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लखनऊ विश्वविद्यालय में भी अजय मिश्रा की कंपनी को हटाने की तैयारी, लगे यह आरोप

एक्सएलआईसीटी कंपनी के मालिक अजय मिश्रा का लखनऊ विश्वविद्यालय में भी लंबे समय से परीक्षा विभाग का काम कर रहा है. लखनऊ विश्वविद्यालय में परीक्षा और मार्कशीट से जुड़े कामों को करने वाली एक्सएलआईसीटी कंपनी (XLICT Company) पर कई बार उंगलियां उठ चुकी हैं.

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Published : Nov 2, 2022, 6:21 PM IST

Updated : Nov 2, 2022, 7:15 PM IST

लखनऊ. एक्सएलआईसीटी कंपनी के मालिक अजय मिश्रा का लखनऊ विश्वविद्यालय में भी लंबे समय से परीक्षा विभाग का काम कर रहा है. लखनऊ विश्वविद्यालय में परीक्षा और मार्कशीट से जुड़े कामों को करने वाली एक्सएलआईसीटी कंपनी पर कई बार उंगलियां उठ चुकी हैं. बीते तीन महीनों में जारी सेमेस्टर परीक्षाओं के परिणामों को जारी करने में कंपनी की ओर से भारी अनियमितता की गई थी, जिसके बाद विवि प्रशासन ने परिणामों को वापस लेकर दोबारा संसोधित परिणाम जारी किया था. विवि सूत्रों का कहना है कि इन गड़बड़ियों को देखते हुए कंपनी (XLICT Company) पहले से ही हटाने की तैयारी कर चुकी है.

कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर विनय कुमार पाठक पर दर्ज हुई एफआईआर में लगे आरोपों पर कथित वसूली में बराबर के सहयोगी एक्सएलआईसीटी कंपनी के मालिक अजय मिश्रा का लखनऊ विश्वविद्यालय से भी पुराना नाता है. एकेटीयू में पिछले छह वर्षों से वह काम कर रहा था और लगभग इतने ही वर्षों से वह लखनऊ विश्वविद्यालय में भी काम कर रहा है. करोड़ों रुपए के पेमेंट वाली उसकी कंपनी पर कई बार सवाल उठे, लेकिन हर बार लखनऊ विश्वविद्यालय के ही जिम्मेदार गलती किसी और की बताकर बचा ले जाते. 2019 में ही ऐसा एक बड़ा मामला सामने आया था, जिसमें मार्कशीट और परीक्षा से जुड़ा पूरा काम देखने वाली एक्सएलआईसीटी कंपनी को आवंटित किए गए 15 से अधिक मार्कशीट जालसाजों के पास से मिली, यही नहीं कंपनी को जो ब्लू चार्ट दिए गए थे वह जालसाजों के पास से मिले, बाद में तत्कालीन चौकी इंचार्ज ने यहां के निलंबित बाबू को जेल भी भेजा और कईयों पर चार्जशीट दाखिल करने के लिए लखनऊ विश्वविद्यालय प्रशासन से अनुमति मांगी, लेकिन वह अनुमति कई महीनों तक लटकाए रखा गया.

यही नहीं मीडिया में दर्जनों बार खबरों के छपने के बाद भी लखनऊ विश्वविद्यालय प्रशासन ने जांच कर रही पुलिस को यह नहीं बताया कि कौन सी कंपनी उनके यहां परीक्षा का काम करती है. गोपनीय होने का बहाना बनाकर तत्कालीन कुलपति और तत्कालीन परीक्षा नियंत्रक ने पुलिस को महीनों इधर उधर घुमाया. यही नहीं कंपनी को प्रदेश के बाहर भी कुछ कुलपतियों ने काम दिलाकर उपकृत किया. हालांकि अब यह भी जांच का विषय है कि पिछले 6 वर्षों में गोपनीय काम का बहाना बनाकर किस तरह से बाहरी लोगों से काम कराया जाता था और विश्वविद्यालय के कर्मचारी खाली बैठे रहते थे.

अभी दो महीने पहले ही बीकॉम परीक्षा फल में जबरदस्त गड़बड़ी मिली, लेकिन इसके लिए भी कंपनी को दोषी ना मानकर परीक्षा नियंत्रक विद्यानंद त्रिपाठी ने ही माफी मांगी. बताया जाता है कि रसूख के चलते उस कंपनी को कोई भी किसी भी प्रकार का नोटिस नहीं दिया जाता और ना ही उसका भुगतान कभी रुका. मजेदार बात यह रही कि कोविड-19 के समय में भी कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए कई प्रकार के अनोखे निर्णय लिए गए, जो अब सामने आ रहे हैं. यही नहीं लखनऊ विश्वविद्यालय के कर्मचारी खाली बैठे रहते थे, लेकिन उनसे काम ना लेकर अजय मिश्रा की कंपनी से काम लिया जाता था और गोपनीय काम को बाहरी लोगों से कराया जाता था.

यह भी पढ़ें : ए फॉर एप्पल की बजाए अब अर्जुन द ग्रेट वाॅरियर पढ़ेंगे बच्चे, अमीनाबाद इंटर कॉलेज ने किया प्रयोग

इस मामले में विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि आरोपी कंपनी को कई बार काम की गुणवत्ता सुधारने को कहा गया है. विश्वविद्यालय प्रशासन अगले दो महीने में इस सेशन का सारा काम पूरा कराने के बाद कंपनी को हटाकर नए सिरे से टेंडर प्रक्रिया करने की तैयारी में है. विश्वविद्यालय अधिकारियों का कहना है कि बीते तीन महीनों में कंपनी की ओर से रिजल्ट जारी करने में लगातार गड़बड़ी की गई है.

