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छोटे दलों के हाथ साल 2022 में लगा बड़ा जैकपॉट, बसपा, कांग्रेस और वामपंथी दलों की खड़ी हो गई खाट

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Published : Dec 13, 2022, 2:54 PM IST

छोटे दलों के लिहाज से बात की जाए तो साल 2022 में कई दलों के हाथ जैकपॉट लगा. अपना दल (सोनेलाल पटेल) ग्रुप ने भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन (BJP and Apna Dal Alliance) कर चुनाव लड़ा और उत्तर प्रदेश में सीटों के मामले में छोटे दलों की सबसे बड़ी पार्टी और प्रदेश में तीसरे नंबर की सबसे बड़ी पार्टी बन गई. अपना दल (कमेरावादी) ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा तो एक भी सीट न जीतने वाली इस पार्टी ने इस साल खाता खोल लिया.

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लखनऊ : छोटे दलों के लिहाज से बात की जाए तो साल 2022 में इन दलों के हाथ जैकपॉट लगा. इनमें अपना दल, सुभासपा, राष्ट्रीय लोक दल मुख्य रूप से शामिल हैं. अपना दल (सोनेलाल पटेल) ग्रुप ने भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन कर चुनाव लड़ा और उत्तर प्रदेश में सीटों के मामले में छोटे दलों की सबसे बड़ी पार्टी और प्रदेश में तीसरे नंबर की सबसे बड़ी पार्टी बन गई. इन्हीं छोटे दलों में अपना दल (कमेरावादी) ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा तो एक भी सीट न जीतने वाली इस पार्टी ने इस साल खाता खोल लिया. ओमप्रकाश राजभर की सुभासपा ने समाजवादी पार्टी से हाथ मिलाकर चुनाव में कदम रखा और आधा दर्जन सीटें जीतने में कामयाब हुई. बड़ा फायदा राष्ट्रीय लोकदल को सपा से गठबंधन का मिला. पार्टी के आठ प्रत्याशी चुनाव जीतने में सफल हुए. हालांकि वामपंथी दलों के हाथ कुछ भी नहीं लगा. उनके लिए साल 2022 हर साल की तरह ही अकाल वाला साबित हुआ. छोटे दलों को 2022 में फायदा मिला. वहीं बड़े दल छोटे दलों में तब्दील हो गए. उनके सपनों का महल चकनाचूर हो गया. बसपा एक सीट जीतकर और कांग्रेस महज दो सीटों पर सिमटकर छोटे दल में तब्दील हो गईं. वामपंथी दलों की खाट खड़ी हो गई.

राष्ट्रीय लोक दल की भी निकल पड़ी लॉटरी.
राष्ट्रीय लोक दल की भी निकल पड़ी लॉटरी.

अपना दल (सोनेलाल पटेल) ग्रुप की बल्ले-बल्ले : अपना दल, (सोनेलाल पटेल ग्रुप) के लिए साल 2022 कुछ ज्यादा ही खास रहा. पार्टी उत्तर प्रदेश में तीसरे नंबर की बड़ी पार्टी बन गई. भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी के बाद सीधे तौर पर अपना दल के ही सबसे ज्यादा विधायक हैं. कभी पार्टी ने भी यह सोचा नहीं था कि राजनीति में दांव इस कदर सटीक बैठेगा कि देखते ही देखते उत्तर प्रदेश में पार्टी अपना वर्चस्व जमा लेगी. अपना दल (सोनेलाल पटेल ग्रुप) की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल ने हर बार की तरह इस बार भी विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन किया था. गठबंधन में पार्टी ने एक दर्जन विधायक जीतने में कामयाबी पाई और यह संख्या अन्य सभी छोटे दलों की तुलना में सबसे ज्यादा है. लिहाजा, अपना दल के लिए साल 2022 बहुत ही बेहतर साबित हुआ है. उत्तर प्रदेश सरकार में पार्टी के कैबिनेट स्तर के मंत्री हैं, साथ ही केंद्र सरकार के साथ भी अपना दल गठबंधन कर सरकार में शामिल है. कुल मिलाकर हर साल अपना दल (सोनेलाल) के लिए बेमिसाल साबित हो रहा है.

