लखनऊ : उत्तर प्रदेश की आबोहवा काफी हद तक बिगड़ चुकी है. शिकागो यूनिवर्सिटी के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट की तरफ से जारी वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक (एक्यूएलआई) बताता है कि उत्तर प्रदेश में पीएम 2.5 यानी प्रदूषणकारी सूक्ष्म कणों की सघनता 96.4 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है. यह विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के वायु गुणवत्ता मानक पांच माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की तुलना में सैकड़ों गुना ज्यादा है. रिपोर्ट के मुताबिक, वायु प्रदूषण की वजह से गौतमबुद्धनगर में सबसे ज्यादा लोगों की उम्र करीब 11 साल घट रही है. दूसरे नंबर पर गाजियाबाद (10.65 वर्ष) और तीसरे नंबर पर मथुरा (10.15 वर्ष) है. उन्नाव, लखनऊ और कानपुर में भी 9 से 10 साल उम्र घट रही है, वहीं बरेली और प्रयागराज की हवा अपेक्षाकृत साफ है.
यूपी के बाद इन राज्यों का बुरा हाल : रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में वायु प्रदूषण के बाद अगला नंबर बिहार का है, जहां प्रदूषण लोगों की उम्र औसतन आठ साल घटा रहा है. राष्ट्रीय मानक के लिहाज से जीवन प्रत्याशा 4.5 साल कम है. वहीं, हरियाणा और पंजाब में प्रदूषण लोगों के उम्र के 8.3 और 6.4 साल छीन रहा है. उत्तराखंड में प्रदूषण उम्र औसतन 3.7 वर्ष घटा रहा है. इन राज्यों में प्रदूषण के कारण औसतन उम्र लोगों की काफी कम हो रही है. प्रदूषण के कारण कई बीमारियां फैलती हैं. बहुत से लोग सांस नहीं ले पाने के चलते अस्पताल में इलाज के लिए पहुंचते हैं. सबसे बड़ी समस्या दमा के मरीजों को होती है. प्रदूषण के कारण व्यक्ति के फेफड़ों तक को प्रभावित कर रहा है.
हिमाचल व कश्मीर अपेक्षाकृत बेहतर : रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ राज्यों का प्रदूषण स्थल काफी खराब है तो वहीं कुछ राज्यों का प्रदूषण स्तर ठीक है. हिमाचल और जम्मू-कश्मीर की स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर है, जहां प्रदूषण औसतन 3.0 और 2.5 वर्ष उम्र छीन रहा है. वहीं, लद्दाख में प्रदूषण का स्तर सबसे कम है. यह डब्ल्यूएचओ के मानक 5 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से करीब दोगुना (10.8) है. राष्ट्रीय औसत से आकलन करें तो यहां जीवन प्रत्याशा घटने की संभावना शून्य है.