रेस पार्टी कई पंचायतों में जमानत भी न बचा सकी. खास बात ये भी रही कि जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव भी कांग्रेस पार्टी नहीं जीत पाई. यहां पर फिर एक बार प्रियंका के नेतृत्व पर सवाल खड़े हुए, लेकिन जब पार्टी घर की हो तो फिर किसी के कहने सुनने से असर भी क्या पड़ने वाला? हाईकमान की तरफ से प्रियंका को आगे भी नेतृत्व दिया जाता रहा.


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प्रियंका के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी लगातार रेस में आगे के बजाय पीछे की तरफ भागती जा रही थी. इसी बीच उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव का प्रियंका के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी को बेसब्री से इंतजार था, वह घड़ी भी आ गई. उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए और प्रियंका गांधी ने पूरा जोर लगा दिया कि कांग्रेस पार्टी की स्थिति बेहतर हो सके. लेकिन यह चुनाव भी कांग्रेस पार्टी के लिए पहले के चुनाव की तरह ही साबित हुआ. प्रियंका का डंका यूपी में नहीं बजा, बल्कि कांग्रेस की लंका जरूर लग गई. लगातार चार चुनाव में प्रियंका गांधी कांग्रेस के लिए कोई करिश्मा नहीं कर पाईं.

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