कांग्रेस, बसपा की हालत और हुई खस्ता.
कांग्रेस, बसपा की हालत और हुई खस्ता.

अपना दल (कमेरवादी) के लिए भी शुभ रहा साल : जहां अपना दल (सोनेलाल) के उत्तर प्रदेश में दर्जनभर विधायक हैं, वही खाता न खोल पाने वाली अपना दल (कमेरावादी) भी साल 2022 में एक सीट जीतकर खाता खोलने में कामयाब हुई है. अपना दल (सोनेलाल पटेल) की राष्ट्रीय अध्यक्ष जहां अनुप्रिया पटेल हैं, वहीं अपना दल (कमेरावादी) की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया की मां कृष्णा पटेल हैं. हालांकि साल 2022 के विधानसभा चुनाव में कृष्णा पटेल तो अपनी सीट नहीं जीत पाईं, लेकिन बेटी और पार्टी की उपाध्यक्ष पल्लवी पटेल ने सिराथू विधानसभा सीट पर उत्तर प्रदेश सरकार के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को हराकर अपनी पार्टी का खाता खोलने में कामयाबी जरूर पाई. समाजवादी पार्टी के साथ कृष्णा पटेल की अपना दल (कमेरावादी) ने चुनाव लड़ा था. गठबंधन में कुल आधा दर्जन सीटें मिली थीं जिनमें से पल्लवी पटेल के रूप में एक विधायक जीतने में पार्टी कामयाब हुई. पार्टी का साल 2022 में खाता खुल गया. कुल मिलाकर यह साल अपना दल (कमेरावादी) के लिए भी शुभ साबित हुआ.

अपना दल (सोनेलाल पटेल) ग्रुप की बल्ले-बल्ले.
अपना दल (सोनेलाल पटेल) ग्रुप की बल्ले-बल्ले.

राष्ट्रीय लोक दल की भी निकल पड़ी लॉटरी : उत्तर प्रदेश में साल 2022 के विधानसभा चुनाव में जहां अनुप्रिया पटेल की अपना दल (सोनेलाल) को बेहतरीन कामयाबी मिली, वहीं दूसरी पार्टी के रूप में जयंत चौधरी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय लोक दल भी शून्य से शिखर पर पहुंचने में कामयाब हुई. उत्तर प्रदेश में इस बार जयंत चौधरी ने समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के साथ गठबंधन किया. 33 विधानसभा सीटों पर उन्होंने अपने प्रत्याशी उतारे. जिनमें से आठ विधायक जीतने में कामयाब हुए. इसका नतीजा ये हुआ कि रसातल में समा रही राष्ट्रीय लोक दल को संजीवनी मिल (Rashtriya Lok Dal got lifeline) गई. आठ विधायक सदन के अंदर पहुंचे. अखिलेश और जयंत की जोड़ी के संबंध और मजबूत हुए. इसका नतीजा ये हुआ कि इसी साल अखिलेश के समर्थन से राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष चौधरी जयंत सिंह राज्यसभा सांसद भी बन गए. इतना ही नहीं साल जाते-जाते दिसंबर माह में ही खतौली विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुआ और यहां भी राष्ट्रीय लोकदल ने समाजवादी पार्टी के सहयोग से बाजी मार ली. भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी को हराकर राष्ट्रीय लोकदल के उम्मीदवार मदन भैया ने पार्टी के खाते में जाते साल एक और सीट का इजाफा कर दिया. अब नौ सीटों के साथ राष्ट्रीय लोक दल दहाई के अंक में पहुंचने के लिए अगली बार कोशिश में जुटेगी. कुल मिलाकर साल 2022 में राष्ट्रीय लोक दल की भी लॉटरी निकल पड़ी.

