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क्या है ब्लॉक प्रमुख के चुनाव का पॉलिटिकल एंड पावर गेम

जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव सम्पन्न होने के साथ ही ब्लॉक प्रमुख के चुनाव में ताल ठोकी जा रही है. राजनीतिक दल ब्लॉक प्रमुख का चुनाव जीतकर हर गांव में अपनी पहुंच मजबूत करना चाह रहे हैं. जिस दल का ब्लॉक प्रमुख चुना जाएगा, उस पार्टी की गांव में चर्चा होगी. उसके पक्ष में माहौल बनेगा. इस चुनाव में जिस दल को सकारात्मक माहौल बनाने में सफलता मिलेगी इसका लाभ उसे आगामी विधानसभा चुनाव में मिल सकता है.

ब्लॉक प्रमुख के चुनाव का पॉलिटिकल एंड पावर गेम
ब्लॉक प्रमुख के चुनाव का पॉलिटिकल एंड पावर गेम
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Published : Jul 7, 2021, 6:53 PM IST

Updated : Jul 7, 2021, 7:32 PM IST

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव का अंतिम चरण चल रहा है. जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव सम्पन्न होने के साथ ही ब्लॉक प्रमुख के चुनाव में ताल ठोकी जा रही है. इस समय ब्लॉक प्रमुख के चुनाव पर प्रदेश की राजधानी से लेकर गांव तक चर्चा हो रही है. राजनीतिक दल इस कसरत में पूरी शिद्दत से भागीदारी कर रहे हैं. वह भी इसलिए क्योंकि इस चुनाव के माध्यम से पार्टी राज्य के प्रत्येक गांव तक अपनी पहुंच मजबूत करना चाह रही है.

ब्लॉक प्रमुख के चुनाव का पॉलिटिकल एंड पावर गेम
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प्रदेश के 825 ब्लॉकों में हो रहा प्रमुख का चुनाव

उत्तर प्रदेश में 826 ब्लॉक हैं. इनमें से गोंडा के एक मुजेहना विकास खंड में चुनाव नहीं हो रहा है. बाकी सभी 825 ब्लॉकों में प्रमुख का चुनाव हो रहा है. बुधवार से नामांकन के लिए पर्चे खरीदे जा रहे हैं. प्रमुख के चुनाव के महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पर्चा खरीदने में ही जिलों से बवाल की खबरें सामने आ रहीं हैं.

ब्लॉक प्रमुख के चुनाव का पॉलिटिकल एंड पावर गेम
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राजनीतिक दल ब्लॉक प्रमुख का चुनाव जीतकर हर गांव में अपनी पहुंच मजबूत करना चाह रहे हैं. दरअसल ब्लॉक प्रमुख (क्षेत्र पंचायत अध्यक्ष) का चुनाव क्षेत्र पंचायत सदस्य (बीडीसी) करते हैं. बीडीसी को जनता चुनती है. ऐसे में जीत का हर गांव में संदेश जाएगा. जिस दल का ब्लॉक प्रमुख चुना जाएगा, उस पार्टी की हर गांव में चर्चा होगी. उसके पक्ष में माहौल बनेगा. यह चुनाव बजट को ध्यान में रखकर नहीं बल्कि प्रतिष्ठा के लिए लड़ा जाता है.

ब्लॉक प्रमुख के चुनाव का पॉलिटिकल एंड पावर गेम
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पिछली बार सपा ने 623 ब्लॉक प्रमुख जिताने का किया था दावा

पिछली बार 2015 के पंचायत चुनाव में तत्कालीन सत्ताधारी दल समाजवादी पार्टी ने 826 में से 623 ब्लॉक प्रमुख जिताने का दावा किया था. इस बार भी सपा लगभग सभी जिलों में मजबूती से भाजपा का सामना कर रही है. जिला पंचायत हो या ब्लॉक प्रमुख के चुनाव, दोनों में ही सपा भाजपा के बीच ही लड़ाई दिख रही है. भाजपा ने जिस प्रकार से जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में जीत दर्ज की है, उसी तरह से ब्लॉक प्रमुख जिताने के लिए मजबूत रणनीति की तैयारी है. यूपी बीजेपी पंचायत प्रभारी जेपीएस राठौर कहते हैं कि लोकतांत्रिक तरीके से हमने चुनाव में जाने की तैयारी की है. मुझे पूरा भरोसा है कि जिला पंचायत की तरह ब्लॉक प्रमुख के चुनाव में भी पार्टी को अपार समर्थन मिलेगा. प्रदेश के ज्यादातर ब्लॉकों में भाजपा के उम्मीदवार जीतकर आएंगे.

