लखनऊ : भाजपा सांसद वरुण गांधी (BJP MP Varun Gandhi) इन दिनों से चर्चा में हैं. उन्होंने बागी तेवर अपनाए हुए हैं और वह सार्वजनिक तौर पर भारतीय जनता पार्टी की आलोचना करने से जरा भी परहेज नहीं करते. शायद वरुण गांधी को बागी तेवर अपनाने के लिए इसलिए मजबूर होना पड़ा, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी में उनकी अपेक्षाएं पूरी नहीं हो पा रही थीं. अब कयास लगाए जा रहे हैं कि एक साल बाद 2024 में जब लोकसभा के चुनाव होंगे, तो वरुण गांधी का ठिकाना कौन सा दल होगा? अतीत में ऐसे संकेत मिलते रहे हैं कि वरुण गांधी कांग्रेस पार्टी में शामिल होकर गांधी परिवार की परंपरा को आगे बढ़ाने का काम कर सकते हैं. पिछले वर्षों में प्रियंका गांधी और राहुल गांधी (Priyanka Gandhi and Rahul Gandhi) की ओर से ऐसे संकेत मिल चुके हैं. वरुण गांधी भी कभी अपने परिवार यानी सोनिया, राहुल व प्रियंका गांधी के खिलाफ मुखर नहीं हुए हैं. हाल ही में उत्तर प्रदेश कांग्रेस ने वरुण गांधी को राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' में शामिल होने का न्योता दिया. कयास लगाए जा रहे हैं कि वरुण इस यात्रा में शामिल हो सकते हैं. उत्तर प्रदेश में यह यात्रा तीन जनवरी को गाजियाबाद के लोनी से उत्तर प्रदेश में प्रवेश करेगी और पांच जनवरी को शामली जिले के कैराना क्षेत्र में आखरी पड़ा होगा.
![भाजपा सांसद वरुण गांधी की राजनीति.](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/17329418_thumbnail-3x2-asup4.png)
गौरतलब है कि वरुण गांधी 2004 में भाजपा में शामिल हुए थे और 2013 में भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने राष्ट्रीय महासचिव बनाया था. वह राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य बने. 2014 में भाजपा ने उन्हें सुल्तानपुर संसदीय सीट (Sultanpur parliamentary seat) से चुनाव मैदान में उतारा और मोदी लहर में वह जीत कर भी आए. इससे पहले उनकी मां मेनका गांधी इसी सीट से सांसद थीं. वरुण के लिए यह सीट छोड़कर उन्होंने पीलीभीत से चुनाव लड़ा और जीतकर संसद पहुंचीं. हालांकि अपने पांच वर्ष के कार्यकाल में वरुण अपनी साख बरकरार नहीं रख सके. सुल्तानपुर में न तो वह कोई बड़ा उल्लेखनीय काम करा पाए और न ही जनता का दिल जीतने में कामयाब हुए. हां, उनके कार्यकाल के दौरान कुछ ऐसी घटनाएं जरूर हुईं, जिनके कारण वरुण की छवि खराब हुई और वह विवादों में भी रहे. यही कारण है कि भाजपा ने बिना कोई जोखिम लिए 2019 के लोकसभा चुनावों में वरुण को सुल्तानपुर के स्थान पर पीलीभीत से चुनाव मैदान में उतारा, जबकि उनकी मां मेनका गांधी दोबारा सुल्तानपुर से चुनाव मैदान में उतरीं. 2014 मैं जब नरेंद्र मोदी पहली बार प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने अपने मंत्रिमंडल में मेनका गांधी को स्थान दिया. इसी दौरान अमित शाह भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष बने, तो उन्होंने वरुण गांधी को पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव पद से हटा दिया. हालांकि 2019 में जब नरेंद्र मोदी दोबारा प्रधानमंत्री बने तो मेनका गांधी को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिल पाई.
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माना जाता है कि गांधी पार्टी की अगुवाई वाली कांग्रेस पार्टी को कमजोर करने के लिए ही भाजपा लगातार मेनका गांधी और फिर वरुण गांधी को पार्टी में महत्व देती रही, लेकिन अब जब कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश में खुद ही हादसे पर है, तो भाजपा को लगता है कि उसे वरुण और मेनका की खास जरूरत नहीं है. स्वाभाविक है कि राजनीति में पद और अहमियत जरूरत के हिसाब से ही मिलती है. यही कारण है कि अक्टूबर 2021 में मेनका गांधी और वरुण दोनों भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से बाहर हुए. इसके बाद वरुण गांधी लगातार भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ मुखर होते चले गए. उन्होंने किसान आंदोलन के दौरान भाजपा की नीतियों की आलोचना करने में कोई गुरेज नहीं की. लखीमपुर में केंद्रीय मंत्री अजय मिश्र टेनी (Union Minister Ajay Mishra Teni in Lakhimpur) के पुत्र पर लगे आरोप पर भी वह भाजपा के खिलाफ बागी तेवर दिखाते रहे और अपने बयानों से भाजपा का दिल दुखाते रहे. मुजफ्फरनगर में हुई किसान पंचायत को लेकर भी भाजपा विरोधी बयान देने में वरुण गांधी ने कोई देरी नहीं की.
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एक तरह से देखा जाए वरुण गांधी की यह नाराजगी बेजा भी नहीं है. वर्ष 2024 में जब लोकसभा चुनाव हो रहे होंगे, तब वरुण गांधी भाजपा में अपने 20 साल पूरे कर चुके होंगे. यह लंबा वक्त है और किसी महत्वाकांक्षी राजनेता के लिए निश्चितरूप से आत्मावलोकन काफी समय है. वरुण गांधी युवा हैं. उनकी छवि पिता संजय गांधी की तरह तेजतर्रार नेता वाली है. उन्होंने विदेश से पढ़ाई की है और लगातार जीतकर संसद पहुंच रहे हैं. ऐसे में उनकी अपेक्षा रही होगी कि उन्हें सरकार अथवा संगठन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने का अवसर मिले. हालांकि मोदी और शाह की नई भाजपा में उन्हें वह स्थान नहीं मिल पाया, बल्कि उन्हें संगठन में मिला पद गंवाना पड़ा और राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्यता भी जाती रही. ऐसे में जब उन्हें पार्टी में अपना कोई भविष्य नहीं दिखाई दे रहा, नई राह चुनाव कोई चौंकाने वाली बात नहीं होगी. अब यह देखने वाली बात होगी कि आगामी कुछ महीनों में उनके कदम क्या होंगे. इसी से उनका राजनीतिक भविष्य (Political future of Varun Gandhi) भी तय होगा. वहीं राजनीतिक विश्लेषक उमाशंकर दुबे का कहना है कि भले ही वरुण गांधी ने औपचारिक रूप से भाजपा छोड़ने या कांग्रेस में जाने की घोषणा नहीं की है, लेकिन राजनीतिक समीक्षाओं में यह सवाल उठते रहे हैं. राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं होता. वर्तमान में जिस तरह के मतभेद भारतीय जनता पार्टी और वरुण गांधी के बीच देखने को मिल रहे हैं. संभव है वे भविष्य में अपने परिवार और कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं.
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