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पद्म विभूषण पंडित जसराज के निधन पर लखनऊ वासियों ने साझा की अपनी यादें

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Published : Aug 18, 2020, 3:45 PM IST

पद्म विभूषण शास्त्रीय संगीत के ज्ञाता पंडित जसराज जी का सोमवार 17 अगस्त को अमेरिका के न्यू जर्सी में निधन हो गया है. उनकी याद में लखनऊ के तमाम श्रोतागणों, संगीत प्रेमियों और संगीत-विदों ने अपने अनुभव साझा किए.

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लखनऊ वासियों ने साझा की अपनी यादें.

लखनऊ: 'वह फरवरी 2011 का महीना था और दिन था भातखंडे संगीत सम विश्वविद्यालय के पहले दीक्षांत समारोह का, जब विश्वविद्यालय की मान्यता मिलने के बाद भातखंडे विश्वविद्यालय का पहला दीक्षांत समारोह कैसरबाग के सफेद बारादरी में आयोजित किया गया था. इस समारोह में पद्म विभूषण पंडित जसराज जी ने स्वर्गीय पंडित विनोद मिश्र के सारंगी वादन की संगत पर राग भैरवी में 90 मिनट तक अपनी विलक्षण गायकी पेश की थी.

आलम यह था कि श्रोता झूम उठे थे और कैसरबाग की सड़कों पर जाम लग गया था. उस दिन भातखंडे विश्वविद्यालय के तमाम विद्यार्थी, अध्यापक और सैकड़ों की संख्या में संगीत प्रेमी सफेद बारादरी के साथ सड़कों पर खड़े होकर पंडित जी को सुन रहे थे'. यह जानकारी भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय के संगीत शिक्षक कमलेश दुबे ने दी.

लखनऊ वासियों ने साझा की अपनी यादें.

पद्म विभूषण शास्त्रीय संगीत के ज्ञाता पंडित जसराज जी का सोमवार 17 अगस्त को अमेरिका के न्यू जर्सी में निधन हो गया. उनकी याद में लखनऊ के तमाम श्रोता गणों, संगीत प्रेमियों और संगीत-विदों ने अपने अनुभव साझा किए.

पंडित जसराज के बारे में संगीत शिक्षक कमलेश कहते हैं कि पंडित जी का जाना दुखद है. संगीत के इतिहास में ऐसे कलाकार थे, जिनको हम लोगों ने बहुत पहले से सुना और उनका एक भजन नारायणी और नमो भगवते यह बहुत ही आनंददायक था. उन्होंने कई ऐसे राग गाए थे, जो सबसे हटकर थे. उनकी आवाज बेहद मधुर थी और वह लोकप्रिय कलाकार थे. अपनी यादें साझा करते हुए कमलेश कहते हैं कि भातखंडे में 2011 में जब हम लोगों ने दीक्षांत समारोह बारादरी में किया था, तो वह उस कार्यक्रम के मुख्य कलाकार थे. हमने उनके आने के लिए कई महीनों से तैयारियां की थी. लखनऊ आने पर उन्हें सम्मान दिया गया था, वे हम सभी को हमेशा याद रहेंगे. यह एक इत्तेफाक ही है कि आज दिन में मैं यूट्यूब पर उनका रामदासी मल्हार सुन रहा था और अचानक शाम में यह खबर मिली, उनका इस तरह से जाना बेहद दुखद है.


इनके अलावा दिग्गज वादक पागल राज श्रीवास्तव के शिष्य और अयोध्या के प्रसिद्ध मृदंग आचार्य पंडित राज खुशीराम ने बताया कि पंडित जसराज जी को बतौर श्रोता लखनऊ में दो बार सुनने का मौका मिला. पहली बार 2011 में वह भातखंडे के पहले दीक्षांत समारोह में आए थे, तब हम सफेद बारादरी में उन्हें सुनने गए थे. उसके बाद उनको एक बार और सुनने का मौका रामकृष्ण मठ में मिला था. हालांकि इन दोनों ही मौकों पर हम मिल नहीं पाए थे, लेकिन इन्हें सुनना हमारे लिए बेहद सुखद अनुभूति रही थी. इनकी आवाज में वह मिठास थी, जो हर किसी को अपनी ओर आकर्षित कर लेती थी.