ब्लॉक प्रमुख के चुनाव का पॉलिटिकल एंड पावर गेम
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राजनीतिक विश्लेषक विजय उपाध्याय कहते हैं कि इस तरह के चुनाव सत्ता के होते हैं. हर कोई जानता है कि सत्ताधारी दल के साथ रहने से उनके कार्य करने में कोई अड़चन नहीं आएगी. जिला पंचायत के चुनाव में यह दिखा है. भाजपा और सपा के करीब बराबर जिला पंचायत सदस्य जीतकर आए थे. जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में भाजपा ने 75 में से 67 पर जीत दर्ज की. इसी प्रकार ब्लॉक प्रमुख के चुनाव परिणाम आने वाले हैं. वह चौंकाने वाले नहीं होंगे.



भाजपा ने बदली रणनीति

जिला पंचायत का चुनाव जीतने के बाद भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं में उत्साह बढ़ा है. भाजपा इस चुनाव में भी पूरी ताकत के साथ उतरी है. पार्टी ने रणनीति में बदलाव किया है. जिला पंचायत के चुनाव में जनप्रतिनिधियों के परिजनों, करीबियों को टिकट नहीं दिया था. ब्लॉक प्रमुख के चुनाव पार्टी ने जनप्रतिनिधियों को छूट दी है. उनके परिजनों या फिर करीबियों को टिकट दिया गया है. पार्टी के जानकर बताते हैं कि भाजपा ने यह निर्णय नाराजगी दूर करने के लिए लिया है. दूसरी तरफ जिला पंचायत चुनाव में भाजपा से करारी शिकस्त खा चुका मुख्य विपक्षी दल सपा हतोत्साहित दिख रहा है. राजनीतिक विश्लेषक विजय उपाध्याय कहते हैं कि सपा के लोग यह मानकर चल रहे हैं कि भाजपा सरकार में उनके ब्लॉक प्रमुख भी नहीं बन पाएंगे.

ब्लॉक प्रमुख के चुनाव का पॉलिटिकल एंड पावर गेम
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सपा, कांग्रेस और रालोद की क्या है रणनीति



समाजवादी पार्टी भले ही इस चुनाव को सत्ताधारी दल के खाते में मान रही हो लेकिन वह हर ब्लॉक में भाजपा के साथ मजबूती से लड़ रही है. समाजवादी पार्टी ही विपक्षी दलों में इकलौता ऐसा दल है जो भाजपा को हर मोर्चे पर टक्कर दे रही है. इन्हीं दोनों दलों के कार्यकर्ताओं के बीच संघर्ष की बातें भी सामने आ रही हैं. अगर सत्ताधारी दल के उम्मीदवार क्षेत्र पंचायत सदस्यों को लुभा रहे हैं, तो समाजवादी पार्टी भी इसमें पीछे नहीं है. गोंडा जिले के रुपईडीह ब्लॉक में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के क्षेत्र पंचायत सदस्यों को एक होटल में बुलाकर मीटिंग करने की बात सामने आ चुकी है. कांग्रेस पार्टी प्रदेश में कुछ सीटों पर लड़ाई लड़ते दिख रही है. जिन जिलों में स्थानीय स्तर पर कांग्रेस के नेता मजबूत हैं, वह अपने उम्मीदवारों को लड़ा रहे हैं. राष्ट्रीय लोक दल पश्चिम उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में अपने उम्मीदवार उतार कर चुनाव मैदान में दिख रहा है. जिला पंचायत के चुनाव में राष्ट्रीय लोक दल को एक सीट जीतने में सफलता मिली थी. बहुजन समाज पार्टी इस पावर गेम से खुद को पहले से ही बाहर कर रखा है. जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव नहीं लड़ने का निर्णय बसपा ने लिया था और ब्लॉक प्रमुख के चुनाव में भी करीब उसी राह पर पार्टी चल रही है.

