ETV Bharat / state

अवैध कॉलोनियों के नाम पर सरकार की दोहरी नीति के दलदल में फंसते लोग

प्रदेश के सभी बड़े शहरों में प्राधिकरण के अभियंताओं की मिलीभगत से धड़ल्ले से अवैध प्लाॅटिंग हो रही हैं. राजधानी लखनऊ में साढ़े छह सौ से ज्यादा अवैध कॉलोनियां (illegal colonies in UP) हैं. सरकार को इस विषय के निराकरण के लिए कुछ सोचना होगा. पढ़ें यूपी के ब्यूरो चीफ आलोक त्रिपाठी का विश्लेषण...

Etv Bharat
Etv Bharat
author img

By

Published : Nov 11, 2022, 8:39 PM IST

लखनऊ : प्रदेश सरकार की दोहरी नीति से सूबे के बड़े शहरों में अनियोजित विकास को बढ़ावा मिल रहा है. यह मुद्दा दशकों से उठता रहा है. सरकारें संज्ञान भी लेती हैं लेकिन करती कुछ भी नहीं हैं. राजधानी लखनऊ ही नहीं प्रदेश के सभी बड़े शहरों में प्राधिकरण के अभियंताओं की मिलीभगत से धड़ल्ले से ऐसी अवैध प्लाॅटिंग हो रही हैं. जब ऊपर से सख्ती होती है तो प्रॉपर्टी डीलर्स पर दबाव बनाया जाता है. इससे भ्रष्टाचार का तो जन्म होता है और भूखंडों की कीमतें भी बढ़ती हैं. स्वाभाविक है कि इसकी भरपाई आम आदमी से ही होती है, जो किसी तरह अपना घरौंदा बनाना चाहता है. यदि सरकार चाहे तो इन नव विकसित क्षेत्रों में भूखंडों की रजिस्ट्री पर रोक लगा सकती है. इससे यह पूरा व्यवसाय ही बंद हो जाएगा और अवैध या अनियोजित कॉलोनियां (illegal colonies in UP) बनेंगी ही नहीं, लेकिन रजिस्ट्री से होने वाली भारी-भरकम कमाई का मोह सरकार त्याग नहीं पाती. नतीजतन यह खेल यूं ही जारी रहता है.


गौरतलब है कि अवैध कॉलोनी उन्हें माना जाता है, जहां विकास प्राधिकरणों से बिना डेवलपमेंट प्लान पास कराए प्लानिंग की जाती है और प्राधिकरण द्वारा तय मानक के अनुसार ड्रेनेज सिस्टम, सड़कें, पार्क, सीवर और अन्य सुविधाएं नहीं होतीं. उत्तर प्रदेश के विभिन्न विकास प्राधिकरण क्षेत्रों में दो हजार से ज्यादा अनाधिकृत कॉलोनियां (illegal colonies in UP) चिह्नित की गईं हैं. इन कॉलोनियों को नियमित किए जाने के लिए भी मानक बनाए गए हैं, लेकिन वह इतने कठिन हैं कि ऐसी कॉलोनियां इन्हें पूरा नहीं कर पातीं. यह भी सही है कि लाखों निजी आवास जो इन कॉलोनियों में बन गए हैं, उन्हें गिराने की किसी भी सरकार में ताब नहीं हैं. यदि मंशा अच्छी हो तो नई अनियोजित कॉलोनियों को बसने से रोका जा सकता है, लेकिन सरकार और प्राधिकरण इसे लेकर भी गंभीर नहीं हैं. दरअसल, प्रॉपर्टी के काम में अथाह धन है. करोड़ों रुपये कमाने वाले प्रापर्टी डीलर और बिल्डर 'प्राधिकरण तंत्र' को खुश कर ही लेते हैं. राजधानी लखनऊ में साढ़े छह सौ से ज्यादा अवैध कॉलोनियां हैं. यानी शहर का आधे से ज्यादा हिस्सा अवैध है. आप ही सोचिए कि यदि सरकारें गंभीर होतीं तो क्या यह संभव था?


मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद आवास विभाग इस गोरखधंधे पर नकेल कसने के लिए नीति बनाने में जुटा है. हालांकि कम ही उम्मीद है कि कोई सार्थक नतीजा निकल सके. यदि सरकार गंभीरता से इसे रोकना चाहती है तो उसे रजिस्ट्री पर अंकुश लगाना चाहिए, लेकिन सरकार को खजाना भी भरना है. इस में कोई संदेह नहीं कि यदि विकास प्राधिकरणों द्वारा ही कॉलीनियों और व्यावसायिक केंद्रों का विकास हो तो शहरों में हरियाली आएगी. लोगों का जीवनस्तर सुधरेगा. पार्क आदि बढ़ेंगे तो लोगों को व्यायाम और टहलने आदि की जगहें भी मुहैया होंगी. यदि सरकार इस विषय के निराकरण के लिए वाकई गंभीर है तो कुछ सोचना होगा.