सुभासपा को कुछ नुकसान, कुछ नफा ः सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष (National President of Suheldev Bharatiya Samaj Party) ने साल 2017 में जहां भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था और आठ में से चार सीटें जीतने में कामयाबी हासिल की थी. वहीं साल 2022 में ओमप्रकाश राजभर ने अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में जाने का फैसला लिया. 2022 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश ने गठबंधन में राजभर को 18 सीटें दीं. पार्टी को जहां 2017 में गठबंधन में कुल आठ सीटें मिली थीं उनमें 10 का इजाफा हुआ. 18 सीटों पर प्रत्याशी उतारने का मौका मिला, लेकिन दूसरी तरफ जहां 2017 में आठ में से चार विधायक जीतने में कामयाबी मिली, वहीं इस बार 18 में से छह विधायक जीतने में कामयाब हुए. ऐसे में पार्टी के विधायकों की संख्या तो बढ़ी, लेकिन जीतने का प्रतिशत कम जरूर हो गया. कुल मिलाकर कहें तो पार्टी के 2022 में चार से बढ़कर छह विधायक हो गए हैं. ऐसे में पार्टी को कुछ न कुछ नफा जरूर हुआ है. हालांकि साल 2017 में चार विधायक जीतने के बाद भी योगी सरकार में ओमप्रकाश राजभर कैबिनेट मंत्री थे. उनकी पार्टी के अन्य विधायकों को भी मंत्रिमंडल में जगह मिली थी,।लेकिन इस बार आधा दर्जन विधायक जीत कर भी वह खाली हाथ हैं. इतना ही नहीं चुनाव खत्म होने के बाद उनकी अखिलेश से अनबन भी हो चुकी है और अब सुभासपा और सपा साथ नहीं हैं. पार्टी के लिहाज से बात करें तो साल 2022 विधायकों की संख्या की दृष्टि से नफा और सरकार में शामिल न हो पाने के चलते नुकसान वाला साबित हुआ है.

कांग्रेस, बसपा की हालत और हुई खस्ता.
कांग्रेस, बसपा की हालत और हुई खस्ता.

खत्म हो गई प्रसपा (Progressive Samajwadi Party is over) : शिवपाल सिंह यादव ने साल 2018 में समाजवादी पार्टी से अलग होकर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) की स्थापना की थी. शिवपाल के इस कदम से परिवार में बिखराव हो गया था. हालांकि मुलायम सिंह यादव लगातार अखिलेश और शिवपाल के बीच पुल का काम करते रहे, लेकिन इसी साल मुलायम सिंह का देहांत हो गया. अंदाजा लगाया जा रहा था कि अब अखिलेश और शिवपाल कभी एक नहीं हो पाएंगे, लेकिन इसी बीच करिश्मा हो गया. मैनपुरी लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में बहू डिंपल यादव ने चाचा का समर्थन मांगा और चाचा शिवपाल सहर्ष तैयार हो गए. इसके बाद जो हुआ उसकी किसी को इतनी जल्दी उम्मीद भी नहीं थी. शिवपाल और अखिलेश की आपसी लड़ाई पूरी तरह से खत्म हो गई. इसी साल परिवार की लड़ाई खत्म हो गई और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी भी समाजवादी पार्टी में विलय होकर खत्म हो गई अब यह परिवार एक हो गया और पार्टी भी एक ही हो गई. प्रगतिशील समाजवादी पार्टी की स्थापना जिस उद्देश्य के लिए शिवपाल ने की थी उसका कभी सदुपयोग हुआ. न इस पार्टी से शिवपाल और न ही कभी उनका कोई नेता या कार्यकर्ता चुनाव लड़ पाया.

कांग्रेस, बसपा की हालत और हुई खस्ता (Congress BSPs condition in up) : साल 2022 कांग्रेस पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के लिहांज से बेहद खराब माना जा सकता है. कांग्रेस की जहां साल 2017 में सात सीटें आई थीं, वहीं 2022 के विधानसभा चुनाव में पांच सीटें घटकर कुल दो सीटें ही रह गईं. पार्टी को बड़ा नुकसान हुआ है. बात बहुजन समाज पार्टी की करें तो पार्टी की मुखिया मायावती ने बड़ी उम्मीद लगाई थी कि 2022 में वे किंगमेकर साबित होंगी, लेकिन उनका सपना चकनाचूर हो गया. पार्टी अपने सबसे बुरे दौर में जा पहुंची. सिर्फ एक ही विधायक जीत पाने में कामयाब हुआ. बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस पार्टी के बाद सिर्फ कम्युनिस्ट पार्टियां (communist parties) ही ऐसी हैं जो लड़कर भी कुछ नहीं कर पातीं. उनका खाता भी नहीं खुलता. यह साल कांग्रेस, बसपा और वामपंथी दलों के लिए कुछ ज्यादा ही बदतर साबित हुआ है.