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव का अंतिम चरण चल रहा है. जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव सम्पन्न होने के साथ ही ब्लॉक प्रमुख के चुनाव में ताल ठोकी जा रही है. इस समय ब्लॉक प्रमुख के चुनाव पर प्रदेश की राजधानी से लेकर गांव तक चर्चा हो रही है. राजनीतिक दल इस कसरत में पूरी शिद्दत से भागीदारी कर रहे हैं. वह भी इसलिए क्योंकि इस चुनाव के माध्यम से पार्टी राज्य के प्रत्येक गांव तक अपनी पहुंच मजबूत करना चाह रही है.

ब्लॉक प्रमुख के चुनाव का पॉलिटिकल एंड पावर गेम
ब्लॉक प्रमुख के चुनाव का पॉलिटिकल एंड पावर गेम

प्रदेश के 825 ब्लॉकों में हो रहा प्रमुख का चुनाव

उत्तर प्रदेश में 826 ब्लॉक हैं. इनमें से गोंडा के एक मुजेहना विकास खंड में चुनाव नहीं हो रहा है. बाकी सभी 825 ब्लॉकों में प्रमुख का चुनाव हो रहा है. बुधवार से नामांकन के लिए पर्चे खरीदे जा रहे हैं. प्रमुख के चुनाव के महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पर्चा खरीदने में ही जिलों से बवाल की खबरें सामने आ रहीं हैं.

ब्लॉक प्रमुख के चुनाव का पॉलिटिकल एंड पावर गेम
ब्लॉक प्रमुख के चुनाव का पॉलिटिकल एंड पावर गेम

राजनीतिक दल ब्लॉक प्रमुख का चुनाव जीतकर हर गांव में अपनी पहुंच मजबूत करना चाह रहे हैं. दरअसल ब्लॉक प्रमुख (क्षेत्र पंचायत अध्यक्ष) का चुनाव क्षेत्र पंचायत सदस्य (बीडीसी) करते हैं. बीडीसी को जनता चुनती है. ऐसे में जीत का हर गांव में संदेश जाएगा. जिस दल का ब्लॉक प्रमुख चुना जाएगा, उस पार्टी की हर गांव में चर्चा होगी. उसके पक्ष में माहौल बनेगा. यह चुनाव बजट को ध्यान में रखकर नहीं बल्कि प्रतिष्ठा के लिए लड़ा जाता है.

ब्लॉक प्रमुख के चुनाव का पॉलिटिकल एंड पावर गेम
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पिछली बार सपा ने 623 ब्लॉक प्रमुख जिताने का किया था दावा

पिछली बार 2015 के पंचायत चुनाव में तत्कालीन सत्ताधारी दल समाजवादी पार्टी ने 826 में से 623 ब्लॉक प्रमुख जिताने का दावा किया था. इस बार भी सपा लगभग सभी जिलों में मजबूती से भाजपा का सामना कर रही है. जिला पंचायत हो या ब्लॉक प्रमुख के चुनाव, दोनों में ही सपा भाजपा के बीच ही लड़ाई दिख रही है. भाजपा ने जिस प्रकार से जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में जीत दर्ज की है, उसी तरह से ब्लॉक प्रमुख जिताने के लिए मजबूत रणनीति की तैयारी है. यूपी बीजेपी पंचायत प्रभारी जेपीएस राठौर कहते हैं कि लोकतांत्रिक तरीके से हमने चुनाव में जाने की तैयारी की है. मुझे पूरा भरोसा है कि जिला पंचायत की तरह ब्लॉक प्रमुख के चुनाव में भी पार्टी को अपार समर्थन मिलेगा. प्रदेश के ज्यादातर ब्लॉकों में भाजपा के उम्मीदवार जीतकर आएंगे.