मृदंग आचार्य पंडित राज खुशीराम ने बताया
अपना एक अनूठा अनुभव बताते हुए मृदंग आचार्य पंडित राज खुशीराम ने बताया कि उन्हें श्रोता की तरह सुनने के बाद एक बार वृंदावन में हम मृदंग बजाने के लिए गए थे. निधि वन में यह कार्यक्रम हुआ था, वहां पर पंडित सियाराम तिवारी जी के साथ हमने मृदंग बजाया था. उस वक्त वहां पर श्रोता के रूप में पंडित जसराज जी बैठे थे. कार्यक्रम के बाद वह हमसे मिले और हमारी काफी तारीफ की. हमने काफी देर तक कई विषयों पर बातचीत की. आज उनके बारे में ऐसी खबर मिलना दुखी कर रहा है.


पंडित जी के प्रेमियों का हुजूम
पंडित जसराज जी के बारे में एक अन्य अनुभव बताते हुए लखनऊ महोत्सव के पूर्व व्यवस्थापक जीवन शर्मा कहते हैं कि संगीत के क्षेत्र में पंडित जसराज जी का जाना अपूर्णीय क्षति है. मैं लंबे अरसे तक लखनऊ महोत्सव से जुड़ा रहा हूं. लखनऊ महोत्सव में पंडित जसराज जी ने कई बार अपनी प्रस्तुतियां दी हैं. अक्सर पंडित जी की प्रस्तुति कार्यक्रम के प्रारंभ में ही हुआ करती थी. व्यवस्थापक के तौर पर पंडित जसराज जी को लखनऊ महोत्सव के मंच पर लेकर जाना हमारे लिए बेहद मुश्किल भरा सबब हुआ करता था. उनकी लोकप्रियता और संगीत प्रेमियों का हुजूम लखनऊ महोत्सव के पंडाल को भर देता था. उन्हीं के बीच से हमें पंडित जी को मंच तक लेकर जाना होता था.

मेवाती घराने से थे पंडित जसराज
पंडित जसराज का जन्म 28 जनवरी 1930 को एक ऐसे परिवार में हुआ, जिसे 4 पीढ़ियों तक हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत को एक से बढ़कर एक शिल्पी देने का गौरव प्राप्त है. उनके पिताजी पंडित मोतीराम जी स्वयं मेवाती घराने के विशिष्ट संगीतज्ञ थे. पंडित जसराज हिसार जिले में पीली मंडोरी में जन्मे थे. यह अब फतेहाबाद में है. पद्म विभूषण से सम्मानित पंडित जसराज ने बीती 8 जनवरी को अंटार्कटिका तट पर 'सी स्प्रिट' नामक क्रूस पर गायन कार्यक्रम पेश किया था. मेवाती घराने से ताल्लुक रखने वाले पंडित जसराज ने इससे पहले वर्ष 2010 में पत्नी मधुरा के साथ उत्तरी ध्रुव का दौरा भी किया था. वह सातों महाद्वीपों पर अपने कार्यक्रम पेश कर चुके हैं.

लखनऊ: 'वह फरवरी 2011 का महीना था और दिन था भातखंडे संगीत सम विश्वविद्यालय के पहले दीक्षांत समारोह का, जब विश्वविद्यालय की मान्यता मिलने के बाद भातखंडे विश्वविद्यालय का पहला दीक्षांत समारोह कैसरबाग के सफेद बारादरी में आयोजित किया गया था. इस समारोह में पद्म विभूषण पंडित जसराज जी ने स्वर्गीय पंडित विनोद मिश्र के सारंगी वादन की संगत पर राग भैरवी में 90 मिनट तक अपनी विलक्षण गायकी पेश की थी.

आलम यह था कि श्रोता झूम उठे थे और कैसरबाग की सड़कों पर जाम लग गया था. उस दिन भातखंडे विश्वविद्यालय के तमाम विद्यार्थी, अध्यापक और सैकड़ों की संख्या में संगीत प्रेमी सफेद बारादरी के साथ सड़कों पर खड़े होकर पंडित जी को सुन रहे थे'. यह जानकारी भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय के संगीत शिक्षक कमलेश दुबे ने दी.

लखनऊ वासियों ने साझा की अपनी यादें.

पद्म विभूषण शास्त्रीय संगीत के ज्ञाता पंडित जसराज जी का सोमवार 17 अगस्त को अमेरिका के न्यू जर्सी में निधन हो गया. उनकी याद में लखनऊ के तमाम श्रोता गणों, संगीत प्रेमियों और संगीत-विदों ने अपने अनुभव साझा किए.