यह भी पढ़ें : साल 2022 में योगी सरकार के बड़े फैसले, धार्मिक स्थलों से उतरवाए लाउडस्पीकर, मदरसों की कराई जांच

लखनऊ : छोटे दलों के लिहाज से बात की जाए तो साल 2022 में इन दलों के हाथ जैकपॉट लगा. इनमें अपना दल, सुभासपा, राष्ट्रीय लोक दल मुख्य रूप से शामिल हैं. अपना दल (सोनेलाल पटेल) ग्रुप ने भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन कर चुनाव लड़ा और उत्तर प्रदेश में सीटों के मामले में छोटे दलों की सबसे बड़ी पार्टी और प्रदेश में तीसरे नंबर की सबसे बड़ी पार्टी बन गई. इन्हीं छोटे दलों में अपना दल (कमेरावादी) ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा तो एक भी सीट न जीतने वाली इस पार्टी ने इस साल खाता खोल लिया. ओमप्रकाश राजभर की सुभासपा ने समाजवादी पार्टी से हाथ मिलाकर चुनाव में कदम रखा और आधा दर्जन सीटें जीतने में कामयाब हुई. बड़ा फायदा राष्ट्रीय लोकदल को सपा से गठबंधन का मिला. पार्टी के आठ प्रत्याशी चुनाव जीतने में सफल हुए. हालांकि वामपंथी दलों के हाथ कुछ भी नहीं लगा. उनके लिए साल 2022 हर साल की तरह ही अकाल वाला साबित हुआ. छोटे दलों को 2022 में फायदा मिला. वहीं बड़े दल छोटे दलों में तब्दील हो गए. उनके सपनों का महल चकनाचूर हो गया. बसपा एक सीट जीतकर और कांग्रेस महज दो सीटों पर सिमटकर छोटे दल में तब्दील हो गईं. वामपंथी दलों की खाट खड़ी हो गई.

राष्ट्रीय लोक दल की भी निकल पड़ी लॉटरी.
राष्ट्रीय लोक दल की भी निकल पड़ी लॉटरी.

अपना दल (सोनेलाल पटेल) ग्रुप की बल्ले-बल्ले : अपना दल, (सोनेलाल पटेल ग्रुप) के लिए साल 2022 कुछ ज्यादा ही खास रहा. पार्टी उत्तर प्रदेश में तीसरे नंबर की बड़ी पार्टी बन गई. भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी के बाद सीधे तौर पर अपना दल के ही सबसे ज्यादा विधायक हैं. कभी पार्टी ने भी यह सोचा नहीं था कि राजनीति में दांव इस कदर सटीक बैठेगा कि देखते ही देखते उत्तर प्रदेश में पार्टी अपना वर्चस्व जमा लेगी. अपना दल (सोनेलाल पटेल ग्रुप) की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल ने हर बार की तरह इस बार भी विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन किया था. गठबंधन में पार्टी ने एक दर्जन विधायक जीतने में कामयाबी पाई और यह संख्या अन्य सभी छोटे दलों की तुलना में सबसे ज्यादा है. लिहाजा, अपना दल के लिए साल 2022 बहुत ही बेहतर साबित हुआ है. उत्तर प्रदेश सरकार में पार्टी के कैबिनेट स्तर के मंत्री हैं, साथ ही केंद्र सरकार के साथ भी अपना दल गठबंधन कर सरकार में शामिल है. कुल मिलाकर हर साल अपना दल (सोनेलाल) के लिए बेमिसाल साबित हो रहा है.

कांग्रेस, बसपा की हालत और हुई खस्ता.
कांग्रेस, बसपा की हालत और हुई खस्ता.