ब्लॉक प्रमुख के चुनाव का पॉलिटिकल एंड पावर गेम
ब्लॉक प्रमुख के चुनाव का पॉलिटिकल एंड पावर गेम

राजनीतिक विश्लेषक विजय उपाध्याय कहते हैं कि इस तरह के चुनाव सत्ता के होते हैं. हर कोई जानता है कि सत्ताधारी दल के साथ रहने से उनके कार्य करने में कोई अड़चन नहीं आएगी. जिला पंचायत के चुनाव में यह दिखा है. भाजपा और सपा के करीब बराबर जिला पंचायत सदस्य जीतकर आए थे. जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में भाजपा ने 75 में से 67 पर जीत दर्ज की. इसी प्रकार ब्लॉक प्रमुख के चुनाव परिणाम आने वाले हैं. वह चौंकाने वाले नहीं होंगे.



भाजपा ने बदली रणनीति

जिला पंचायत का चुनाव जीतने के बाद भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं में उत्साह बढ़ा है. भाजपा इस चुनाव में भी पूरी ताकत के साथ उतरी है. पार्टी ने रणनीति में बदलाव किया है. जिला पंचायत के चुनाव में जनप्रतिनिधियों के परिजनों, करीबियों को टिकट नहीं दिया था. ब्लॉक प्रमुख के चुनाव पार्टी ने जनप्रतिनिधियों को छूट दी है. उनके परिजनों या फिर करीबियों को टिकट दिया गया है. पार्टी के जानकर बताते हैं कि भाजपा ने यह निर्णय नाराजगी दूर करने के लिए लिया है. दूसरी तरफ जिला पंचायत चुनाव में भाजपा से करारी शिकस्त खा चुका मुख्य विपक्षी दल सपा हतोत्साहित दिख रहा है. राजनीतिक विश्लेषक विजय उपाध्याय कहते हैं कि सपा के लोग यह मानकर चल रहे हैं कि भाजपा सरकार में उनके ब्लॉक प्रमुख भी नहीं बन पाएंगे.

ब्लॉक प्रमुख के चुनाव का पॉलिटिकल एंड पावर गेम
ब्लॉक प्रमुख के चुनाव का पॉलिटिकल एंड पावर गेम
सपा, कांग्रेस और रालोद की क्या है रणनीति



समाजवादी पार्टी भले ही इस चुनाव को सत्ताधारी दल के खाते में मान रही हो लेकिन वह हर ब्लॉक में भाजपा के साथ मजबूती से लड़ रही है. समाजवादी पार्टी ही विपक्षी दलों में इकलौता ऐसा दल है जो भाजपा को हर मोर्चे पर टक्कर दे रही है. इन्हीं दोनों दलों के कार्यकर्ताओं के बीच संघर्ष की बातें भी सामने आ रही हैं. अगर सत्ताधारी दल के उम्मीदवार क्षेत्र पंचायत सदस्यों को लुभा रहे हैं, तो समाजवादी पार्टी भी इसमें पीछे नहीं है. गोंडा जिले के रुपईडीह ब्लॉक में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के क्षेत्र पंचायत सदस्यों को एक होटल में बुलाकर मीटिंग करने की बात सामने आ चुकी है. कांग्रेस पार्टी प्रदेश में कुछ सीटों पर लड़ाई लड़ते दिख रही है. जिन जिलों में स्थानीय स्तर पर कांग्रेस के नेता मजबूत हैं, वह अपने उम्मीदवारों को लड़ा रहे हैं. राष्ट्रीय लोक दल पश्चिम उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में अपने उम्मीदवार उतार कर चुनाव मैदान में दिख रहा है. जिला पंचायत के चुनाव में राष्ट्रीय लोक दल को एक सीट जीतने में सफलता मिली थी. बहुजन समाज पार्टी इस पावर गेम से खुद को पहले से ही बाहर कर रखा है. जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव नहीं लड़ने का निर्णय बसपा ने लिया था और ब्लॉक प्रमुख के चुनाव में भी करीब उसी राह पर पार्टी चल रही है.

Last Updated : Jul 7, 2021, 7:32 PM IST
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