लखनऊ: उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद में एक और नया घोटाला सामने आया है. 350 करोड़ रुपये की धांधली में अफसर फंसे हैं. आवास विकास परिषद की जमीन में घालमेल करने का यह मामला है. जिसको लेकर भी जांच में अधिकारियों के खिलाफ दोष सिद्ध हो गया है. कड़ी कार्रवाई की तैयारी की जा रही है.
गाजियाबाद स्थित सिद्धार्थ विहार योजना में 350 करोड़ रुपये के जमीन घोटाले में पूर्व उप आवास आयुक्त समेत पांच अभियंता, अफसर और कर्मचारियों को दोषी पाया गया है. आवास एवं विकास परिषद के कमिश्नर रणवीर प्रसाद की तरफ से इन सभी के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कर जांच करने की संस्तुति की गई है. परिषद के कमिश्नर ने अपर मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र को इस संबंध पत्र लिखा है.
कंपनी को आवास एवं विकास परिषद ने कम कीमत पर करीब 12 एकड़ जमीन दे दी थी. यह जमीन परिषद ने वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट के नाम पर किसानों से अधिग्रहीत की गई थी. आरोप है कि इस 'खेल' में विभाग को 350 करोड़ रुपये का घालमेल किया गया. जुलाई को एसआईटी जांच का आदेश हुआ. इस बीच, विभागीय जांच भी पूरी हो गई. जांच रिपोर्ट में तत्कालीन उप आवास आयुक्त एसवी सिंह, सहायक अभियंता आरएल गुप्ता, अनुभाग अधिकारी साधु शरण तिवारी, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी बैजनाथ प्रसाद और सहायक (श्रेणी द्वितीय) आरसी कश्यप को प्रथम दृष्ट्या दोषी पाया गया. तीन जनवरी-2024 को सभी को आरोपपत्र भेजते हुए 15 दिन के भीतर जवाब देने को कहा गया था. साथ ही कमिश्नर ने आवास विभाग के अपर मुख्य सचिव नितिन रमेश गोकर्ण को पत्र भेजकर विजिलेंस जांच की सिफारिश कर दी. सभी पांच आरोपित साल 2014 से लेकर 2019 के बीच रिटायर हो चुके हैं.
साल 2014 में आवास विकास परिषद के अधिकारियों ने सिद्धार्थ विहार योजना में बिल्डर को 12.47 एकड़ जमीन दी. एसटीपी बनाने के लिए आवास विकास ने यह जमीन किसानों को मुआवजा देकर साल 1989 में ली थी. आरोप है कि इस जमीन पर आवासीय प्रॉजेक्ट लाने से पहले इसका भू उपयोग बदला जाना था, जिसका कोई शुल्क नहीं लिया गया. अनुमानतः इससे परिषद को 350 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. इसके बाद इस मामले की एसआईटी जांच का भी आदेश हुआ.