अपना दल (कमेरवादी) के लिए भी शुभ रहा साल : जहां अपना दल (सोनेलाल) के उत्तर प्रदेश में दर्जनभर विधायक हैं, वही खाता न खोल पाने वाली अपना दल (कमेरावादी) भी साल 2022 में एक सीट जीतकर खाता खोलने में कामयाब हुई है. अपना दल (सोनेलाल पटेल) की राष्ट्रीय अध्यक्ष जहां अनुप्रिया पटेल हैं, वहीं अपना दल (कमेरावादी) की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया की मां कृष्णा पटेल हैं. हालांकि साल 2022 के विधानसभा चुनाव में कृष्णा पटेल तो अपनी सीट नहीं जीत पाईं, लेकिन बेटी और पार्टी की उपाध्यक्ष पल्लवी पटेल ने सिराथू विधानसभा सीट पर उत्तर प्रदेश सरकार के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को हराकर अपनी पार्टी का खाता खोलने में कामयाबी जरूर पाई. समाजवादी पार्टी के साथ कृष्णा पटेल की अपना दल (कमेरावादी) ने चुनाव लड़ा था. गठबंधन में कुल आधा दर्जन सीटें मिली थीं जिनमें से पल्लवी पटेल के रूप में एक विधायक जीतने में पार्टी कामयाब हुई. पार्टी का साल 2022 में खाता खुल गया. कुल मिलाकर यह साल अपना दल (कमेरावादी) के लिए भी शुभ साबित हुआ.

अपना दल (सोनेलाल पटेल) ग्रुप की बल्ले-बल्ले.
अपना दल (सोनेलाल पटेल) ग्रुप की बल्ले-बल्ले.

राष्ट्रीय लोक दल की भी निकल पड़ी लॉटरी : उत्तर प्रदेश में साल 2022 के विधानसभा चुनाव में जहां अनुप्रिया पटेल की अपना दल (सोनेलाल) को बेहतरीन कामयाबी मिली, वहीं दूसरी पार्टी के रूप में जयंत चौधरी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय लोक दल भी शून्य से शिखर पर पहुंचने में कामयाब हुई. उत्तर प्रदेश में इस बार जयंत चौधरी ने समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के साथ गठबंधन किया. 33 विधानसभा सीटों पर उन्होंने अपने प्रत्याशी उतारे. जिनमें से आठ विधायक जीतने में कामयाब हुए. इसका नतीजा ये हुआ कि रसातल में समा रही राष्ट्रीय लोक दल को संजीवनी मिल (Rashtriya Lok Dal got lifeline) गई. आठ विधायक सदन के अंदर पहुंचे. अखिलेश और जयंत की जोड़ी के संबंध और मजबूत हुए. इसका नतीजा ये हुआ कि इसी साल अखिलेश के समर्थन से राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष चौधरी जयंत सिंह राज्यसभा सांसद भी बन गए. इतना ही नहीं साल जाते-जाते दिसंबर माह में ही खतौली विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुआ और यहां भी राष्ट्रीय लोकदल ने समाजवादी पार्टी के सहयोग से बाजी मार ली. भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी को हराकर राष्ट्रीय लोकदल के उम्मीदवार मदन भैया ने पार्टी के खाते में जाते साल एक और सीट का इजाफा कर दिया. अब नौ सीटों के साथ राष्ट्रीय लोक दल दहाई के अंक में पहुंचने के लिए अगली बार कोशिश में जुटेगी. कुल मिलाकर साल 2022 में राष्ट्रीय लोक दल की भी लॉटरी निकल पड़ी.

