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यूपी के इस भाषा विश्वविद्यालय में 1 साल में बदले गए चार कुलपति, जानिए कैसे बिगड़ रहे यहां के हालात

यूपी की राजधानी लखनऊ में स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय को 2020 के बाद से कोई स्थाई कुलपति नहीं मिल सका है. इस काल में यहां 4 कुलपति बदल दिए गए. लखनऊ विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष डॉक्टर विनीत वर्मा का कहना है कि इतने बड़े पद पर होने वाली नियुक्तियों में समय नहीं लगना चाहिए.

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ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय
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Published : Jan 26, 2022, 4:04 PM IST

लखनऊ: राजधानी लखनऊ में स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश का एकमात्र ऐसा राज्य विश्वविद्यालय है जहां भाषाओं के अध्ययन पर जोड़ दिया जाता है. लेकिन अब इस विश्वविद्यालय को एक स्थाई कुलपति नहीं मिल पा रहा है. बीते 1 साल में यहां 4-4 कुलपति बदले गए है.जानकारों की मानें तो इसका सीधा असर विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली पर पड़ रहा है. सामान्य कामकाज तक प्रभावित है. अभी तक विश्वविद्यालय में पिछला दीक्षांत समारोह नहीं हो पाया है.

अक्टूबर 2020 से खराब है स्थिति

ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर माहरुख मिर्जा का कार्यकाल अक्टूबर 2020 में पूरा हो गया था. उसके बाद से ही विश्वविद्यालय एकेडमिक रूप से नेतृत्वविहीन सा हो गया है. प्रोफेसर माहरुख मिर्जा का कार्यकाल पूरा होने के बाद विश्वविद्यालय के अरबी भाषा विभाग के प्रोफेसर मसऊद आलम को 1 माह के लिए कुलपति पद की जिम्मेदारी सौंपी गई. दिसंबर 2020 में इस विश्वविद्यालय के कुलपति की जिम्मेदारी डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति प्रोफेसर विनय कुमार पाठक को दे दी गई. यह अतिरिक्त कार्यभार था.

जानकारी देते लखनऊ विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष डॉक्टर विनीत वर्मा.

इस दौरान प्रोफेसर पाठक ने विश्वविद्यालय में काफी बदलाव किए. अरबी-फारसी के साथ संस्कृत और दूसरी भाषाओं के अध्ययन के लिए यहां केंद्र स्थापित किए जाने की घोषणाएं की गई. काफी हद तक इसको लेकर तैयारियां भी कर ली गईं थीं. इसी बीच, अप्रैल 2021 में लखनऊ विश्वविद्यालय के शिक्षा शास्त्र विभाग के प्रोफेसर अनिल शुक्ला को कुलपति पद की जिम्मेदारी दे दी गई. यह 3 साल के लिए स्थाई जिम्मेदारी थी. प्रोफेसर अनिल शुक्ला ने यहां कामकाज शुरू किया, लेकिन उन्हें भी यह विश्वविद्यालय ज्यादा रास नहीं आया. वह अच्छे मौके की तलाश में बैठे थे. अक्टूबर-नवंबर 2021 में प्रोफेसर अनिल शुक्ला को महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय अजमेर के कुलपति बनने का मौका मिला. वह चले गए.

पद खाली होने के बाद 18 नवंबर के आसपास प्रोफेसर विनय कुमार पाठक को एक बार फिर भाषा विश्वविद्यालय के कुलपति पद का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया है. इस समय तक डॉ एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय में उनका कार्यकाल पूरा हो गया था. वर्तमान में उनके पास कानपुर के छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय के कुलपति पद की जिम्मेदारी है.

इसके दो-तीन महीने के बाद ही जनवरी में लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर आलोक कुमार राय को इस विश्वविद्यालय के कुलपति पद का अतिरिक्त कार्यभार सौंप दिया गया है. वर्तमान में वे इस जिम्मेदारी को निभा रहे हैं.


सामान्य कामकाज तक होते हैं प्रभावित

लखनऊ विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष डॉक्टर विनीत वर्मा का कहना है कि कुलपति किसी भी विश्वविद्यालय का एकेडमिक मुखिया होता है. अतिरिक्त कार्यभार किसी भी व्यक्ति के लिए एक अतिरिक्त जिम्मेदारी होती है. कुलपति का पद एक सम्मानित और बहुत बड़ा पद है. कुलपति के पास समाज को एक दिशा देने की शक्ति होती है. इतने महत्वपूर्ण पद के खाली होने से न केवल विश्वविद्यालय का सामान्य कार्य प्रभावित होता है बल्कि वह दिशा विहीन जैसा हो जाता है. कम से कम इतने बड़े पद पर होने वाली नियुक्तियों में समय नहीं लगना चाहिए.