पंडित जसराज के बारे में संगीत शिक्षक कमलेश कहते हैं कि पंडित जी का जाना दुखद है. संगीत के इतिहास में ऐसे कलाकार थे, जिनको हम लोगों ने बहुत पहले से सुना और उनका एक भजन नारायणी और नमो भगवते यह बहुत ही आनंददायक था. उन्होंने कई ऐसे राग गाए थे, जो सबसे हटकर थे. उनकी आवाज बेहद मधुर थी और वह लोकप्रिय कलाकार थे. अपनी यादें साझा करते हुए कमलेश कहते हैं कि भातखंडे में 2011 में जब हम लोगों ने दीक्षांत समारोह बारादरी में किया था, तो वह उस कार्यक्रम के मुख्य कलाकार थे. हमने उनके आने के लिए कई महीनों से तैयारियां की थी. लखनऊ आने पर उन्हें सम्मान दिया गया था, वे हम सभी को हमेशा याद रहेंगे. यह एक इत्तेफाक ही है कि आज दिन में मैं यूट्यूब पर उनका रामदासी मल्हार सुन रहा था और अचानक शाम में यह खबर मिली, उनका इस तरह से जाना बेहद दुखद है.


इनके अलावा दिग्गज वादक पागल राज श्रीवास्तव के शिष्य और अयोध्या के प्रसिद्ध मृदंग आचार्य पंडित राज खुशीराम ने बताया कि पंडित जसराज जी को बतौर श्रोता लखनऊ में दो बार सुनने का मौका मिला. पहली बार 2011 में वह भातखंडे के पहले दीक्षांत समारोह में आए थे, तब हम सफेद बारादरी में उन्हें सुनने गए थे. उसके बाद उनको एक बार और सुनने का मौका रामकृष्ण मठ में मिला था. हालांकि इन दोनों ही मौकों पर हम मिल नहीं पाए थे, लेकिन इन्हें सुनना हमारे लिए बेहद सुखद अनुभूति रही थी. इनकी आवाज में वह मिठास थी, जो हर किसी को अपनी ओर आकर्षित कर लेती थी.



मृदंग आचार्य पंडित राज खुशीराम ने बताया
अपना एक अनूठा अनुभव बताते हुए मृदंग आचार्य पंडित राज खुशीराम ने बताया कि उन्हें श्रोता की तरह सुनने के बाद एक बार वृंदावन में हम मृदंग बजाने के लिए गए थे. निधि वन में यह कार्यक्रम हुआ था, वहां पर पंडित सियाराम तिवारी जी के साथ हमने मृदंग बजाया था. उस वक्त वहां पर श्रोता के रूप में पंडित जसराज जी बैठे थे. कार्यक्रम के बाद वह हमसे मिले और हमारी काफी तारीफ की. हमने काफी देर तक कई विषयों पर बातचीत की. आज उनके बारे में ऐसी खबर मिलना दुखी कर रहा है.


पंडित जी के प्रेमियों का हुजूम
पंडित जसराज जी के बारे में एक अन्य अनुभव बताते हुए लखनऊ महोत्सव के पूर्व व्यवस्थापक जीवन शर्मा कहते हैं कि संगीत के क्षेत्र में पंडित जसराज जी का जाना अपूर्णीय क्षति है. मैं लंबे अरसे तक लखनऊ महोत्सव से जुड़ा रहा हूं. लखनऊ महोत्सव में पंडित जसराज जी ने कई बार अपनी प्रस्तुतियां दी हैं. अक्सर पंडित जी की प्रस्तुति कार्यक्रम के प्रारंभ में ही हुआ करती थी. व्यवस्थापक के तौर पर पंडित जसराज जी को लखनऊ महोत्सव के मंच पर लेकर जाना हमारे लिए बेहद मुश्किल भरा सबब हुआ करता था. उनकी लोकप्रियता और संगीत प्रेमियों का हुजूम लखनऊ महोत्सव के पंडाल को भर देता था. उन्हीं के बीच से हमें पंडित जी को मंच तक लेकर जाना होता था.

मेवाती घराने से थे पंडित जसराज
पंडित जसराज का जन्म 28 जनवरी 1930 को एक ऐसे परिवार में हुआ, जिसे 4 पीढ़ियों तक हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत को एक से बढ़कर एक शिल्पी देने का गौरव प्राप्त है. उनके पिताजी पंडित मोतीराम जी स्वयं मेवाती घराने के विशिष्ट संगीतज्ञ थे. पंडित जसराज हिसार जिले में पीली मंडोरी में जन्मे थे. यह अब फतेहाबाद में है. पद्म विभूषण से सम्मानित पंडित जसराज ने बीती 8 जनवरी को अंटार्कटिका तट पर 'सी स्प्रिट' नामक क्रूस पर गायन कार्यक्रम पेश किया था. मेवाती घराने से ताल्लुक रखने वाले पंडित जसराज ने इससे पहले वर्ष 2010 में पत्नी मधुरा के साथ उत्तरी ध्रुव का दौरा भी किया था. वह सातों महाद्वीपों पर अपने कार्यक्रम पेश कर चुके हैं.

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