सुभासपा को कुछ नुकसान, कुछ नफा ः सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष (National President of Suheldev Bharatiya Samaj Party) ने साल 2017 में जहां भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था और आठ में से चार सीटें जीतने में कामयाबी हासिल की थी. वहीं साल 2022 में ओमप्रकाश राजभर ने अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में जाने का फैसला लिया. 2022 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश ने गठबंधन में राजभर को 18 सीटें दीं. पार्टी को जहां 2017 में गठबंधन में कुल आठ सीटें मिली थीं उनमें 10 का इजाफा हुआ. 18 सीटों पर प्रत्याशी उतारने का मौका मिला, लेकिन दूसरी तरफ जहां 2017 में आठ में से चार विधायक जीतने में कामयाबी मिली, वहीं इस बार 18 में से छह विधायक जीतने में कामयाब हुए. ऐसे में पार्टी के विधायकों की संख्या तो बढ़ी, लेकिन जीतने का प्रतिशत कम जरूर हो गया. कुल मिलाकर कहें तो पार्टी के 2022 में चार से बढ़कर छह विधायक हो गए हैं. ऐसे में पार्टी को कुछ न कुछ नफा जरूर हुआ है. हालांकि साल 2017 में चार विधायक जीतने के बाद भी योगी सरकार में ओमप्रकाश राजभर कैबिनेट मंत्री थे. उनकी पार्टी के अन्य विधायकों को भी मंत्रिमंडल में जगह मिली थी,।लेकिन इस बार आधा दर्जन विधायक जीत कर भी वह खाली हाथ हैं. इतना ही नहीं चुनाव खत्म होने के बाद उनकी अखिलेश से अनबन भी हो चुकी है और अब सुभासपा और सपा साथ नहीं हैं. पार्टी के लिहाज से बात करें तो साल 2022 विधायकों की संख्या की दृष्टि से नफा और सरकार में शामिल न हो पाने के चलते नुकसान वाला साबित हुआ है.

कांग्रेस, बसपा की हालत और हुई खस्ता.
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खत्म हो गई प्रसपा (Progressive Samajwadi Party is over) : शिवपाल सिंह यादव ने साल 2018 में समाजवादी पार्टी से अलग होकर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) की स्थापना की थी. शिवपाल के इस कदम से परिवार में बिखराव हो गया था. हालांकि मुलायम सिंह यादव लगातार अखिलेश और शिवपाल के बीच पुल का काम करते रहे, लेकिन इसी साल मुलायम सिंह का देहांत हो गया. अंदाजा लगाया जा रहा था कि अब अखिलेश और शिवपाल कभी एक नहीं हो पाएंगे, लेकिन इसी बीच करिश्मा हो गया. मैनपुरी लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में बहू डिंपल यादव ने चाचा का समर्थन मांगा और चाचा शिवपाल सहर्ष तैयार हो गए. इसके बाद जो हुआ उसकी किसी को इतनी जल्दी उम्मीद भी नहीं थी. शिवपाल और अखिलेश की आपसी लड़ाई पूरी तरह से खत्म हो गई. इसी साल परिवार की लड़ाई खत्म हो गई और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी भी समाजवादी पार्टी में विलय होकर खत्म हो गई अब यह परिवार एक हो गया और पार्टी भी एक ही हो गई. प्रगतिशील समाजवादी पार्टी की स्थापना जिस उद्देश्य के लिए शिवपाल ने की थी उसका कभी सदुपयोग हुआ. न इस पार्टी से शिवपाल और न ही कभी उनका कोई नेता या कार्यकर्ता चुनाव लड़ पाया.

कांग्रेस, बसपा की हालत और हुई खस्ता (Congress BSPs condition in up) : साल 2022 कांग्रेस पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के लिहांज से बेहद खराब माना जा सकता है. कांग्रेस की जहां साल 2017 में सात सीटें आई थीं, वहीं 2022 के विधानसभा चुनाव में पांच सीटें घटकर कुल दो सीटें ही रह गईं. पार्टी को बड़ा नुकसान हुआ है. बात बहुजन समाज पार्टी की करें तो पार्टी की मुखिया मायावती ने बड़ी उम्मीद लगाई थी कि 2022 में वे किंगमेकर साबित होंगी, लेकिन उनका सपना चकनाचूर हो गया. पार्टी अपने सबसे बुरे दौर में जा पहुंची. सिर्फ एक ही विधायक जीत पाने में कामयाब हुआ. बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस पार्टी के बाद सिर्फ कम्युनिस्ट पार्टियां (communist parties) ही ऐसी हैं जो लड़कर भी कुछ नहीं कर पातीं. उनका खाता भी नहीं खुलता. यह साल कांग्रेस, बसपा और वामपंथी दलों के लिए कुछ ज्यादा ही बदतर साबित हुआ है.

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