यह भी पढ़ें : कानपुर विश्वविद्यालय कुलपति विनय पाठक की याचिका पर हाईकोर्ट का आदेश सुरक्षित, कल आएगा फैसला

लखनऊ. एक्सएलआईसीटी कंपनी के मालिक अजय मिश्रा का लखनऊ विश्वविद्यालय में भी लंबे समय से परीक्षा विभाग का काम कर रहा है. लखनऊ विश्वविद्यालय में परीक्षा और मार्कशीट से जुड़े कामों को करने वाली एक्सएलआईसीटी कंपनी पर कई बार उंगलियां उठ चुकी हैं. बीते तीन महीनों में जारी सेमेस्टर परीक्षाओं के परिणामों को जारी करने में कंपनी की ओर से भारी अनियमितता की गई थी, जिसके बाद विवि प्रशासन ने परिणामों को वापस लेकर दोबारा संसोधित परिणाम जारी किया था. विवि सूत्रों का कहना है कि इन गड़बड़ियों को देखते हुए कंपनी (XLICT Company) पहले से ही हटाने की तैयारी कर चुकी है.

कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर विनय कुमार पाठक पर दर्ज हुई एफआईआर में लगे आरोपों पर कथित वसूली में बराबर के सहयोगी एक्सएलआईसीटी कंपनी के मालिक अजय मिश्रा का लखनऊ विश्वविद्यालय से भी पुराना नाता है. एकेटीयू में पिछले छह वर्षों से वह काम कर रहा था और लगभग इतने ही वर्षों से वह लखनऊ विश्वविद्यालय में भी काम कर रहा है. करोड़ों रुपए के पेमेंट वाली उसकी कंपनी पर कई बार सवाल उठे, लेकिन हर बार लखनऊ विश्वविद्यालय के ही जिम्मेदार गलती किसी और की बताकर बचा ले जाते. 2019 में ही ऐसा एक बड़ा मामला सामने आया था, जिसमें मार्कशीट और परीक्षा से जुड़ा पूरा काम देखने वाली एक्सएलआईसीटी कंपनी को आवंटित किए गए 15 से अधिक मार्कशीट जालसाजों के पास से मिली, यही नहीं कंपनी को जो ब्लू चार्ट दिए गए थे वह जालसाजों के पास से मिले, बाद में तत्कालीन चौकी इंचार्ज ने यहां के निलंबित बाबू को जेल भी भेजा और कईयों पर चार्जशीट दाखिल करने के लिए लखनऊ विश्वविद्यालय प्रशासन से अनुमति मांगी, लेकिन वह अनुमति कई महीनों तक लटकाए रखा गया.

यही नहीं मीडिया में दर्जनों बार खबरों के छपने के बाद भी लखनऊ विश्वविद्यालय प्रशासन ने जांच कर रही पुलिस को यह नहीं बताया कि कौन सी कंपनी उनके यहां परीक्षा का काम करती है. गोपनीय होने का बहाना बनाकर तत्कालीन कुलपति और तत्कालीन परीक्षा नियंत्रक ने पुलिस को महीनों इधर उधर घुमाया. यही नहीं कंपनी को प्रदेश के बाहर भी कुछ कुलपतियों ने काम दिलाकर उपकृत किया. हालांकि अब यह भी जांच का विषय है कि पिछले 6 वर्षों में गोपनीय काम का बहाना बनाकर किस तरह से बाहरी लोगों से काम कराया जाता था और विश्वविद्यालय के कर्मचारी खाली बैठे रहते थे.

अभी दो महीने पहले ही बीकॉम परीक्षा फल में जबरदस्त गड़बड़ी मिली, लेकिन इसके लिए भी कंपनी को दोषी ना मानकर परीक्षा नियंत्रक विद्यानंद त्रिपाठी ने ही माफी मांगी. बताया जाता है कि रसूख के चलते उस कंपनी को कोई भी किसी भी प्रकार का नोटिस नहीं दिया जाता और ना ही उसका भुगतान कभी रुका. मजेदार बात यह रही कि कोविड-19 के समय में भी कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए कई प्रकार के अनोखे निर्णय लिए गए, जो अब सामने आ रहे हैं. यही नहीं लखनऊ विश्वविद्यालय के कर्मचारी खाली बैठे रहते थे, लेकिन उनसे काम ना लेकर अजय मिश्रा की कंपनी से काम लिया जाता था और गोपनीय काम को बाहरी लोगों से कराया जाता था.

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इस मामले में विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि आरोपी कंपनी को कई बार काम की गुणवत्ता सुधारने को कहा गया है. विश्वविद्यालय प्रशासन अगले दो महीने में इस सेशन का सारा काम पूरा कराने के बाद कंपनी को हटाकर नए सिरे से टेंडर प्रक्रिया करने की तैयारी में है. विश्वविद्यालय अधिकारियों का कहना है कि बीते तीन महीनों में कंपनी की ओर से रिजल्ट जारी करने में लगातार गड़बड़ी की गई है.

यह भी पढ़ें : कानपुर विश्वविद्यालय कुलपति विनय पाठक की याचिका पर हाईकोर्ट का आदेश सुरक्षित, कल आएगा फैसला

Last Updated : Nov 2, 2022, 7:15 PM IST
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