लखनऊ: उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के सामने मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में समाजवादी पार्टी है. कांग्रेस और बसपा अपने सबसे बुरे दौर से गुजरते हुए हाशिए पर पहुंच गई है. ऐसे में अखिलेश से खफा शिवपाल यादव और अन्य छोटे दलों के नेता तीसरा मोर्चा बनाकर 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के सामने नई चुनौती पेश करना चाहते हैं. खास बात यह है कि मुसलमानों का भी एक घड़ा सपा से नाराज है. बड़ी संख्या में ऐसे मुसलमान जिन्हें लगता है कि समाजवादी पार्टी उनका वोट तो लेती है, लेकिन उनके हक के लिए खुलकर सामने नहीं आती. ऐसे असंतुष्ट मुसलमानों का एक हिस्सा भी इस मोर्चे में शामिल हो सकता है.
प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और सपा मुखिया अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव ने आज (सोमवार) आजम खान को लेकर एक वीडियो ट्वीट किया, जिसमें उन्होंने लिखा 'अच्छी और ईमानदार सोच हमेशा अपने मुकाम पर पहुंचती है! मैं आपके साथ था, हूं और रहूंगा' शिवपाल का यह ट्वीट उत्तर प्रदेश की भावी राजनीति की ओर इशारा कर रहा है.
प्रदेश में 2024 में लोकसभा के चुनाव होने हैं. इसलिए शिवपाल यादव के पास पर्याप्त समय है कि वह हर तरह की तैयारी करने के बाद ही अपने पत्ते खोलें. पहले कयास लगाए जा रहे थे कि शिवपाल भारतीय जनता पार्टी में शामिल होंगे. हालांकि ऐसा हुआ नहीं.
स्वाभाविक है कि वह अपने फैसले ठोक-बजाकर ही लेंगे. चूंकि उन्होंने जीवनभर अपनी लड़ाई समाजवाद की पैरोकारी करते हुए लड़ी है, ऐसे में उनके लिए ज्यादा मुफीद होगा कि वह भाजपा-सपा से इतर अपना अलग मोर्चा बनाएं. प्रदेश में ऐसे लोग कम नहीं हैं, जो भाजपा और सपा दोनों को सही नहीं मानते और विकल्प की तलाश करते हैं. सूत्र बताते हैं कि शिवपाल आज कल इसी पर लगे हुए हैं.
अब बात मुसलमानों के मसले की. उत्तर प्रदेश में यह धारणा है कि मुस्लिमों का वोट उसी पार्टी को जाता है, जो भाजपा को हराने का मादा रखती हो. स्वाभाविक है कि हालिया विधान सभा चुनावों और इससे पहले के एक दशक के चुनावों में सपा ही वह पार्टी थी, जो भाजपा से मुकाबिल थी. ऐसे में मुसलमानों का वोट सपा में ही गया. हालांकि विधान सभा चुनावों के पहले से ही कुछ मुसलमानों के मन में सपा को लेकर नाराजगी भी थी, लेकिन विकल्प के अभाव में उन्हें सपा के लिए ही वोट करना पड़ा.
पूर्व मंत्री मोहम्मद आजम खान को समाजवादी पार्टी में मुसलमानों का प्रतिनिधि माना जाता था. वह दो साल से भी ज्यादा समय से जेल में बंद हैं. इस दौरान एक बार भी सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव उनसे मिलने नहीं पहुंचे. आजम समर्थकों को लगता है कि दिल्ली-लखनऊ की यात्राएं करते रहने वाले मुलायम सिंह यदि एक बार उनसे भी मिल आते, तो उनका और समर्थकों दोनों का मनोबल बढ़ता. यही नहीं मुलायम सिंह ने संसद में एक बार भी आजम के साथ कथित ज्यादती का मुद्दा भी नहीं उठाया. इस विषय को छोड़ भी दें, तो मुसलमानों के कई ऐसे मसले थे, जिनमें सपा को मुखर होकर साथ खड़े होना चाहिए था, किंतु अखिलेश यादव ने ऐसे विषयों को गंभीरता से संज्ञान तक नहीं लिया.
वहीं, लाउडस्पीकर और बुलडोजर चलाने के मसले में भी मुसलमान समझते हैं कि उनके साथ नाइंसाफी हुई, पर इन मसलों पर वह पार्टी जिसे उन्होंने वोट दिया, साथ खड़ी दिखाई नहीं दी. ऐसे में मुसलमानों को भी लगने लगा है कि सभी दल उनका वोट तो चाहते हैं, किंतु उनकी लड़ाई कोई नहीं लड़ना चाहता. ऐसे में इनका एक बड़ा वर्ग शिवपाल के साथ तीसरे मोर्चे में शामिल होकर भाजपा के सामने चुनौती पेश कर सकता है.
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विधान सभा चुनावों से पहले शिवपाल सिंह यादव, बाबू सिंह कुशवाहा, असदुद्दीन ओवैसी और ओम प्रकाश राजभर की कई बैठकें हुई थीं. उस समय बात भले ही न बनी हो, लेकिन बिगड़ी बात बनाने की कोशिश फिर शुरू हो गई है. ओवैसी किसी भी कीमत पर उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपनी जगह बनाना चाहते हैं, क्योंकि उन्हें मालूम है कि देश की राजनीति उत्तर प्रदेश से होकर ही जाती है. कैबिनेट मंत्री रहे बाबू सिंह कुशवाहा भी हालिया चुनावों में खाली हाथ हैं.
ऐसे में वह भी इस गठबंधन का हिस्सा बन सकते हैं. राजभर सहित छोटे दलों के कई नेता अवसरवाद की राजनीति करते हैं. ऐसे में यदि उन्हें कहीं और लाभ दिखा तो वह मौका नहीं चूकेंगे. खास बात यह है कि भाजपा भी यही चाहती है कि सपा कमजोर हो. इसलिए यदि तीसरा मोर्चा बना तो भाजपा की यह मंशा भी पूरी हो जाएगी. अब देखना होगा कि शिवपाल यादव अपने पत्ते कब खोलते हैं, लेकिन इतना तो तय है कि 2014 के लिए बिसात अभी से बिछने लगी है.
इस विषय में राजनीतिक विश्लेषक डॉ मनीष हिंदवी कहते हैं 'आज की तारीख में प्रदेश में एक ही विपक्षी दल है सपा, अकेले बत्तीस प्रतिशत मत लेकर आया है. अब नाराज लोगों को इकट्ठा किया जा रहा है. लंबे समय से जेल में बंद आजम बाहर आना चाहेंगे. शिवपाल खुद सम्मान की लड़ाई लड़ रहे हैं. ऐसे लोग कुछ नहीं कर पाएंगे. हां, सपा को डैमेज जरूर करेंगे. ऐसे में सपा को नीचे लाने की कवायद पूरी हो जाएगी. लोक सभा का एक बड़ा क्षेत्र होता है, इसलिए सीटों में तब्दील नहीं हो पाएगा, लेकिन यह तय है कि कोई मोर्चा बना तो सपा को नुकसान जरूर होगा.'
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