लखनऊ : प्रदेश सरकार की दोहरी नीति से सूबे के बड़े शहरों में अनियोजित विकास को बढ़ावा मिल रहा है. यह मुद्दा दशकों से उठता रहा है. सरकारें संज्ञान भी लेती हैं लेकिन करती कुछ भी नहीं हैं. राजधानी लखनऊ ही नहीं प्रदेश के सभी बड़े शहरों में प्राधिकरण के अभियंताओं की मिलीभगत से धड़ल्ले से ऐसी अवैध प्लाॅटिंग हो रही हैं. जब ऊपर से सख्ती होती है तो प्रॉपर्टी डीलर्स पर दबाव बनाया जाता है. इससे भ्रष्टाचार का तो जन्म होता है और भूखंडों की कीमतें भी बढ़ती हैं. स्वाभाविक है कि इसकी भरपाई आम आदमी से ही होती है, जो किसी तरह अपना घरौंदा बनाना चाहता है. यदि सरकार चाहे तो इन नव विकसित क्षेत्रों में भूखंडों की रजिस्ट्री पर रोक लगा सकती है. इससे यह पूरा व्यवसाय ही बंद हो जाएगा और अवैध या अनियोजित कॉलोनियां (illegal colonies in UP) बनेंगी ही नहीं, लेकिन रजिस्ट्री से होने वाली भारी-भरकम कमाई का मोह सरकार त्याग नहीं पाती. नतीजतन यह खेल यूं ही जारी रहता है.


गौरतलब है कि अवैध कॉलोनी उन्हें माना जाता है, जहां विकास प्राधिकरणों से बिना डेवलपमेंट प्लान पास कराए प्लानिंग की जाती है और प्राधिकरण द्वारा तय मानक के अनुसार ड्रेनेज सिस्टम, सड़कें, पार्क, सीवर और अन्य सुविधाएं नहीं होतीं. उत्तर प्रदेश के विभिन्न विकास प्राधिकरण क्षेत्रों में दो हजार से ज्यादा अनाधिकृत कॉलोनियां (illegal colonies in UP) चिह्नित की गईं हैं. इन कॉलोनियों को नियमित किए जाने के लिए भी मानक बनाए गए हैं, लेकिन वह इतने कठिन हैं कि ऐसी कॉलोनियां इन्हें पूरा नहीं कर पातीं. यह भी सही है कि लाखों निजी आवास जो इन कॉलोनियों में बन गए हैं, उन्हें गिराने की किसी भी सरकार में ताब नहीं हैं. यदि मंशा अच्छी हो तो नई अनियोजित कॉलोनियों को बसने से रोका जा सकता है, लेकिन सरकार और प्राधिकरण इसे लेकर भी गंभीर नहीं हैं. दरअसल, प्रॉपर्टी के काम में अथाह धन है. करोड़ों रुपये कमाने वाले प्रापर्टी डीलर और बिल्डर 'प्राधिकरण तंत्र' को खुश कर ही लेते हैं. राजधानी लखनऊ में साढ़े छह सौ से ज्यादा अवैध कॉलोनियां हैं. यानी शहर का आधे से ज्यादा हिस्सा अवैध है. आप ही सोचिए कि यदि सरकारें गंभीर होतीं तो क्या यह संभव था?


मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद आवास विभाग इस गोरखधंधे पर नकेल कसने के लिए नीति बनाने में जुटा है. हालांकि कम ही उम्मीद है कि कोई सार्थक नतीजा निकल सके. यदि सरकार गंभीरता से इसे रोकना चाहती है तो उसे रजिस्ट्री पर अंकुश लगाना चाहिए, लेकिन सरकार को खजाना भी भरना है. इस में कोई संदेह नहीं कि यदि विकास प्राधिकरणों द्वारा ही कॉलीनियों और व्यावसायिक केंद्रों का विकास हो तो शहरों में हरियाली आएगी. लोगों का जीवनस्तर सुधरेगा. पार्क आदि बढ़ेंगे तो लोगों को व्यायाम और टहलने आदि की जगहें भी मुहैया होंगी. यदि सरकार इस विषय के निराकरण के लिए वाकई गंभीर है तो कुछ सोचना होगा.

यह भी पढ़ें : कांग्रेस ने कहा, मुख्यमंत्री चुनाव प्रचार कर रहे हैं, प्रदेश में नहीं थम रहा डेंगू

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.