इसे भी पढ़ें- LU: एलबीएस हॉस्टल में 20 छात्र कोरोना संक्रमित, महमूदाबाद में 3 और हबीबुल्ला में 13 की पुष्टि

लखनऊ: राजधानी लखनऊ में स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश का एकमात्र ऐसा राज्य विश्वविद्यालय है जहां भाषाओं के अध्ययन पर जोड़ दिया जाता है. लेकिन अब इस विश्वविद्यालय को एक स्थाई कुलपति नहीं मिल पा रहा है. बीते 1 साल में यहां 4-4 कुलपति बदले गए है.जानकारों की मानें तो इसका सीधा असर विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली पर पड़ रहा है. सामान्य कामकाज तक प्रभावित है. अभी तक विश्वविद्यालय में पिछला दीक्षांत समारोह नहीं हो पाया है.

अक्टूबर 2020 से खराब है स्थिति

ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर माहरुख मिर्जा का कार्यकाल अक्टूबर 2020 में पूरा हो गया था. उसके बाद से ही विश्वविद्यालय एकेडमिक रूप से नेतृत्वविहीन सा हो गया है. प्रोफेसर माहरुख मिर्जा का कार्यकाल पूरा होने के बाद विश्वविद्यालय के अरबी भाषा विभाग के प्रोफेसर मसऊद आलम को 1 माह के लिए कुलपति पद की जिम्मेदारी सौंपी गई. दिसंबर 2020 में इस विश्वविद्यालय के कुलपति की जिम्मेदारी डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति प्रोफेसर विनय कुमार पाठक को दे दी गई. यह अतिरिक्त कार्यभार था.

जानकारी देते लखनऊ विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष डॉक्टर विनीत वर्मा.

इस दौरान प्रोफेसर पाठक ने विश्वविद्यालय में काफी बदलाव किए. अरबी-फारसी के साथ संस्कृत और दूसरी भाषाओं के अध्ययन के लिए यहां केंद्र स्थापित किए जाने की घोषणाएं की गई. काफी हद तक इसको लेकर तैयारियां भी कर ली गईं थीं. इसी बीच, अप्रैल 2021 में लखनऊ विश्वविद्यालय के शिक्षा शास्त्र विभाग के प्रोफेसर अनिल शुक्ला को कुलपति पद की जिम्मेदारी दे दी गई. यह 3 साल के लिए स्थाई जिम्मेदारी थी. प्रोफेसर अनिल शुक्ला ने यहां कामकाज शुरू किया, लेकिन उन्हें भी यह विश्वविद्यालय ज्यादा रास नहीं आया. वह अच्छे मौके की तलाश में बैठे थे. अक्टूबर-नवंबर 2021 में प्रोफेसर अनिल शुक्ला को महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय अजमेर के कुलपति बनने का मौका मिला. वह चले गए.

पद खाली होने के बाद 18 नवंबर के आसपास प्रोफेसर विनय कुमार पाठक को एक बार फिर भाषा विश्वविद्यालय के कुलपति पद का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया है. इस समय तक डॉ एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय में उनका कार्यकाल पूरा हो गया था. वर्तमान में उनके पास कानपुर के छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय के कुलपति पद की जिम्मेदारी है.

इसके दो-तीन महीने के बाद ही जनवरी में लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर आलोक कुमार राय को इस विश्वविद्यालय के कुलपति पद का अतिरिक्त कार्यभार सौंप दिया गया है. वर्तमान में वे इस जिम्मेदारी को निभा रहे हैं.


सामान्य कामकाज तक होते हैं प्रभावित

लखनऊ विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष डॉक्टर विनीत वर्मा का कहना है कि कुलपति किसी भी विश्वविद्यालय का एकेडमिक मुखिया होता है. अतिरिक्त कार्यभार किसी भी व्यक्ति के लिए एक अतिरिक्त जिम्मेदारी होती है. कुलपति का पद एक सम्मानित और बहुत बड़ा पद है. कुलपति के पास समाज को एक दिशा देने की शक्ति होती है. इतने महत्वपूर्ण पद के खाली होने से न केवल विश्वविद्यालय का सामान्य कार्य प्रभावित होता है बल्कि वह दिशा विहीन जैसा हो जाता है. कम से कम इतने बड़े पद पर होने वाली नियुक्तियों में समय नहीं लगना चाहिए.

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